Saturday, April 20, 2024
National

क्या है रुस और यूक्रेन का पूरा विवाद ? जानिए इस विशेष रिपोर्ट में

रिपोर्ट- भारती बघेल

रुस और यूक्रेन में संघर्ष जारी है और अब स्थिति ये है कि इस संघर्ष ने पूरी दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है। एक तरफ रुस है जिसे चीन जैसे देशों का समर्थन मिल रहा है। और दूसरी तरफ यूक्रेन है जिसकी मदद करने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और नेटो देशों का समर्थन उसे मिल रहा है। अब सवाल ये है कि रुस क्यों नहीं चाहता कि यूक्रेन नेटो देशों में शामिल हो। आपको बता दें कि नेटो अमेरिका, कनाड़ा और फ्रांस जैसे 30 देशों का एक मिलिट्री ग्रुप है। अब रुस के सामने चुनौती ये है कि उसके कुछ पड़ोसी देश पहले से ही नेटो को ज्वाइन कर चुके हैं और इनमें एस्टोनिया और लताविया जैसे देश भी हैं, जो एक जमाने में सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे। यानी इसका मतलब समझिए एक जमाने में जो देश सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे जो रशिया के साथ अलाइंड थे वो धीरे- धीरे नेटो देशों में शामिल हो रहे हैं और अगर अब यूक्रेन भी नेटो देशों का मित्र बन जाएगा तो रसिया चारों तरफ अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा। और उस पर अमेरिका जैसे देश हावी हो जाएंगे।और अमेरिका चाहता भी यही है।

अमेरिका की जो रणनीति है वो चाहता है कि रसिया के आसपास के जितने भी देश हैं जो एक जमाने में सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे। उन्हें अमेरिका अपनी तरफ करता जा रहा है ताकि उन देशों का इस्तेमाल वो रसिया पर दवाब बनाने के लिए कर सके।

आप नेटो का मतलब समझिए अमेरिका। अमेरिका रशिया से सिर्फ एक कदम दूर है। अगर यूक्रेन नेटो का सदस्य देश बन गया और भविष्य में रशिया उस पर हमला कर देता है तो समझौते के तहत नेटो के सभी 30 देश इसे अपने खिलाफ हमला मानेंगे और फिर वो यूक्रेन की सैन्य मदद के लिए वो वहां पर पहुंच जाएंगे।

रशिया की क्रांति के नायक व्लादिमीर लेनिन ने एक बार कहा था कि रशिया के लिए यूक्रेन को गंवाना ठीक वैसा ही होगा, जैसे एक शरीर से उसका सिर अलग हो जाए। इसलिए ही रशिया यूक्रेन का नेटो में प्रवेश करने का सख्त विरोध कर रहा है। यूक्रेन रशिया की पश्चिमी सीमा पर मौजूद है। जब वर्ष 1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युध्द के दौरान रशिया पर हमला हुआ था तब यूक्रेन ही वो क्षेत्र था जहां से रशिया ने अपनी सीमा की सूरक्षा की थी लेकिन अगर यूक्रेन नेटो देशों के साथ मिल गया तो रशिया की राजधानी मॉस्को पश्चिमी देशों के लिए सिर्फ 640 किलोमीटर दूर रह जाएगी। जबकि फिलहाल ये दूरी लगभग 1600 किलोमीटर की है।

आपके मन में ये सवाल भी आ रहा होगा कि यूक्रेन नेटो के साथ आखिर क्यों जाना चाहता है। अगर वो पारंपरिक रुप से रशिया के साथ अलाइंड रहा है तो फिर यूरोपियन यूनियन में क्यों गया और नेटो में क्यों जाना चाहता है। इसे समझने के लिए आपको इतिहास में सौ साल पीछे जाना होगा। वर्ष 1917 से पहले तक रशिया और यूक्रेन रुसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे लेकिन 1917 में रशिया की क्रांति के बाद ये साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। उस जमाने में भी जब ये रशियन साम्राज्य था तब जो कीव शहर है ये उसकी राजधानी हुआ करता था। हालांकि यूक्रेन इसके बाद मुश्किल से तीन साल ही आजाद रहा और वर्ष 1920 में ये सोवियत संघ में शामिल हो गया। हालांकि यूक्रेन के लोगों में एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने की इच्छा हमेशा से जीवित रही और वो आज भी है।

वर्ष 1991 में जब सोवियत संघ टूटा तब इसमें से 15 नए देश बने जिनमें यूक्रेन भी था। यानी असल मायने में यूक्रेन को वर्ष 1991 में असली आजादी मिली लेकिन यूक्रेन शुरुआत से ही इस बात को समझता था कि वो कभी भी अपने दम पर रशिया का मुकाबला नहीं कर सकता औऱ अगर भविष्य में कभी रशिया ने उस पर हमला कर दिया तो वो अपना बचाव भी नहीं कर पाएगा। इसलिए वो एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है जो उसकी स्वतंत्रता को हर स्थिति में सुनिश्चित करे और उसे रशिया से भी बचाये। वहीं इस काम के लिए फिलहाल नेटो से अच्छा विकल्प दूसरा नहीं है। इसलिए पहले उसने यूरोपियन यूनियन को ज्वाइन किया और अब वो नेटो में जाना चाहता है।

आखिर में हम बात करते हैं भारत के आगे आने वाली दुविधा को लेकर। दुविधा ये कि किसका साथ देगा भारत रुस का या अमेरिका का । दोस्तों इतिहास गवाह है इस बात का कि रुस ने हर मोड़ पर भारत का साथ निभाया है। एक तरफ जहां पश्चिमी देशों ने रुस पर प्रतिबंधों की छड़ी लगा दी है वहीं दूसरी तरफ भारत ने न तो रुस की निंदा की है और न यूक्रेन की संप्रभुता की बात की है। यानी निष्पक्ष रहकर भी भारत ने रुस का ही साथ दिया है। वहीं रुस ने भारत के इस रुख का स्वागत किया और कहा कि आगे भी सहयोग जारी रहेगा। 2014 में भी मनमोहन सरकार के दौरान भारत ने रुस का साथ दिया था। तब रुस ने यूक्रेन पर हमला करके क्रीमीया को रुस में शामिल कर लिया था। आज भी कुछ वैसी ही स्थिति है।

भारत अभी भी इस मुद्दे पर निष्पक्ष रुप अपनाया हुआ है। क्योंकि अगर भारत खुल के रुस का समर्थन करेगा तो अमेरिका और पश्चिमी देशों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। भारत ने रुस से एस- 400 सिस्टम खरीदा है लेकिन बावजूद इसके अनमेरिका ने अभी तक भारत के खिलाफ CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) कानून लागू नहीं किया है। इस कानून के जरिए अमेरिका रुस से रक्षा सौदा करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाता है। दूसरी तरफ भारत अगर अमेरिका का समर्थन करेगा तो वो अपने पूराने सहयोगी रुस को नाराज कर देगा। जिसके चलते रुस चीन के और करीब आ सकता है, जो भारत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा।

रुसी हमले में एक भारतीय छात्र की हुई मौत
यूक्रेन में रुसी हमले के चलते फंसे हजारों भारतीय छात्रों के लिए जिस बात की आशंका थी, वो मंगलवार को सच हो ही गई। आपको बता दें कि पूर्वी यूक्रेन का जो खार्कीव शहर है उसमें हो रही भारी गोलीबारी में वहां मेडिकल की पढ़ाई करने गए एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत हो गई है। नवीन कर्नाटक के रहने वाले थे। बताया जा रहा है कि 21 साल के नवीन की मौत उस वक्त हुई जब वो एक सरकारी भवन के पास खाने पीने का समान लेने गए थे। उसी समय रुसी सैनिकों की तरफ से मोर्टार दागे गए थे।

वहीं यूक्रेन से छात्रों को लाने के अभियान में अब वायुसेना भी शामिल होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन गंगा में भारतीय वायुसेना को भी शामिल करने के निर्देश दिए हैं। इस निर्देश के बाद से ही वायुसेना ने तत्काल तैयारियां शुरु कर दी है। इसमें वह अपने सबसे बड़े परिवहन विमानों सी-17 ग्लोबमास्टर को लगाएगी। मिली जानकारी के मुताबिक इसमें एक साथ 300 से 400 लोगों को लाया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *