
Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी में आज से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो गई है। जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन रथों में नगर भ्रमण कर रहे हैं। रथ खींचना पुण्यदायक माना जाता है, इसलिए लाखों भक्त इसमें शामिल हुए हैं। पूरा पुरी शहर भक्ति और उत्सव में डूबा है।
धर्म डेस्क | National Khabar
Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी की पावन धरती आज से फिर भक्ति में रंगी है, क्योंकि शुरू हो गई है भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथ यात्रा। जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा भव्य रथों में गुंडिचा मंदिर की ओर रवाना हुए। यह यात्रा आस्था और भारतीय परंपरा का प्रतीक है।
पुरी की गलियों से जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ गुजरते हैं, तो पूरा शहर भक्ति में डूब जाता है। ढोल-नगाड़ों की गूंज और “जय जगन्नाथ” के नारों से वातावरण गूंज उठता है। श्रद्धालु रथ को छूने या रस्सी खींचने के लिए घंटों इंतजार करते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इससे पाप कटते हैं और पुण्य मिलता है। यह आयोजन सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
हर वर्ष रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए तीन नए रथ तैयार किए जाते हैं। ये रथ पूरी तरह लकड़ी से बनाए जाते हैं और हर बार इन्हें नया रूप दिया जाता है। इन रथों का निर्माण मंदिर से जुड़े पारंपरिक और अनुभवी कारीगरों द्वारा किया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदिघोष’, बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ और सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ कहा जाता है।
हर रथ की अपनी अलग ऊंचाई, रंग और सजावट होती है। इनकी छतें रंग-बिरंगे कपड़ों से ढकी रहती हैं, जिन पर विशेष धार्मिक प्रतीक और डिजाइन बनाए जाते हैं। रथों को खींचने के लिए मोटी और मजबूत रस्सियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें लाखों भक्त मिलकर पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ खींचते हैं।
रथ यात्रा की सबसे खास बात यह है कि इस दिन भगवान स्वयं मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों के बीच आते हैं। आम दिनों में भगवान जगन्नाथ मंदिर के भीतर रहते हैं, जहां सीमित लोग ही दर्शन कर पाते हैं। लेकिन रथ यात्रा के दिन वे रथ पर सवार होकर सभी भक्तों के बीच पहुंचते हैं और सबको अपना आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि इसे भगवान की ‘सड़क यात्रा’ भी कहा जाता है।
रथ यात्रा के दौरान पूरा पुरी शहर भक्ति और उत्सव में रंग जाता है। सड़कें फूलों, रंगोली और झंडियों से सजी होती हैं, जगह-जगह भजन-कीर्तन होते हैं और ओडिसी जैसे पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। श्रद्धालु पारंपरिक वस्त्र पहन भगवान के स्वागत में जुट जाते हैं, और मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक का रास्ता भक्ति में डूबा होता है।
रथ यात्रा के दौरान सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम किए जाते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी संगठन तैनात रहते हैं। सीसीटीवी, मेडिकल कैंप और पानी की व्यवस्था की जाती है। कई श्रद्धालु दूर-दराज से आकर पहले ही अपनी जगह सुनिश्चित कर लेते हैं ताकि यात्रा को नज़दीक से देख सकें।
जब रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, तो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वहां सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इस अवधि को भक्तगण ‘पुनर्वास काल’ कहते हैं। इसके बाद भगवानों को दोबारा रथों पर विराजमान किया जाता है और वापसी यात्रा शुरू होती है, जिसे ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। इस दिन भी भक्तों का उत्साह और भीड़ पहले दिन की तरह ही भव्य और अद्भुत होती है।
अब रथ यात्रा सिर्फ ओडिशा या भारत तक सीमित नहीं रही। सोशल मीडिया, टीवी और इंटरनेट के जरिए दुनियाभर के करोड़ों लोग इसे लाइव देखकर आस्था से जुड़ते हैं। कई श्रद्धालु अपने अनुभव फोटो और वीडियो के रूप में भी साझा करते हैं।
रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसी अनुभूति है जिसे महसूस किया जाता है। जब आप लाखों भक्तों के साथ रथ की रस्सी थामते हैं, भगवान के दिव्य दर्शन होते हैं, और भजन-कीर्तन की गूंज हर ओर फैलती है—तो मन में यही भाव आता है कि जैसे भगवान स्वयं आपके सामने उपस्थित हैं।
रथ यात्रा सिर्फ धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का गहरा अनुभव है। “जय जगन्नाथ” की गूंज आत्मा तक उतर जाती है। भक्त रथ खींचते हुए भावुक हो उठते हैं—कोई आभार व्यक्त करता है, कोई प्रार्थना करता है। इन दिनों पुरी की हवाओं में केवल श्रद्धा और आस्था बहती है, जो सबको भगवान से जोड़ देती है।
जो पहली बार रथ यात्रा में शामिल होते हैं, उनके लिए यह अनुभव जीवनभर की याद बन जाता है। यह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एकता, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, जहां हर कोई भक्त होता है और भगवान का सेवक। यही भावना इसे दिव्य बनाती है।
जब भगवान जगन्नाथ रथ पर निकलते हैं, तो लगता है जैसे ईश्वर खुद भक्तों से मिलने आए हों। लोग घंटों इंतजार करते हैं, बस एक झलक के लिए। यह रथ यात्रा हर साल भगवान का वादा है—कि वो अपने भक्तों से कभी दूर नहीं होते।
रथ यात्रा हर पल एक खास अनुभव देती है—चाहे वह पहली बार रथ छूने का एहसास हो या भगवान की झलक की खुशी। यह सिर्फ मंदिरों की दूरी नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच की आत्मिक दूरी मिटाती है। यहां भक्ति में न कोई भेद होता है, न ऊंच-नीच—बस सच्चे दिल से पुकारो, भगवान खुद आ जाते हैं। यही इसे विशेष बनाता है।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।