अधूरी रह गई बलि के बकरे की तलाश! प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को कह दिया बाय- बाय

रिपोर्ट- भारती बघेल

नेहरू- गांधी परिवार की बलि के बकरे की तलाश अधूरी रह गई। यह परिवार हमेशा एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में रहता है, जिसके सिर नाकामियों का ठीकरा फोड़ा जा सके। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर हाथ में आकर भी हाथ से फिसल गए। उन्होंने कांग्रेस का प्रस्ताव ठुकरा दिया। प्रस्ताव बड़ा साफ था।जीते तो हमारी जय-जय और हारे तो तुम्हारी पराजय।

प्रशांत किशोर को खेल समझ में आ गया। वह समझ गए कि उनकी दुनिया स्थाई रूप से बंद कराने का इंतजाम हो रहा है। यह ऐसा परिवार है, जिसे पद चाहिए लेकिन जवाबदेही नहीं। पांच राज्यों में पार्टी चुनाव हार गई। पांचों राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का इस्तीफा हो गया और उन्हें नियुक्त करने वाले राहुल गांधी विदेश छुट्टी मनाने चले गए। सोनिया, राहुल और प्रियंका की त्रिमूर्ति को चुनाव जीतना भले ना आता हो, लेकिन पार्टी पर कब्जा बनाए रखने का मंत्र आता है। इस तिकड़ी को हर वह व्यवस्था मंजूर है, जिससे पार्टी पर उनका कब्जा बना रहे।

प्रशांत किशोर बड़ी आदर्श व्यवस्था बना रहे थे। ऐसी व्यवस्था जिसमें परिवार के तीन सदस्यों के पास सारे अधिकार हों और जवाबदेही भी। यहीं वह चूक गये। परिवार ने हार की जिम्मेदारी लेने के लिए पहले से ही एक कमेटी का गठन कर दिया। जिसका नाम था एंपावर्ड एक्शन ग्रुप। प्रशांत किशोर से कहा गया कि इसके सदस्य बन जाए और रणनीति का जिम्मा लें। प्रशांत किशोर ने बड़े तंज भरे लहजे में कहा कि इतना उदार प्रस्ताव देने के लिए धन्यवाद। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को मुझसे ज्यादा नेतृत्व, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संगठन में बुनियादी बदलाव की जरूरत है।

राष्ट्रीय दल तो छोड़िये किसी क्षेत्रीय दल का ऐसा अपमान कभी नहीं हुआ। एक चुनाव रणनीतिकार सार्वजनिक रूप से पार्टी में आने का प्रस्ताव ठुकरा कर चला गया। प्रशांत किशोर को भी पता है, कि कांग्रेस का कुछ नहीं होने वाला। कांग्रेस के जरिए वह अपनी दुकान का विस्तार करना चाहते थे। उनकी योजना थी कि हार का ठीकरा उनके अलावा बाकी सब पर फूटे। वह इस गुंजाइश को बनाकर रखना चाहते थे, कि चुनाव नतीजा आने के बाद कह सकें कि उनकी योजना पर उनके मुताबिक अमल नहीं हुआ। किंतु उनके लिए इस गुंजाइश की संभावना नहीं बन सकी।

गांधी परिवार खुश था कि जैसे 2019 के चुनाव में प्रवीण चक्रवर्ती कवच बने थे। वैसे ही अगली बार प्रशांत किशोर बन जाएंगे। 2019 के चुनाव में प्रवीण चक्रवर्ती को डाटा एनालिटिक्स एक्सपर्ट के तौर पर रखा गया था। उन्होंने राहुल गांधी को सपना दिखाया कि कांग्रेस को 180 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। हार के बाद सारा जिम्मा उन पर डाला गया। कुछ दिन हाशिए पर रखने के बाद फिर काम पर लगा दिया गया। प्रशांत किशोर नहीं चाहते थे, कि वह प्रवीण चक्रवर्ती बनें। पर कांग्रेस और प्रशांत किशोर प्रकरण की वास्तविक पटकथा कुछ और ही है ।

यह पटकथा बता रही है कि गांधी परिवार में राजनीतिक विरासत का जो युद्ध पिछले कुछ सालों से बंद कमरे में चल रहा था। वह खुले में आ गया है। प्रशांत किशोर को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था। और वह इस्तेमाल होने के लिए तैयार थे। शर्त इतनी थी कि इस बंटवारे में उन्हें भी केक का बड़ा हिस्सा मिले।

प्रशांत किशोर प्रियंका के साथ मिलकर राहुल गांधी का पत्ता साफ करना चाहते थे। तैयारी थी प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाने की। राहुल गांधी संसदीय दल के नेता बनाए जा रहे थे। संसद में तो उनका पार्टी से भी कम मन लगता है। राहुल गांधी न तो अध्यक्ष बनेंगे और न ही अध्यक्ष पद पर किसी और को बैठने देंगे। इस समय पार्टी पर राहुल और उनकी टीम का कब्जा है। इन सब लोगों को डर था कि प्रशांत किशोर अपनी योजना में सफल हो गए तो उनकी दुकान बंद हो जाएगी।

तो तय हुआ कि प्रशांत किशोर को भगाना है पर ऐसे भी नहीं कि साफ दिखाई दे। तो मुद्दा बनाया गया दूसरे दलों से प्रशांत किशोर के व्यवसायिक संबंध को। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पार्टी ने अपनी भद पिटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बहुत सी पार्टियां चुनाव रणनीतिकारों की सेवाएं लेती हैं। पर सारी बातचीत बंद कमरे में और व्यवसायिक रूप से होती है। कांग्रेस ने ऐसा नजारा पेश किया जैसे प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार न होकर जादूगर पीसी सरकार है। जो आएंगे और कांग्रेस पार्टी के सारे दुख- दर्द दूर कर देंगे। दरअसल दोनों पक्ष एक- दूसरे को धोखे में रखने की जुगत भिड़ा रहे थे।

प्रशांत वही करना चाहते थे जो राहुल गांधी पिछले 18 सालों से कर रहे हैं। यानी अधिकार सब चाहिए पर जवाबदेही कोई ना हो। वह यह आकलन करने में चूक गए कि गांधी परिवार को इस मामले में महारत हासिल है। प्रशांत इस खेल के नए खिलाड़ी हैं वह मात खाने से पहले मैदान छोड़कर भाग गए। इस पूरे खेल में फिर भी फायदे में गांधी परिवार ही रहा।

इतने महीनों में जी-23 ने जो दबाव बनाया था वह हवा में उड़ गया। पार्टी में कोई परिवर्तन न करते हुए भी परिवार ऐसा ऐसा करता हुआ दिख रहा है। राहुल गांधी ने दूर रहकर अपनी छोटी बहन को बता दिया कि बड़े भाई वही हैं। नुकसान में प्रियंका रहीं, क्योंकि उनकी पार्टी अध्यक्ष बनने की महत्वकांक्षा सबके सामने आ गई। जो बात घर के बंद दरवाजों के भीतर थी, वह सार्वजनिक हो गई। कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के तीन खेमों में बंटी है।

सोनिया गांधी चूंकी बेटे के साथ हैं, इसलिए राहुल का पलड़ा भारी है। प्रशांत कांग्रेस में आते-आते रह गए। लेकिन कांग्रेस को बाय-बाय करने के पहले वह कांग्रेस और कांग्रेसियों को आइना दिखा गए। फिलहाल उन्होंने अपने कपड़े बचा लिए हैं। यह पूरी कहानी देश की सबसे पुरानी और विपक्ष की सबसे बड़ी और एकमात्र राष्ट्रीय विपक्षी दल के पतन की है। आज की कांग्रेस पुरानी कांग्रेस की छाया भी नहीं रह गई है।

इसका नया नामकरण सोनिया कांग्रेस के रूप में होना चाहिए। पार्टी हाईकमान 1998 से 2014 तक जो काम अधिकारपूर्वक करता था, वह अब छल से हो रहा है। इस समय यह तय करना कठिन है कि कांग्रेस में कौन किस से छल कर रहा है? कूटनीति का स्थान कपट ने ले लिया है। ऐसी स्थिति में पहला शिकार सत्य होता है। कांग्रेस में इस समय जिनके दिल नहीं मिलते, वे भी जोर- जोर से हाथ मिला रहे हैं।

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