
Diabetes Type 1: डायबिटीज़ यानी मधुमेह को अक्सर वयस्कों की बीमारी समझा जाता है। लेकिन जब मासूम बच्चे इसकी चपेट में आते हैं, तो वो केवल एक मेडिकल केस नहीं, बल्कि हर दिन एक मानसिक और भावनात्मक संघर्ष बन जाता है, बच्चे के लिए भी और उसके माता-पिता के लिए भी।
Written By: Pragya Jha, National Khabar
भारत में डायबिटीज टाइप 1 के बच्चे
IDF (International Diabetes Federation) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 8.9% बच्चे डायबिटीज़ टाइप 1 से पीड़ित हैं। इस मामले में भारत दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इन आंकड़ों से ये बात साफ हो जाती है कि देश में डायबिटीज़ अब सिर्फ उम्र से जुड़ी बीमारी नहीं रह गई है।
जरा कल्पना कीजिए, एक ऐसा बच्चा जो रोज़ 3-4 बार खुद को या अपने माता-पिता से इंसुलिन इंजेक्शन लगवाता है। हर त्यौहार, हर जन्मदिन, हर मिठाई उसके लिए सिर्फ “देखने की चीज़” बनकर रह जाती है।
पर क्या वाकई ज़रूरी है उम्र भर इंसुलिन लेना?
अभी तक की मेडिकल गाइडलाइंस कहती रही हैं कि टाइप 1 डायबिटीज़ का कोई इलाज नहीं है और मरीज को जिंदगी भर इंसुलिन पर रहना होगा। लेकिन शोधकर्ता डॉ. एस. कुमार इस धारणा को चुनौती दे रहे हैं। उनका दावा है कि इंसुलिन तभी लेनी चाहिए जब शरीर में वो बन ही न रही हो। लेकिन यदि शरीर खुद भी इंसुलिन बना रहा है और हम बाहर से उसे दे रहे हैं, तो ये शरीर की नैसर्गिक प्रक्रिया को बाधित कर सकता है और दीर्घकालिक रूप से हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
डॉ. कुमार ने हाल ही में कई बच्चों की इंसुलिन बंद कराई है और ये सिर्फ कागज़ी दावा नहीं, बल्कि साक्ष्यों से साबित किया गया केस भी उन्होंने नेशनल खबर के साथ साझा किया, जहां एक बच्चे के माता-पिता ने बताया कि कैसे सालों से चल रही इंसुलिन कुछ महीनों के इलाज के बाद बंद हो गई।
डायबिटीज और हमारे खानपान की गुप्त भूमिका
डायबिटीज़ के संदर्भ में अक्सर लोग शक्कर, मीठा और फैटी फूड्स से दूरी बनाने की सलाह देते हैं। लेकिन एक छुपा हुआ कारण, जिस पर शायद ही कोई ध्यान देता है, वह है — खाने का तेल।
डॉ. कुमार के मुताबिक जब हम तेल गर्म करते हैं तो उससे उठने वाला धुआं सांस के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है। ये धुआं फेफड़ों से होते हुए खून तक पहुंचता है और धीरे-धीरे शरीर की मेटाबॉलिक प्रक्रिया को बाधित करता है। यही कारण है कि कई लोगों में इन्सुलिन की प्रतिक्रिया कम हो जाती है, भले ही वो कोई मीठा न खाएं। और सिर्फ तेल ही नहीं, डॉ. कुमार के अनुसार फल भी डायबिटीज़ को बढ़ा सकते हैं। उनका मानना है कि मौजूदा बाजार में मिलने वाले फलों में शुगर कंटेंट इतना ज्यादा हो चुका है कि वो शरीर के लिए नुकसानदेह बन चुके हैं। उनका कहना है कि “विश्व में डायबिटीज जैसी कोई बीमारी नहीं है, ये सिर्फ शरीर की कार्यप्रणाली में आई गड़बड़ी का नाम है।”
नया नजरिया, नई उम्मीद
डायबिटीज़, खासकर बच्चों की डायबिटीज़, अब एक मेडिकल केस से बढ़कर सामाजिक और भावनात्मक चुनौती बन चुकी है। लेकिन डॉ. एस कुमार जैसे वैकल्पिक शोधकर्ताओं की सोच और कार्य प्रणाली ये उम्मीद देती है कि हम इलाज को सिर्फ दवाइयों और इंसुलिन तक सीमित न रखें।
अब वक्त आ गया है कि हम अपने खानपान, दिनचर्या और विचारों को भी मेडिकल ट्रीटमेंट का हिस्सा मानें। क्या पता, अगली पीढ़ी को इंसुलिन की सुइयों से बचाने का रास्ता इन नई रिसर्च में ही छुपा हो।
आइए जानते हैं एस कुमार के बारे में
डॉ. एस कुमार Appropriate Diet Therapy Centre के संस्थापक हैं।। डॉ. एस कुमार पीएचडी होल्डर होने के साथ-साथ “डॉक्ट्रेट ऑफ लिटरेचर” की डिग्री रसियन यूनिवर्सिटी से प्राप्त कर चुके हैं, साथ ही 3 बार गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे हैं।। डायबिटीज की दुनिया में शोध करने के लिए उन्हें फ्रांस की सीनेट में भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इतना ही नहीं, डॉ. एस कुमार को लंदन की 200 साल पुरानी पार्लियामेंट में डायबिटीज पर शोध के लिए बेस्ट साइंटिस्ट के अवार्ड से भी नवाजा गया है।
डॉ. एस कुमार अभी तक कई किताबें भी लिख चुके हैं, जिनमें से एक पुस्तक को राष्ट्रपति भवन के पुस्तकालय में स्थान भी दिया गया है। भारत में Appropriate Diet Therapy Centre की 56 से अधिक शाखाएं संचालित हैं। यदि आप भी संपर्क करना चाहते हैं, तो दिए गए नंबर पर कॉल करें:: +91 9372166486