
रावण, जो सोने की लंका और पुष्पक विमान जैसी अद्भुत संपत्तियों का स्वामी था, न केवल एक महान योद्धा बल्कि विद्वान भी था। उसने शिव तांडव स्तोत्र समेत कई तांत्रिक ग्रंथों की रचना की। रामायण के प्रमुख पात्रों में शामिल रावण को हम सभी उसके इसी नाम से जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसे ‘रावण’ नाम क्यों मिला? आइए जानते हैं इस नाम के पीछे की पौराणिक कथा।
धर्म डेस्क | National Khabar
रावण: ज्ञान, शक्ति और उसके नाम की कहानी
रावण की माँ कैकसी क्षत्रिय राक्षस कुल से थीं, जबकि उसके पिता ऋषि विश्रवा एक महान तपस्वी थे। इसी कारण उसे ब्रह्मराक्षस कहा जाता था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण, पुलस्त्य मुनि का पोता था और बचपन में ही उसने चारों वेदों का गहन अध्ययन कर लिया था। वह आयुर्वेद, ज्योतिष और तंत्र विद्या में भी दक्ष था। उसकी शक्ति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अपनी मायावी शक्तियों के बल पर उसने कई देवताओं तक को बंदी बना लिया था।
रावण नाम कैसे पड़ा?
कुबेर को हराने के बाद जब रावण पुष्पक विमान लेकर लंका लौट रहा था, तो उसका विमान कैलाश पर्वत के सामने रुक गया। उसने पर्वत को रास्ते से हटाने की कोशिश की, तभी नंदी जी ने उसे ऐसा करने से रोका। रावण ने नंदी जी की बात अनसुनी करते हुए कैलाश को हिलाना शुरू कर दिया। इसी दौरान भगवान शिव ने अपने पैर का अंगूठा पर्वत पर रख दिया, जिससे कैलाश और भारी हो गया और रावण के हाथ पर्वत के नीचे दबकर कुचल गए।
दर्द से कराहते हुए रावण इतनी जोर से दहाड़ा कि उसकी आवाज़ गूंज उठी। तभी से उसे रावण कहा जाने लगा। संस्कृत में रावण का अर्थ होता है — जोर से दहाड़ने वाला।
रावण के अन्य नाम
रावण को कई नामों से पुकारा जाता था।
लंकेश या लंकापति — क्योंकि वह सोने की लंका का स्वामी था।
दशानन — उसके दस सिरों के कारण।
दशकंठी — छह दर्शन और चारों वेदों का ज्ञाता होने के कारण।
इस खबर में दी गई जानकारियाँ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। नेशनल ख़बर इनकी पुष्टि नहीं करता।