एडिटोरियल

दोहरे चरित्र वाला नज़र आया इस्लामी संगठन ! चीन में मुस्लिमों के दमन पर चुप्पी, आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर किया भारत का घेराव

रिपोर्ट- भारती बघेल

01- सत्ताधारी भाजपा के दो राजनीतिक पदाधिकारियों ने कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की।
02- बीजेपी ने उन्हें दल से निलंबिंत कर समानता का स्पष्ट संकेत दिया।
03- भारत सरकार से सार्वजनिक माफी मांगने की चलाई जा रही है मुहिम।
04- 57 देशों के इस्लामी सहयोग संगठन ने भारत पर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का लगाया आरोप।

पिछले दिनों न्यूज़ चैनलों और इंटरनेट मीडिया पर गरमागरम बहस के दौरान सत्ताधारी भाजपा के दो राजनीतिक पदाधिकारियों ने कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की। उनके अविवेक को पहचान कर भाजपा ने अनुशासनात्मक कार्यवाही की। और उन्हें दल से निलंबित- निष्कासित किया और यह स्पष्ट किया कि उनके द्वारा व्यक्त विचार पार्टी की नहीं है। सत्ताधारी दल ने यह भी घोषणा की कि वह सभी धर्मों का सम्मान करता है। पर इन कदमों के बावजूद इस्लामी देशों में इन टिप्पणियों को लेकर बवाल खड़ा कर दिया है।

भारत सरकार से सार्वजनिक माफी मांगने की मुहिम चलाई गई। खाड़ी के कई देशों में भारतीय राजदूतों को तलब किया गया। हालांकि भारतीय राजनयिकों ने ऐसे देशों के समक्ष स्पष्ट किया कि अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जा चुकी है। फिर भी कुछ लोगों और संगठनों द्वारा भारत के खिलाफ रोष की लहर विश्व के अनेक इस्लामी देशों में फैलाई जा रही है। इससे यही लगता है कि वे अपने निहित स्वार्थों की खातिर भारत को दबाव में लेने की कोशिश कर रहे हैं।

इसमें दो राय नहीं कि 57 देशों के इस्लामी सहयोग संगठन ने ओछेपन की हद पार कर दी है। उसने आरोप लगाया है कि भारत में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हो रहा है। उसने यह फर्जी दावा भी किया कि भारत में इस्लाम के विरुद्ध घृणा का वातावरण बन रहा है। गौरतलब है कि मार्च 2022 में इसी ओआईसी ने अपने कट्टरपंथी सदस्य देश पाकिस्तान के जरिए संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम से नफरत का मुकाबला करने के लिए एक अलग अंतरराष्ट्रीय दिवस का प्रस्ताव पारित कराया था।

भारत फ्रांस समेत कई देशों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया था। और विश्व समुदाय को याद दिलाया था कि निष्पक्ष रुप से देखें तो दुनिया में बहुत से धार्मिक समुदायों का शोषण और दमन हो रहा है। केवल इस्लाम को ही एक पीड़ित पंथ का दर्जा देना अवांछित है और खतरनाक भी है। क्योंकि इस्लामोफोबिया का चोला पहनकर जिहादी आतंकी अपनी हिंसात्मक गतिविधियों की वैधता प्रदान करते हैं। सच्चाई तो यह है कि कई इस्लामी देश खुद अपने ही मुस्लिम नागरिकों के साथ औपचारिक तौर पर अत्यंत बुरा बर्ताव करते हैं।

सऊदी अरब में शिया समुदाय, ईरान में सुन्नी समुदाय, तुर्की में कुर्द समुदाय, पाकिस्तान में अहमदिया और बलोच जैसे अनगिनत मुस्लिम तबकों के लोगों को उनकी अपनी ही सरकारों ने द्वितीय श्रेणी का या उससे भी बदतर दर्जा दिया है। इन देशों और खासकर पाकिस्तान में तो गैर मुस्लिमों का जीना दूर्भर है।

आज जो इस्लामी देश और संगठन भारत पर लांछन लगा रहे हैं, अधिकतर तानाशाही व्यवस्था वाले हैं। उनके यहां मानवाधिकार केवल शासक वर्ग को ही उपलब्ध है। ओवैसी के कई सदस्य देशों में नीतिगत स्तर पर इस्लाम को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। और बाकी अल्पसंख्यकों के पंथ उसके अधीन और इस्लाम से हीन माने जाते हैं। इन देशों में धार्मिक भेदभाव और सांप्रदायिकता की प्रवृत्ति भी कई ओआईसी सदस्य देशों में ईशनिंदा कानून लागू है। इसकी आड़ में बेगुनाह लोगों और खासकर अल्पसंख्यकों को इस्लाम के अपमान के आरोप में मृत्युदंड तक दिया जाता है।

ऐसे देशों में असहिष्णुता कह सकते हैं कि कूट-कूट कर भरी है और वे अपनी इन कट्टरवादी नीतियों को विश्व भर में हावी होते देखना चाहते हैं। परंतु वैश्विक उम्मा के नाम पर उग्र विदेश नीति की अपनी सीमाएं हैं। दुनिया उसी तरह से नहीं चल सकती जैसे कुछ इस्लामी देश चलाना चाहते हैं। जो ओआईसी भारत में की गई विवादित टिप्पणी के आधार पर खुद को आहत बता रहा है उसने चीन के मुसलमानों के दमन के साथ इस्लाम के खुले निरादर पर आज तक ना तो कोई प्रतिक्रिया दी है और ना ही बीजिंग से माफी की मांग की है।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां करीब 20 करोड़ मुस्लिम चैन से रह रहे हैं और चीन जैसे निरंकुश देश में जमीन आसमान का फर्क है। जहां सैकड़ों मस्जिद तोड़ डाली गई हैं और लाखों मुस्लिम कैद खानो में बंदी है। फिर भी चीन से आर्थिक लाभ के लालच में ओआईसी के सदस्य देश भारत पर निशाना साधने में लगे हुए हैं। इस्लामी जगत का भारत और चीन के प्रति दोहरे मापदंड का एक और कारण भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इंटरनेट मीडिया का खुलापन है। और चुनावी राजनीति है।इससे रोजाना राजनीतिक बहस और विवाद उत्पन्न होते रहते हैं।

इनमें से जो हैं कुछ मुस्लिम देशों में बिजली की गति से पहुंचाए जाते हैं, क्योंकि भारतीय मूल के ही कुछ कथित उदारवादी भी इन देशों में भारत की छवि खराब करने के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। चीन में अगर कोई कम्युनिस्ट पार्टी का व्यक्ति मुस्लिमों के दमन की कोई जानकारी इस्लामिया पश्चिमी देशों को भेज दे, तो उसे उसकी कीमत अपनी जान को गंवा कर चुकानी पड़ती है।

ओआईसी के दूषित दृष्टिकोण को ठीक करना लोहे के चने चबाने के बराबर है। मोदी सरकार ने खाड़ी के अपने मित्र देशों के सहारे ओआईसी के अंदर पैठ बनाकर उनमें कश्मीर और भारत जैसे देश में इस्लाम के बारे में पाकिस्तान, तुर्की ,मलेशिया इत्यादि के द्वारा फैलाए जा रहे फरेब को दूर करने की चेष्टा भी की है। फिर भी यह संगठन अपने संकीर्ण नजरिए और राज्य से मुक्त नहीं हो पा रहा है।

इसी कारण भारत ने इस संगठन पर एक बार फिर पलटवार किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसी पर निहित स्वार्थों के चलते विभाजन का एजेंडा चलाने का जो आरोप लगाया है वह एक हकीकत है। इसके साथ ही मोदी सरकार ने मध्य पूर्व में अपने सामरिक साझेदार संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और सऊदी अरब से संपर्क कर उनसे द्विपक्षीय स्तर पर भी मामले को ठंडा करने की पहल की है।

खाड़ी के जिन देशों सचे भारत भारी विदेशी निवेश प्राप्त कर रहा है वे व्यापारिक मानसिकता के हैं। उन्हें भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बल्कि बहुत बड़ा बाजार दिखता है। कट्टरवादी विचारधारा की चपेट में फंसे ओआईसची को सुधारना मुश्किल है पर भारत इस संगठन में शामिल अपने प्रभावशाली मित्रों का साथ लेकर इस सुचना युद्ध में विजयी हो सकता है।

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