Thursday, March 28, 2024
EDITORIAL

अपराध पर अब लगेगा अंकुश ! अपराधी डाल-डाल तो पुलिस होगी पात- पात

रिपोर्ट- भारती बघेल

दंड जतिन्ह कर भेद जहं नर्तक नृत्य समाज,
जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र के राज।


लोकप्रिय धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस में उल्लिखित इस दोहे का आशय है, कि राजनीति में शत्रुओं को जीतने तथा चोर- डाकुओं आदि का दमन करने के लिए साम, दाम, दंड और भेद जैसे चार उपाय किए जाते हैं। भगवान राम के राज में कोई शत्रु है ही नहीं इसलिए जीतो शब्द केवल मन के जीतने के लिए कहा जाता है। कोई अपराध करता ही नहीं इसलिए किसी को दंड देने की जरूरत ही नहीं पड़ती। दंड शब्द केवल सन्यासियों के हाथ में रहने वाले दंड के लिए ही रह गया है। यह तो रही आदर्श स्थिति ।

अब है घोर कलियुग। भय बिनु होय न प्रीत कहावत ही चरितार्थ करने की जरूरत शेष बचती है। हम भारत के लोग सुशासन और अच्छी कानून व्यवस्था को लेकर कितने आग्रह हैं इसका पता हाल ही में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पता चल गया। यह देश का दुर्भाग्य है, कि भयमुक्त समाज आज भी एक सपना है। वह इसलिए क्योंकि देश में दोष सिद्धि बहुत कम है। हम तो लोकतंत्र हैं। कई पिछड़े और गैर लोकतांत्रिक देश इस मायने में हमसे बहुत आगे हैं। इसके चलते शासन का खौफ अपराधियों पर तारी नहीं हो पाता। उनकी एक अघोषित अवधारणा होती है, क्या होगा पकड़े जाएंगे और एक दो महीने में छूट जाएंगे।

उनकी यह सोच गलत नहीं है। देश में साक्ष्यों के अभाव में विभिन्न अपराधों में गिरफ्तार किए गए आरोपितों की ऐसी बड़ी संख्या है, जिनको सजा नहीं दी जा सकती है। पुलिस और जांच एजेंसियों के हाथ बंधे रहे। मानवाधिकार संगठनों की तलवार इन जांच एजेंसियों पर हमेशा लटकती रही। अब ऐसा नहीं होगा। संसद के दोनों सदनों ने आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक पारित कर दिया है। जल्द ही कानून भी बन जाएगा इसके तहत अब अपराधी अगर डाल-डाल होंगे तो पुलिस पात -पात।

अब जांच एजेंसियों को अपराधियों का बायोमीट्रिक नमूना लेने और उसे 75 साल तक सुरक्षित रखने का अधिकार मिल जाएगा। ऐसे में साक्ष्यों को मजबूत करते हुए दोषसिद्धि को अधिक से अधिक करने का दावा करने वाले पुलिस सुधार के इस कदम से भयमुक्त समाज की संकल्पना की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पारित हो गया है। यह 1920 के जिस कानून की जगह लेगा, उस समय तकनीक बहुत उन्नत नहीं थी। आज हम तकनीकी रूप से बहुत आगे निकल चुके हैं। ऐसे में अपराधियों की पहचान करना और उन्हें जल्द से जल्द पकड़े जाने में तकनीक बहुत सहायक साबित होगी। अपराधी जब अपराध करने के तुरंत बाद पकड़े जाएंगे, तो उनमें एक डर भी पैदा होगा। ज्यादातर विकसित देश तकनीक के जरिए ही अपराधियों तक आसानी से पहुंच जाते हैं। और अपराध का ग्राफ नीचे ला रहे हैं।

भारत में भी अगर तकनीक को पूरी तरह से प्रयोग किया जाएगा, तो अपराधी ज्यादा दिन तक पुलिस की पकड़ से बाहर नहीं रह पाएंगे। ऐसा भी होता है कि अपराध में पढ़े-लिखे अपराधी भी होते हैं। और हर प्रकार की तकनीक की समझ रखते हैं। इसलिए पुलिस का तैयार रहना और भी जरूरी है। नई पहल का आगाज हो चुका है। इसका असर भी दिखेगा। लंबे समय से पुलिसिंग को और बेहतर करने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। नया कानून हर प्रकार के अपराधियों पर लागू होता है।

नई व्यवस्था में फिंगरप्रिंट, फुटप्रिंट, हथेलियों के प्रिंट फोटो, आंखों के आइरिश व रेटिना, फिजिकल, बायोलॉजिकल सैंपल, हैंडराइटिंग और सिग्नेचर का रिकॉर्ड रखा जाएगा। इसके लिए हजारों विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी। इसकी शुरुआत ऐसे अपराधियों से करनी चाहिए जो आदतन अपराधी हैं। या लूट, डकैती और हत्या की घटनाओं में अक्सर शामिल रहते हैं। कुख्यात आरोपियों से शुरुआत करने के पीछे आशय यह है, कि अभी पुलिस के पास विशेषज्ञ कम है। हर अपराधी का डीएनए टेस्ट, फिंगरप्रिंट लेने में व्यवहारिक रूप से कठिनाई है। जैसे-जैसे विशेषज्ञों और पुलिस बल की संख्या बढ़ेगी इसका प्रयोग हर अपराधी पर होगा।

इस विधेयक को पुलिस सुधार और अपराध नियंत्रण की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। हालांकि यह टिप ऑफ द आइबर्ग यानी एक बड़े काम की शुरुआत भर है। अत्याधुनिक फॉरेंसिक लैब और इससे संबंधित विशेषज्ञों की सीमित संख्या के सापेक्ष अपराधिक मामलों की संख्या बहुत अधिक होती है। गंभीर अपराधों में शामिल आरोपितों के बायोमीट्रिक इंप्रेशन लेने का अधिकार पुलिस को दिया गया है। इसे एक अहम बदलाव माना जा रहा है। देश में आधे से ज्यादा गंभीर अपराध में शामिल अपराधी सिर्फ इसलिए छूट जाते हैं, क्योंकि साक्ष्यों की कमी रह जाती है।

इस बिल के बाद पुलिस के पास भी फिंगरप्रिंट जैसे साक्ष्य जमा करने का अधिकार होगा। जिससे जांच में बहुत मदद मिलेगी। इसमें कोई भी दोराय नहीं है,कि इस नई प्रक्रिया से अपराधियों को सजा दिलाना आसान हो जाएगा। हालांकि, इसमें कितनी तेजी आएगी यह अभी भविष्य के गर्भ में छिपा है। क्योंकि बहुत कुछ बातें इसके कानून बन जाने और इसके प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करेंगे।

विदेश की पुलिसिंग से अगर यहां की तुलना करनी है, तो तैयारी भी उसी हिसाब से करनी पड़ेगी। अपराधियों पर पुलिस का शिकंजा जितना मजबूत होगा, समाज में पुलिस की साख उतनी ही अच्छी रहेगी। अपराध नियंत्रण और जांच से अपराध मुक्त समाज की कल्पना साकार हो सकेगी। हर सुधार की तरह इस सुधार का असर दिखने में भी थोड़ा समय लगेगा। हत्या के किसी केस में पुलिस ने मौके से फिंगरप्रिंट लिए तो उसका डाटा एनसीआरबी पर फिट किया जाएगा। अगर अपराधी पहले किसी और मामले में शामिल रहा है, तो उसका पूरा रिकॉर्ड पता चल जाएगा। अगर उसने पहली बार भी अपराध किया है, तो उसका डाटा एनसीआरबी के सर्वर पर भविष्य के लिए सुरक्षित रहेगा। इस पूरी प्रक्रिया का प्रभाव आने वाले समय में दिखेगा।

निर्दोष की सुरक्षा सुनिश्चित

कानून नियम को मानने वाला व्यक्ति भयमुक्त वातावरण चाहता है। पर्याप्त साक्ष्य और उचित जांच न होने से निर्दोष को सजा मिल जाना या अपराधी का छूट जाना दोनों बातें कष्टकारी है। यह कानून की दृष्टि से भी अनुचित है। आपराधिक प्रक्रिया विधेयक 2022 के माध्यम से इसे रोकना संभव होगा। इससे निर्दोष को सजा नहीं मिलेगी और दोषी बचेगा नहीं। इस विधेयक को लेकर मानवाधिकार हनन की आशंकाएं निरर्थक है। निष्पक्ष ट्रायल तो ठीक है, लेकिन मानवाधिकार के नाम पर साक्ष्य के अभाव में किसी अपराधी का छूट जाना उचित नहीं है।

नया विधेयक कानून सुधार की दिशा में बड़ा बड़ा कदम है। पुराने कानून का फायदा उठाकर काफी अपराधी बच जाते थे। अब आदतन अपराधियों, गिरफ्तार आरोपितों के बारे में पर्याप्त जानकारी होने से पेशेवर अपराधियों का बचना संभव नहीं होगा। ज्यादा डाटा होने के कारण अपराधी की सही पहचान भी हो सकेगी। यह सत्य है कि हर घटना के बाद पुलिस उचित जांच नहीं करती है। पोस्टमार्टम में मृतक का ब्लड ग्रुप नहीं लिया जाता। अधिकतर मामलों में घटनास्थल पर मिले खून और हथियार में लगे खून का मिलान नहीं होता।

सब की जांच का विकल्प मिले तो अपराधी आसानी से पकड़ में आ सकता है। असल में यह विधेयक व्यवस्था की ऐसी कई खामियों को दूर करेगा। नया विधेयक तभी सार्थक होगा, जब उसके अनुरूप सुविधाएं बढ़ेंगी। उत्तर प्रदेश में एक ही विधि विज्ञान प्रयोगशाला है। जांच रिपोर्ट आने में 5 से 6 महीने लग जाते हैं। जिला या मंडल स्तर पर ऐसी प्रयोगशाला बनाने की जरूरत है। नई व्यवस्था ज्यादा प्रभावी तरीके से तभी काम कर पाएगी, जब जांच रिपोर्ट जल्दी मिले। इससे निर्दोष व्यक्ति जल्दी बच सकेगा। थानों को अत्याधुनिक उपकरणों से लैस करना होगा, ताकि कुछ मामलों की जांच मौके पर ही हो जाए। इससे ही विधेयक के साथ स्वरूप का लाभ मिल सकेगा।

भयमुक्त बनेगा समाज

अब जांच एजेंसियों के पास संगीन अपराधियों से लेकर आतंकियों तक की अहम जानकारियां एक क्लिक पर उपलब्ध हो सकेंगी। सबसे ज्यादा प्रभाव आदतन अपराधियों के मामले में दिखेगा। अगर कोई भी अपराधी दोबारा अपराध करते हुए पकड़ा जाता है, तो संबंधित जांच एजेंसी एक क्लिक करके उसके पिछले रिकॉर्ड का पता लगा सकेगी। इसके अमल में आने से जांच एजेंसियों को जहां अपराधियों पर शिकंजा कसने में मदद मिलेगी, वहीं समाज से अपराध को कम करने में भी यह कानून मददगार साबित होगा।

कई बार ऐसे मामले आए हैं कि कोई व्यक्ति आसानी से पहचान बदलकर दूसरे राज्यों में अपराधों को अंजाम दे देता है। किसी अन्य राज्य के अपराधी से जुड़ा डाटा केंद्रीकृत नहीं होने के कारण दूसरे राज्य में अपराध करने वाला आदतन अपराधी भी आसानी से छूट जाता है। अदालतों के समक्ष अपराधी की पूरी जानकारी नहीं आ पाने के कारण उन्हें पर्याप्त सजा नहीं मिल पाती है। नए कानून से इस स्थिति से निपटने में मदद मिलेगी।

कई देशों में पुलिस अपराध की जांच प्रक्रिया में विज्ञान एवं तकनीकी का भरपूर इस्तेमाल करती है। वैसे भी वैज्ञानिक साक्ष्य हो तो अदालतों के लिए मौखिक बयानों की अहमियत कम हो जाती है। अपराधी का पूरा रिकॉर्ड सामने होने से जज के लिए भी सजा तय करना आसान होता है। वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ अपराधी का पूरा रिकॉर्ड हो तो पर्याप्त और कठोर सजा सुनिश्चित हो सकती है। आम नागरिकों के लिए भी यह लाभकारी व्यवस्था होगी। अपराधियों का रिकॉर्ड पुलिस के पास होने से लोगों के लिए पुलिस वेरिफिकेशन का काम आसान हो जाएगा। वीजा, पासपोर्ट या किराए के मकान के लिए वेरिफिकेशन के दौरान पता लग सकेगा कि संबंधित व्यक्ति का आपराधिक रिकॉर्ड है या नहीं। पुलिस का काम तो आसान होगा ही अपराधियों में उनका खौफ भी बढ़ेगा।

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