आखिर क्यों टूटा ट्विन टावर ? गगनचुंबी टावर के टूटने की पूरी कहानी
रिपोर्ट: प्रज्ञा झा
रविवार को सिर्फ 9 सेकेंड के अंदर में नोएडा के बहुचर्चित बहुमंजिला इमारत को ध्वस्त कर दिया गया। इन ट्विन टावर का नाम एपेक्स (32)और सेयेन (30) थे। बाद में पाया गया कि इस बिल्डिंग को अवैध तरीके से बनाया गया है जिसके बाद यह ट्विन टावर भारत में गिराए जाने वाली सबसे बड़ी टावर में शामिल है। 30 मंजिल वाली इमारत को ट्विन टावर कहा जाता है इनकी कुल ऊंचाई 320 फिट थी। और यह नोएडा के घनी आबादी वाले इलाके में बनी हुई है । इस इमारत को गिराने के लिए करीबन 370 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। जिस इलाके में इस ट्विन टावर को ध्वस्त किया गया उस जगह हर तरफ धुंध सी फैल गई। इस गगनचुंबी इमारत को बनाने में कुल खर्चा 700 करोड रुपए का आया। लेकिन सबके मन में एक ही सवाल कौंध रहा है कि आखिर क्यों इतनी मेहनत और इतने पैसे खर्च करने के बाद इस ट्विन टावर को कोर्ट के आदेश के द्वारा गिरा दिया गया? आखिर वह वजह क्या थी जिस कारण से तीन टावर जैसी मजबूत इमारत को सिर्फ कुछ ही सेकंड में धराशाही कर दिया गया?
इन सभी सवालों का जवाब यह है ट्विन टावर को अवैध तरीके से बनाया गया था । यह कहानी शुरू होती है साल 2004 से, जब नोएडा ने सुपरटेक नाम की कंपनी को एक औद्योगिक शहर बनाने की योजना के तहत आवासी क्षेत्र बनाने के लिए जमीन आवंटित की।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2005 में नोएडा बिल्डिंग कोड और दिशा निर्देशों 1986 के तहत सुपरटेच ने प्रत्येक 10 मंजिला वाले 14 फ्लैटों की योजना तैयार की।10 मंजिला वाले 14 फ्लैटों की योजना पर यह प्रतिबंध लगाया गया कि वह 37 मीटर से ऊंची नहीं होनी चाहिए लेकिन जिस का उल्लंघन सुपरटेक ने कर दिया।
योजना के अनुसार इस 14 अपार्टमेंट और वाणिज्य के साथ एक गार्डन भी बनाया जाना था।
2006 में दिए गए नियमों के साथ यह बिल्डिंग बनानी शुरू की गई लेकिन इसमें एक बदलाव था गार्डन की जगह दो और 10 मंजिले भवन बनाना था।
आखिर 2009 में ये योजना 40 मंजिल अपार्टमेंट बनाने की बात पर खतम हुई थी पर उस वक्त में इस योजना को खारिज कर दिया गया था।
कानूनी दांव पेंच
2011 में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमे कहा गया की इस बिल्डिंग को बनाने में उत्तर प्रदेश मालिक अधिनियम साल 2010 का उल्लंघन किया गया है। इसके मुताबिक सिर्फ 16 मीटर की दूरी वाले ट्विन टावर ने नियमों का उल्लंघन किया है।
2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह मामला जाने से पहले 2009 के योजना की अपील को कोर्ट ने मंजूरी दे दी थी।
टावर को गिरने का फैसला
2014 में यह फैसला रेजिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन के पक्ष में आया और जिसके बाद आदेश दिए गए कि ट्विन टावर को ध्वस्त कर दिया जाए और यह भी कहा गया कि टावर को गिराने में सुपरटेक को भी अपना कार्य बहन करना चाहिए और उन लोगों को 14% ब्याज के साथ पैसा लौटाना चाहिए जिन्होंने यहां पर पहले से ही जमीन खरीद रखे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुपर टेक कंपनी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पहुंच गई।
अगस्त 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह माना की बिल्डिंग बनाने में घपला किया गया है और यहां पर बिल्डिंग अवैध तरीके से बनाई गई है जिसके बाद 28 अगस्त को ट्विन टावर को ध्वस्त करने के आदेश दे दिए गए।