Friday, April 19, 2024
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महाराणा प्रताप की वीरता का इतिहास बेमिसाल, अकबर के सामने भी नहीं झुकाया सर

नेशनल खबर डेस्क रिपोर्ट

भारत में राजपूतों के वीरताओं के यूं तो कई किस्से आपने पढ़े होंगे। लेकिन महाराणा प्रताप की वीरता के इतिहास की बात ही कुछ अलग है। उन्होंने महज़ राजस्थान ही नहीं भारत की शान को भी एक अहम मुकाम दिया था। मेवाड़ के राजा रहे महाराणा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जिंदगी में कभी किसी की गुलामी स्वीकार नहीं की।


महाराणा प्रताप के बारे में इतिहास में लिखा है कि अपनी सेना से कई गुना ज्यादा ताकतवर अकबर की सेना से उन्होंने लोहा लिया। वे ही सही मायनों में आप कह सकते हैं कि महाराणा थे।
अकबर ने जी जान लगा दी लेकिन आखिर तक उन्हें पकड़ नहीं पाया। आपको बता दें कि जब महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था तब तक वे अपने मेवाड़ को बहुत हद तक सुरक्षित कर चुके थे।
वो कितने वीर थे उनकी वीरता की पुष्टि उनके युद्ध की घटनाओं से हो जाती है जिनमें सबसे प्रमुख 8 जून 1576 ईस्वी में हुए हल्दी घाटी के युद्ध का युद्ध था जिसमें महाराणा प्रताप की करीब 3 हजार घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों की सेना ने आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में करीब 5 हजार से 10 हजार लोगों की सेना को लोहे के चने चबवा दिए थे।


मुगलों के साथ असंतुलित युद्ध में भी उन्होंने हार नहीं मानी और लाख कोशिशें करने के बाद भी वे मुगलों के हाथ नहीं आए।
बताया जाता है कि अपने अंतिम समय में जब वे घायल थे, उस दौरान वे बहुत ज्यादा चिंतित थे। उन्हें लग रहा था कि उनके जाने के बाद उनका राज्य कहीं बिखर न जाए और उनका पुत्र मुगलों से समझौता करने पर मजबूर न हो जाए।
मरते समय उनके सामंतों ने जब उन्हें उनके कुल की रक्षा का वचन दिया तब वे अपने प्राण त्याग सके थे। उनके निधन की तारीख 19 जनवरी 1597 ही इतिहास में दर्ज है जिस पर कभी किसी तरह की आपत्ति नहीं हुई।

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