Ram Katha: राम को तीन शाप: मंदोदरी समेत किन-किन ने दिया शाप? जानिए असर

Ram Katha: रावण की पत्नी मंदोदरी ने भी राम को शाप दिया था, जैसे बाली और शंबूक ने भी उन्हें शापित किया था। ये शाप क्या थे और इनका राम की जिंदगी पर क्या असर हुआ, चलिए जानते हैं।

धर्म डेस्क | National Khabar

बाल्मीकि रामायण में तीन बार बताया गया है कि भगवान राम भी शापों से बच नहीं पाए। उन्हें रावण की पत्नी मंदोदरी, बाली और शंबूक ने शाप दिया, जिसका असर उनकी पूरी जिंदगी पर पड़ा। मंदोदरी और बाली के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं, लेकिन शंबूक कौन था, यह कम लोग जानते हैं।

मंदोदरी, रावण की प्रमुख पत्नी और धर्मनिष्ठ महिला थीं। वह भगवान की भक्त थीं और धार्मिक नियमों का पालन करती थीं। जब रावण ने छल से राम की पत्नी सीता का हरण कर श्रीलंका ले गया, तो मंदोदरी ने इसका कड़ा विरोध किया।

मंदोदरी ने बार-बार अपने पति को समझाया कि यह काम गलत और अधार्मिक है। उसने रावण से सीता को वापस लौटाने की विनती की, लेकिन रावण जिद्द पर अड़ा रहा। मंदोदरी को पहले से ही पता था कि इसका परिणाम भयंकर युद्ध होगा, जो लंका और रावण दोनों के लिए भारी नुकसान होगा।

रावण का युद्ध में वध

युद्ध के दौरान राम और रावण की भयंकर भिड़ंत हुई, जिसमें अंततः रावण की मृत्यु राम के हाथों हुई। रावण अमर था क्योंकि उसकी नाभि में अमृत था, जो उसे हर प्रकार की चोट से बचाता था। लेकिन उसकी नाभि ही उसकी कमजोरी थी। अगर कोई बाण उसकी नाभि में लगे तो वही उसे मार सकता था। राम ने अपनी विशेष कौशलता से वही बाण रावण की नाभि में दागा और उसे पराजित कर उसकी जान ले ली।

मंदोदरी का राम को श्राप

जब राम ने रावण का वध किया, तो मंदोदरी गहरे शोक में डूब गईं और उन्होंने राम को शाप दिया कि “जिस तरह मैं आज अपने पति के वियोग का दुःख झेल रही हूं, उसी तरह तुम्हें भी अपनी पत्नी के वियोग का दर्द सहना पड़ेगा।” यह शाप तब साकार हुआ जब राम ने अयोध्या के लोगों की निंदा के कारण सीता को त्याग दिया। इसके बाद राम और सीता का परिवार के रूप में कभी पुनः मिलन नहीं हो पाया।

तपस्वी शंबूक का श्राप

दूसरा श्राप शूद्र शंबूक ने दिया था। उसकी तपस्या से ब्राह्मण नाराज हो गए और उसे रोकने की साजिश रचने लगे। उसी समय राम के राज्य में एक ब्राह्मण के पुत्र की अकाल मृत्यु हुई। ब्राह्मणों और ऋषियों ने माना कि शंबूक की वर्णाश्रम धर्म के खिलाफ तपस्या के कारण यह हुआ।

राम के पास शंबूक की शिकायत

ब्राह्मणों और ऋषियों ने राम से शंबूक की शिकायत की, जिस पर राम ने उसका वध कर दिया। मरते समय शंबूक ने राम को शाप दिया कि उन्हें भी पत्नी और भाई से बिछड़ने का दुःख सहना पड़ेगा। यह शाप राम के जीवन में सीता के त्याग और लक्ष्मण के वनवास के रूप में दिखा।

यह घटना वाल्मीकि रामायण के “उत्तरकांड” में है, जब राम अयोध्या पर शासन कर रहे थे। एक ब्राह्मण ने बताया कि उसके पुत्र की अकाल मृत्यु राम के शासन के कारण हुई। ऋषि नारद ने इसे तपस्या नियमों के उल्लंघन से जोड़ा।

राम ने शंबूक वध किया

नारद ने बताया कि एक शूद्र शंबूक तपस्या कर रहा था, जो त्रेता युग में निषिद्ध था। राम ने शंबूक की खोज की और उस स्थान तक पहुंच गए जहाँ वह तपस्या कर रहा था। जब उन्होंने पुष्टि की कि शंबूक वास्तव में शूद्र है, तो राम ने उसका वध कर दिया।

बाली का अंतिम श्राप

सुग्रीव के बड़े भाई बाली ने भी राम को मरते समय श्राप दिया था। राम ने छुपकर बाली का वध किया था। मौत के पास आते हुए बाली ने कहा, “तुमने छल करके मेरा वध किया है, इसलिए तुम्हें भी अपने प्रियजनों से छल और वियोग का दुख सहना पड़ेगा।”

जब बाली मरने वाला था, तो उसने राम से पूछा, “हे राम! आप धर्म के जानकार हो, फिर भी आपने छुपकर मेरा वध क्यों किया? यह सही नहीं है।” राम ने कहा, “तुमने अपने छोटे भाई सुग्रीव का हक छीन लिया था, इसलिए तुम्हारा मारा जाना सही था।”

बाली ने कहा, “अगर तुमने मुझसे खुले आम युद्ध में सामना किया होता तो मैं प्रसन्न होता, लेकिन छल करने के कारण मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम्हें भी जीवन में छल और वियोग का दर्द सहना पड़ेगा।”

श्राप क्या है और अन्य संस्कृतियों में इसका स्थान

श्राप का उल्लेख न केवल भारतीय संस्कृति में, बल्कि अन्य कई संस्कृतियों में भी पाया जाता है। इसे एक अलौकिक शक्ति या दैवीय क्रोध माना जाता है, जो किसी व्यक्ति या समूह को दुख, विपत्ति या विनाश का सामना करने के लिए प्रेरित करता है। भारतीय संस्कृति में इसे “शाप” कहा जाता है, जो आमतौर पर ऋषि, देवता या पीड़ितों के शब्दों द्वारा दिया जाता था।

ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध और श्राप देने के लिए प्रसिद्ध थे। गांधारी के श्राप के कारण ही श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई थी। महाभारत में द्रौपदी ने कौरवों को कई विपत्तियों का श्राप दिया था।

ग्रीक mythology में, मेडुसा को देवी एथेना ने श्राप दिया कि वह जिसे देखेगी, वह पत्थर बन जाएगा। मिस्र में फैरो पर “ममी का श्राप” जैसी मान्यताएं थीं। यहूदी-ईसाई परंपरा में बाइबल में “कैन का श्राप” और “फिरौन का श्राप” के उदाहरण मिलते हैं। रोमन संस्कृति में दुश्मनों को नुकसान पहुंचाने के लिए “डिफिक्सियोनेस” नामक श्राप-पट्टियां होती थीं।

क्या श्राप का वैज्ञानिक पक्ष है?

विज्ञान श्राप को अंधविश्वास मानता है, लेकिन मनोविज्ञान में नोसीबो इफेक्ट के कारण इसका मानसिक और शारीरिक असर समझा जा सकता है। कई लोग इसे बुरे कर्मों का फल मानते हैं। वैज्ञानिक तौर पर इसका प्रमाण नहीं है, लेकिन इसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व गहरा है।

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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