
Written By: – Pragya Jha, National Khabar
Chhath Pooja 2025: U.P,बिहार के छठ पूजा का महत्व क्या है, छठ घाट पर जाने से पहले क्या- क्या होता है ?
छत पूजा की तैयारियों में UP-बिहार के लोग लग चुके हैं। ये एक ऐसा त्यौहार है जिसकी कई मान्यताएं हैं और यही मान्यताएं इस पर्व को बेहद खास बना देती हैं। आइये जानते हैं की छत पर्व में 4 दिन होता क्या है ?
बिहार और UP में दिवाली के कुछ दिन बाद मनाया जाने वाला लोकप्रिय पर्व छठ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्यदेव की पूजा की जाती है और दीनानाथ की पूजा करते हुए परिवार में सुख सम्रृद्ध और विकास की कामना राखी जाती है। कई मान्यताओं के हिसाब से इस पर्व को घर की महिलाऐं व पुरुष पुत्र संतान की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ व्रत करते हैं। कहा जाता है की जो भी इस व्रत को श्रद्धा और निष्ठा के साथ करता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। ये व्रत बेहद की कठिन माना जाता है क्योंकि 4 दिन तक बिना पानी के इस कठिन व्रत को पूरा किया जाता है।
इस बार 25 अक्टूबर 2025 को नहाय खाए के साथ इस पर्व की शुरुआत होगी जिसमें लौकी की सब्जी दाल और चावल जैसा सात्विक भोजन किया जाता है और छठी मैया के गीत के साथ इस पर्व की शुरुआत होती है। छठी मैया को ध्यान में रखते हुए नहाय – खाए से ही छठ पर्व की शुरुआत होती है। इस दिन व्रती महिलाऐं छठी मैया और सूर्य देव के गीत नाद करती हैं।
ALSO READ: –
उसके अगले दिन 26 अक्टूबर को खरना की शुरुआत होती है, पूरे दिन निर्जला उपवास रहता है और रात में गुड़ की खीर और रोटी के साथ खरना की समाप्ति होती है। इस खीर को सभी लोगों को वितरण करने का भी प्रावधान है। ऐसा माना जाता है की जो भी इंसान इन प्रसाद को खाता है उसके जीवन से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। व्रती को भी इसके फल स्वरुप उनकी भी मनोकामना पूरी होती है।
जिसके बाद 27 अक्टूबर को पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए सूर्य देव को संध्या कालीन अर्घ दिया जाता है। जिसमें सूर्यदेव के ढलने तक घाट पर रहा जाता है जहाँ व्रती पानी में खड़ी होती हैं और सूर्य देव और छठी मैया से मनोकामना मांगती हैं वहीं पानी से बहार सभी श्रद्धालु सुप और डाली में रखे हुए फलों और अर्घ की चीजों का ध्यान रखते हैं।
इसके बाद 28 अक्टूबर को प्रातः काल अर्ग देने की तैयारी की जाती है और सुबह 4 से 5 के बीच सभी व्रती और पूरा परिवार घाट पर सूर्यदेव से मनोकामना मांगते हुए दूध, गंगाजल से अगर देते हैं। इसके साथ ही व्रती घर पर सभी प्रशाद का पारण करती हैं और इसी के साथ इस पर्व की समाप्ति होती है।