हेल्थ एंड फिटनेस

स्वस्थ रहने के लिए डॉक्टरों ने दी अपनी-अपनी सलाह ! जानिए बढ़ती गर्मी में कैसे रखें अपनी आंखों का ख्याल

रिपोर्ट- भारती बघेल

इस आर्टिकल में बताई गई बातें एक समाचार अखबार में दी गई जानकारियों के आधार पर हैं। इसलिए आपसे निवेदन है कि कोई भी टिप्स फॉलो करने से पहले एक बार अपने डॉक्टर से सलाह जरुर ले लें।

अब जीवन शैली पहले से काफी बदल चुकी है। खान-पान रहन-सहन और दिनचर्या अनियमित हो गई है। इसका नतीजा है कि लोग डायबिटीज, थायराइड, ब्लड प्रेशर और मोटापा के तेजी से शिकार हो रहे हैं। देश और दुनिया के चिकित्सा जगत के लिए यह चिंता का विषय है। चिकित्सा विशेषज्ञ अब इसे मिनेसिंग पेंडमिक यानी परेशानियों की बला मानने लगे हैं।

दवाइयां जब दो या दो से अधिक लेने की स्थिति आ जाए तो इंसुलिन की शुरुआत कर देनी चाहिए। लेकिन अभी भी लोगों में इसके प्रति ढेरों भ्रांतियां हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जाए। मोटापा की रोकथाम के लिए रसोई को सेहतमंद करना सभी के लिए आवश्यक है। मोटापा कई बीमारियों का कारण है। इसकी रोकथाम घर से ही की जा सकती है। स्वस्थ रहना है तो हमें खानपान की आदतों व दिनचर्या में संतुलन बनाना ही होगा।

गर्म मौसम में आंखों की सुरक्षा
गर्मी से बचने के लिए हम तरह-तरह के उपाय करते हैं। गर्मी में शरीर को धूप और लू से बचाने के लिए खानपान से लेकर त्वचा की देखभाल का विशेष इंतजाम किया जाता है। झुलसा देने वाले इस मौसम में हमें आंखों की सुरक्षा के प्रति भी गंभीर रहना है। थोड़ी सी असावधानी आंखों की सेहत खराब कर सकती है। इससे आंखों में जलन, खुजली, लालिमा, पानी आना व ड्राइनेस की समस्या हो सकती है।

पौष्टिक आहार को दें प्राथमिकता
भोजन में उन चीजों को शामिल करें जो आंखों की सेहत के लिए बहुत आवश्यक है। विटामिन सी, ए व मिनरल्स में भरपूर मौसमी फल सुबह के समय खाएं। फलों का सेवन सलाद के रूप में भी कर सकते हैं। हरी सब्जियां, दूध, दही ,पनीर आदि को थाली का हिस्सा बनाएं।

ठंडे पानी से धो लें आंखें
यात्रा करने या काम के सिलसिले में ज्यादा देर तक धूप में रहने से आंखें लाल हो जाती है। कभी-कभी इनमें खुजली भी होने लगती है। अक्सर हम पानी से रगड़ कर आंखें धूल लेते हैं। यह तरीका आंखों को हानि पहुंचा सकता है। गर्मियों में कम से कम दिन में दो-तीन बार ठंडे पानी से धीरे-धीरे आंखों को धुलें। धूप से आने के बाद तत्काल आंखों को धुलने से बचें। परेशानी होने पर चिकित्सक से सलाह लें।

पदम श्री डॉक्टर के. के. त्रिपाठी कहते हैं कि जागरूकता जरूरी है
डायबिटीज के रोगियों में इंसुलिन की भूमिका अहम है। अधिकांश रोगियों का शुगर अनियंत्रित रहता है। शुगर को नियंत्रित रखने के लिए दवाइयां दो या दो से ज्यादा हो जाए तो इसका अर्थ है कि बीटा सेल्स काफी तेजी से बर्बाद हो रहे हैं। ऐसे में दवाइयों का असर देर से होता है, लेकिन इंसुलिन का प्रभाव तेजी से पड़ता है। और यह बर्बाद हो रहे बीटा सेल्स को भी सक्रिय कर देता है।

चिकित्सक को चाहिए कि बिना विलंब किए डायबिटीज रोगी की काउंसलिंग कर इलाज में इंसुलिन की शुरुआत कर दें। और रोगी के मन में इंसुलिन के प्रति जो भ्रांति है उसे दूर करें। लोगों में यह भ्रांति है कि इंसुलिन की शुरुआत हो गई तो इसे जीवन भर लेना पड़ेगा। लेकिन यह भी सोचना होगा कि आप बीमारी से ग्रस्त रहना चाहते हैं या मस्त रहना चाहते हैं।

डॉक्टर अलंकार तिवारी कहते हैं कि मोटापा बीमारियों की जड़ है
देशभर में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग मोटापे से ग्रसित हैं। हालांकि आंकड़ा भारत की कुल जनसंख्या का करीब 1% ही है। लेकिन इसका असर 4 गुना माना जा सकता है। मोटापे से ही ब्लड प्रेशर डायबिटीज और हृदय की बीमारियां होती हैं। मोटापे का प्रमुख कारण अनियमित खानपान और शारीरिक श्रम की कमी है।

यह तेजी से फैल रहा है और सभी आयु वर्ग के लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। कोविड-19 में इसका असर साफ दिखा। जिनका वजन मानक से अधिक था कोरोना संक्रमित होने पर उन्हें जान गंवानी पड़ी। बच्चे फास्ट फूड और जंक फूड के आदि हो रहे हैं। इससे बचाने के लिए माताएं रसोई के कामकाज में बच्चों को भी शामिल करें, इससे उनमें पौष्टिक आहार के प्रति रुचि बढ़ेगी।

डॉ पंकज अग्रवाल कहते हैं कि मेडिकल साइंस को हिंदी में ढालें
बीमारियां अब जीवन के साथ चलने लगी हैं। इसलिए चिकित्सकों की भूमिका पहले से ज्यादा अहम हो गई है। चिकित्सकों को चाहिए कि रोगियों की जांच पर्चे पर दवाएं और अपने शोध तक अंग्रेजी भाषा की जगह हिंदी में लिखें। मैंने इसकी पहल करते हुए एक ऐप लॉन्च किया है जिसमें गर्भवती महिलाओं के थायराइड की सारी जानकारी हिंदी भाषा में है।

जमाना बदल रहा है और अब मेडिकल साइंस को भी बदलाव कर हिंदी भाषा की ओर उन्मुख होना चाहिए। रोगी के बेहतर इलाज के लिए एक चिकित्सक का उससे जुड़ना आवश्यक है। और यह काम हिंदी भाषा से ही संभव है। सभी चिकित्सकों से आग्रह है कि आप एप पर अपनी चिकित्सा प्रैक्टिस के दौरान आने वाली नई नई जानकारियों शोध और बीमारियों से बचाव की जानकारी हिंदी में अपलोड करें।

डॉ चिंतामणि कहते हैं कि स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं
स्तन कैंसर के केस बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। युवतियों में यह सबसे ज्यादा हो रहा है। इसका कारण जेनेटिक है। अक्सर यह प्रश्न उठता है कि अनुशासित जीवन और कोई नशा नहीं तो फिर कैंसर कैसे हुआ?

कैंसर अगर किसी को हो गया है तो समय पर व बेहतर इलाज से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए जागरूकता की ज्यादा जरूरत है। कैंसर के लिए लगातार प्रदूषित होता पर्यावरण भी एक बड़ा कारण है। दरअसल पर्यावरण के चलते महिलाओं के जीन में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। हालांकि समय पर पहचान हो जाए तो सर्जरी से कैंसर का इलाज अब आसान हो गया है।

डॉक्टर रितेश कुमार यादव कहते हैं कि जीवनशैली बोन फ्रैक्चर का खतरा बढ़ा रही है
ऑस्टियोपोरोसिस से हड्डी में फ्रैक्चर की आशंका बढ़ जाती है। यह बदली जीवनशैली के कारण हो रहा है। अमूमन 50 साल से अधिक उम्र की 3 महिलाओं में से एक और पांच पुरुषों में से एक की बोन डेंसिटी कम मिल रही है। इससे फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है। 50 वर्ष की उम्र के बाद शारीरिक परीक्षण कराते रहना चाहिए। नियमित व्यायाम से बोन डेंसिटी बढ़ती है। और फ्रैक्चर की आशंका कम रहती है। धूम्रपान व अल्कोहल का सेवन भी इसका खतरा बढ़ाता है।

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