भीलवाड़ा: 1200 साल से हवा में झूल रहा है ये शिवधाम, रहस्य ने सबको हैरत में डाला

भीलवाड़ा का अधरशिला महादेव मंदिर करीब 1200 साल पुराना है, जो एक विशाल चट्टान पर संतुलित होकर खड़ा है। सावन के महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। कहा जाता है कि स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे भी यहां ठहरे थे। यह मंदिर भक्ति, इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम है।
धर्म डेस्क | National Khabar
सावन की शुरुआत के साथ ही शिवभक्तों की आस्था फिर पर्वतों और पवित्र स्थलों की ओर उमड़ने लगती है। ऐसे में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित एक चमत्कारी और अनोखा शिव मंदिर इन दिनों श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह है अधरशिला महादेव मंदिर, जो न सिर्फ 1200 साल पुराना है, बल्कि अपनी अद्भुत भौगोलिक संरचना और गहरी धार्मिक मान्यताओं के कारण भी बेहद खास है। यह मंदिर एक विशाल चट्टान पर टिका हुआ है, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानो हवा में अधर में लटका हो।
आस्था, इतिहास और प्रकृति का संगम
भीलवाड़ा के पूर कस्बे में स्थित यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं बल्कि जीवित इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम भी है। कहा जाता है कि यहां श्री चौरंगी नाथ महाराज ने सदियों पहले तपस्या की थी, जिनकी जीवित समाधि आज भी मंदिर परिसर में विद्यमान है। भक्तों का मानना है कि अधरशिला महादेव के दर्शन मात्र से दुख, पीड़ा और कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अद्भुत बनावट, अटूट आस्था
मंदिर की सबसे बड़ी खासियत इसकी रचना है। यह मंदिर एक विशाल चट्टान के किनारे पर इस तरह टिका है कि लगता है किसी अदृश्य शक्ति ने इसे थाम रखा हो। यही कारण है कि इसे ‘अधरशिला महादेव’ कहा जाता है। मंदिर के महंत शंभु नाथ योगी बताते हैं कि यह स्थान केवल भक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि सदियों से साधना और ध्यान की भूमि भी रहा है। साल भर यहां श्रद्धालु आते रहते हैं, विशेष रूप से सोमवार और रविवार को भीड़ अधिक होती है, लेकिन सावन में यह संख्या हजारों तक पहुंच जाती है।
तात्या टोपे और मोर कुंड की कहानी
मंदिर से जुड़ी कई ऐतिहासिक कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक तात्या टोपे जब अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, तो कुछ समय के लिए यहीं ठहरे थे और अधरशिला महादेव के दर्शन किए थे। इसके अलावा मंदिर परिसर में स्थित मोर कुंड की भी अपनी अलग मान्यता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब यह क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ था, तब यह कुंड इतना शांत और पवित्र था कि शेर और बकरी भी यहां साथ बैठकर पानी पीते थे। यह अद्भुत दृश्य उस युग की शांति और सामंजस्य का प्रतीक माना जाता है।
क्यों जाएं अधरशिला महादेव?
अधरशिला महादेव केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि भक्ति, इतिहास और प्रकृति का अनोखा संगम है। राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित दूर-दूर से लोग यहां आकर भगवान शिव के चरणों में शीश नवाते हैं। सावन में तो यहां की भक्ति और ऊर्जा अपने चरम पर होती है। अगर आप सावन में किसी ऐसे पावन स्थल की तलाश कर रहे हैं, जहां आस्था के साथ प्रकृति और इतिहास का अद्भुत अनुभव हो, तो अधरशिला महादेव जरूर जाएं। यह मंदिर न केवल आपके मन को शांति देगा बल्कि आपको भीतर तक भक्ति और ऊर्जा से भर देगा।
इस खबर में दी गई जानकारियाँ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। नेशनल ख़बर इनकी पुष्टि नहीं करता।