खाटू श्याम: क्यों बदलता है उनकी प्रतिमा का रंग? जानिए रहस्य!

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम धाम (Khatu Shyam Temple) श्याम बाबा के भक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। यहां विराजमान श्याम बाबा की प्रतिमा का रंग बदलने का रहस्य भी भक्तों को आकर्षित करता है। दरअसल, यह बदलाव मंदिर की परंपरा और विशेष शृंगार का हिस्सा है। कृष्ण पक्ष में श्याम बाबा की प्रतिमा को श्याम वर्ण में सजाया जाता है, जबकि शुक्ल पक्ष में उन्हें शालिग्राम रूप में अलंकृत किया जाता है। आइए, जानते हैं इस परंपरा और इसके पीछे की मान्यता को विस्तार से।

धर्म डेस्क | नेशनल खबर

खाटू श्याम धाम की महिमा देश-विदेश तक फैली हुई है। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित यह पवित्र धाम महाभारत के वीर योद्धा बर्बरीक को समर्पित है, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने आशीर्वाद दिया था कि कलियुग में वे श्याम नाम से पूजे जाएंगे। यहां की एक खास बात यह है कि श्याम बाबा की प्रतिमा का रंग समय-समय पर बदलता दिखाई देता है, जो हमेशा भक्तों के बीच कौतूहल का विषय रहता है। आइए जानते हैं इस रहस्य के पीछे की वजह।

खाटू श्याम प्रतिमा के रंग बदलने का रहस्य

श्याम बाबा की प्रतिमा का रंग बदलना न तो कोई चमत्कार है और न ही कोई प्राकृतिक घटना, बल्कि यह मंदिर की पारंपरिक शृंगार प्रक्रिया का हिस्सा है। दरअसल, बाबा का यह रूपांतरण चंद्र मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के अनुसार होता है।

कृष्ण पक्ष में श्याम वर्ण

कृष्ण पक्ष के दौरान बाबा को श्याम वर्ण यानी सांवले स्वरूप में सजाया जाता है। इस दौरान प्रतिमा को चंदन और अन्य विशेष शृंगार सामग्री से अलंकृत किया जाता है, जिससे उसमें सुनहरी-पीली झलक दिखाई देती है। यह उनका सौम्य और आकर्षक श्याम रूप माना जाता है, जो भक्तों को दिव्यता का अनुभव कराता है।

शुक्ल पक्ष में शालिग्राम रूप

शुक्ल पक्ष में बाबा का शृंगार शालिग्राम स्वरूप में किया जाता है। इस समय प्रतिमा का रंग गाढ़ा, काले रंग जैसा प्रतीत होता है। अमावस्या के दिन बाबा का विभिन्न औषधीय द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है, जिससे उनका मूल स्वरूप उभरकर सामने आता है, जो उनकी दिव्यता का प्रतीक माना जाता है।

भक्तों के लिए अनोखी अनुभूति

धार्मिक मान्यता के अनुसार, बाबा श्याम महीने में लगभग 23 दिन श्याम वर्ण (सांवले) रूप में और शेष 7 दिन शालिग्राम (काले) स्वरूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। यह परंपरा भक्तों के लिए भले ही रहस्यमय लगे, लेकिन यह सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें बाबा को अलग-अलग स्वरूपों में सजाकर उनकी लीलाओं का स्मरण किया जाता है।

इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

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