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नई शिक्षा नीति पर विरोध करने वालों को आरएसएस ने घेरा

महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में इन दिनों भाषा को लेकर विवाद जारी है। इस पर आरएसएस ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उसकी नजर में देश की सभी भाषाएं ही राष्ट्रीय भाषाएं हैं। संघ ने नई शिक्षा नीति के भाषा फार्मूले का विरोध करने वाले राज्यों की आलोचना भी की। साथ ही बताया कि अपने शताब्दी वर्ष के मौके पर संघ एक लाख से ज्यादा जगहों पर हिंदू सम्मेलन और सामाजिक सद्भाव के लिए विशेष बैठकें आयोजित करेगा।

Written by Himanshi Prakash, National Khabar

‘प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो’
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ का रुख शुरू से ही स्पष्ट है कि देश की सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं और हर किसी को अपनी-अपनी भाषा में संवाद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा भी मातृभाषा में ही लेनी चाहिए। यह बात संघ की ओर से पहले ही स्पष्ट रूप से कही जा चुकी है।

भाषा विवाद क्या है?
यह विवाद नई शिक्षा नीति (NEP) में शामिल त्रिभाषा सूत्र से शुरू हुआ, जिसमें स्थानीय मातृभाषा के साथ-साथ एक भारतीय और एक विदेशी भाषा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य करने की बात कही गई है। इस प्रावधान का कई गैर-राजग शासित राज्य सरकारें विरोध कर रही हैं और इसे राजनीतिक मुद्दा बना रही हैं। इसी कड़ी में महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों पर हमले की घटनाएं भी सामने आई हैं।

प्रतिबंध की धमकी पर संघ ने दिलाया इतिहास याद
शताब्दी वर्ष में भी प्रतिबंध की धमकियों का सामना कर रहे संघ ने अपने आलोचकों को इतिहास का आईना दिखाया। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ पर पहले भी कई बार प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन वे कभी कोर्ट, कभी कानून व्यवस्था और कभी जनआंदोलनों के चलते हटाने पड़े। ये प्रतिबंध कानूनी रूप से कभी ठहर नहीं सके।

केरल में वामपंथी मंत्रियों द्वारा ‘भारत माता’ को संघ से जोड़ने पर उन्होंने कहा कि भारत माता की अवधारणा संघ की देन नहीं है। हमारी परंपरा में भारत को माता के रूप में देखने की भावना सदियों पुरानी है। ऐसे में पहले इतिहास पढ़ लेना चाहिए।

शताब्दी वर्ष में क्या करेगा आरएसएस?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर देशभर में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित करेगा। संघ कार्यालय केशव कुंज में संपन्न तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक में यह तय किया गया कि देशभर में एक लाख तीन हजार 19 स्थानों पर हिंदू सम्मेलन होंगे।

सुनील आंबेकर ने बताया कि ये सम्मेलन मंडल और शहरी बस्तियों में आयोजित किए जाएंगे, जिनमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। वर्तमान में संघ की रचना के अनुसार, देश में 58,964 मंडल और 44,055 बस्तियां हैं।

इसके अलावा खंड और नगर स्तर पर 11,360 सामाजिक सद्भाव बैठकेंऔर संगठनात्मक रूप से 924 जिलों में विभिन्न संस्थाओं, पेशों और विषयों पर आधारित गोष्ठियों का आयोजन भी किया जाएगा। इनका उद्देश्य राष्ट्र के विभिन्न मुद्दों पर समग्र दृष्टिकोण तैयार करना है।

उन्होंने बताया कि गृह संपर्क अभियान भी जोरशोर से चलाया जाएगा। ऐसा अभियान पहले वर्ष 2000 में संघ की 75वीं वर्षगांठ पर भी चलाया गया था।

नक्सलवाद और मणिपुर पर संतोष

बैठक में मणिपुर में धीरे-धीरे लौटती शांति और नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सलवाद के खात्मे की प्रगति पर संतोष जताया गया। संबंधित प्रांत प्रचारकों ने इन विषयों पर अपनी रिपोर्ट साझा की।

आंबेकर ने कहा कि जब किसी स्थान पर हालात बिगड़ते हैं तो सुधार में समय लगता है, लेकिन पिछले एक साल में मणिपुर में सुधार की दिशा में बदलाव दिखा है। वहां मैतेयी और कुकी समुदायों के बीच संवाद शुरू हुआ है और संघ के स्वयंसेवक भी समाधान की दिशा में काम कर रहे हैं।

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