अफगानिस्तान में तालिबानी शासन को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया चीन, भारत की क्या होगी प्रतिक्रिया?
रिपोर्ट- भारती बघेल
जहां एक तरफ 15 अगस्त के दिन हम भारतीय आजादी का जश्न मना रहे थे वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान की आजादी तालिबान संगठन ने छीन ली। सभी जानते हैं कि तालिबान एक आतंकी संगठन है जो बीते कई सालों से धर्म के नाम पर मासूम लोगों की जानें लेता आया है। धर्म के नाम पर महिलाओं पर बेबसी से जुल्म ढाता आया है। आपको बता दें कि 15 अगस्त को तालिबानियों ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को अपने कब्जे में कर लिया। इसके साथ साथ पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान की कब्जा हो गया। हैरत की बात ये है कि जो आवाम की हिम्मत थी वहां के राष्ट्रपति और सेना उन दोनों ने ही आवाम का साथ छोड़ दिया। अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए तो दूसरी तरफ अफगानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया।
चीन ने दी तालिबान शासन को मान्यता
वैसे तो राजनीति हर देश करता है, लेकिन ओछी राजनीति की उम्मीदों पर हमेशा से चीन खरा उतरता आया है। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि तालिबान कब्जे के महज एक दिन बाद ही चीन ने तालिबान के शासन को मान्यता दे दी । अपनी राजनीति की रोटियों सेंकने के लिए चीन हर हद पार करने की दम रखता है। एक तरफ अफगानी नागरिक अपनी जान बचाने के लिए एक महफूज कोना तलाश रहे हैं। बीते दिनों की घटना से हर कोई वाकिफ कि कैसे लोग प्लेन के पहियों पर लटक रहे थे। कैसे लोग बस की तरह प्लेन के पीछे भाग रहे थे। कैसे लोग ट्रेन की तरह प्लेन में बैठे थे। कैसे लड़कियां, महिलाएं रो रो कर
अपनी जिंदगी को बचाने की भीख मांग रहीं थी। कैसे स्कूल जाने वाली बच्चियां खौफ में थीं। वहीं इन सब तस्वीरों को किनारे कर चीन ने तालिबानी सत्ता को समर्थन करके उसकी हुकुमत को मजबूत करने का काम किया है।
तालिबानी शासन को लेकर क्या बोला चीन?
चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि अफगान लोग अब अपना भाग्य खुद तय कर सकेंगे, इसके लिए चीन अफगान लोगों का सम्मान करता है। चीन अफगानिस्तान से दोस्ती करना चाहता है। आपको बता दें कि इससे पहले भी चीन तालिबानियों से संबंध बनाए हुए था। मिली जानकारी के मुताबिक 28 जुलाई को चीन के विदेश मंत्री ने तालिबान की नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी। जिसमें तालिबान का मुल्ला अब्दुल गनी बरादर भी मौजूद था।
बाकी देशों से तालिबानी शासन को मान्यता मिलेगी या नहीं?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1996 में भी तालिबान की सरकार थी लेकिन तब की कहानी कुछ और थी वहीं अगर बाकी देशों से मान्यता मिलने की बात करें तो उस वक्त महज तीन देशों ने ही मान्यता दी थी। और ये तीन देश थे पाकिस्तान, UAE और सऊदी अरब। लेकिन वहीं इस बार की स्थिति अलग है। इस बार कई देश तालिबानी शासन को मान्यता देने के लिए लाइन में खड़े हैं वहीं चीन ने तो मान्यता दे भी दी।इसके अलावा यूके और नाइजीरिया दो ऐसे देश हैं जिन्होंने तालिबानी शासन को मान्यता देने से साफ इंकार कर दिया है।
क्या भारत तालिबान शासन को कूटनीतिक मान्यता देगा?
22 सितंबर 2020 को राज्यसभा में सरकार ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि ऐसा कोई भी देश नहीं है जिसे भारत ने कूटनीतिक मान्यता नहीं दी। इससे यहां स्थिति एकदम साफ हो जाती है कि अगर UN में तालिबानी शासन को मान्यता दी जाएगी तो ज़ाहिर सी बात है कि भारत भी मान्यता दे ही देगा।