धर्म

जब औरंगजेब ने शिवलिंग पर चलाई तलवार, तो बहने लगी खून की धार, चमत्कार देख रह गया दंग!

प्रयागराज के दशाश्वमेध घाट पर स्थित यह प्राचीन शिवलिंग अपनी अद्भुत कथा के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं कि जब एक बार औरंगजेब यहां पहुंचा, तो उसने इसे तोड़ने के इरादे से अपनी तलवार चला दी। तभी शिवलिंग से रक्त की धार बह निकली। यह चमत्कार देख औरंगजेब घबरा गया और वहां से तुरंत भाग खड़ा हुआ।

धर्म डेस्क | National Khabar

आस्था की नगरी प्रयागराज अपनी धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के कारण देशभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। यही वह स्थान है, जहां भगवान ब्रह्मा द्वारा किए गए पहले यज्ञ के प्रमाण मिलते हैं। प्रयागराज के दारागंज में गंगा किनारे स्थित दशाश्वमेध घाट पर भगवान ब्रह्मा द्वारा स्थापित प्राचीन शिवलिंग आज भी विद्यमान है, जिसे देखने और पूजने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।

औरंगजेब का हमला और चमत्कार

मुगल काल के दौरान, 1658 ईस्वी में औरंगजेब अपने भाई शाह शुजा को पराजित करने के उद्देश्य से प्रयागराज आया था। अपने अभियान के दौरान उसने शहर के कई मंदिरों में घुसकर मूर्तियां और शिवलिंग खंडित किए।

मंदिरों के विध्वंस के लिए कुख्यात औरंगजेब जब गंगा किनारे स्थित दशाश्वमेध घाट के इस शिवलिंग के बारे में सुनता है, तो वह इसे भी नष्ट करने के इरादे से यहां पहुंचता है। जब उसने तलवार से शिवलिंग पर वार किया, तो उसमें से रक्त की धार बह निकली। यह दृश्य देखकर औरंगजेब भयभीत हो गया और उसे जीवित मानते हुए शिवलिंग को वहीं छोड़कर चला गया।

अद्वितीय ब्रह्मेश्वर शिवलिंग

महापुराणों और पूर्वाचार्यों के अनुसार, सनातन धर्म में खंडित मूर्ति की पूजा निषिद्ध मानी जाती है। इसलिए बाद में आदि शंकराचार्य ने इस स्थान पर ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना की। यह पूरे भारत का एकमात्र शिवलिंग है, जहां शिव और ब्रह्मा दोनों की पूजा एक साथ होती है।

सावन में विशेष महत्व

सावन के महीने में गंगा किनारे स्थित दशाश्वमेध घाट का यह शिवलिंग विशेष रूप से पूजनीय हो जाता है। मान्यता है कि इसके दर्शन और पूजन से व्यक्ति के सभी दोष और कष्ट दूर हो जाते हैं। यदि किसी की ग्रह दशा प्रतिकूल हो, पारिवारिक समस्याएं हों या मानसिक अशांति हो, तो सावन में इस शिवलिंग पर गंगा जल से अभिषेक करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

सावन में इस शिवलिंग का दूध, दही और शहद से अभिषेक करने की परंपरा है। त्रिवेणी संगम के समीप स्थित इस पवित्र स्थान का महत्व इतना अधिक है कि यहां बनारस समेत कई स्थानों से भक्त गंगा जल भरकर लाते हैं और भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।

इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

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