धर्म

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: 12 में अंतिम, जहां दर्शन से पूरी होती है संतान की कामना

भारत भर में भगवान शिव के कुल 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। इन्हीं द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अंतिम स्थान पर आता है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग। इसकी खास बात यह है कि यहां शिव भक्तों को विशेष रूप से संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है। यह दिव्य ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद में स्थित है और निसंतान दंपतियों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है।

धर्म डेस्क | नेशनल खबर

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में अंतिम और अत्यंत पावन माना जाता है। यह स्वयंभू ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद के बरेल गांव में स्थित है, जिसे श्रद्धालु घुश्मेश्वर महादेव के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान शिव की आराधना करने से निसंतान दंपतियों को संतान का आशीर्वाद मिलता है।

हर साल दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी सूनी गोद लेकर इस मंदिर में आते हैं और शिव की कृपा से उनकी मनोकामना पूरी होती है। यहां से जुड़ी कई चमत्कारी कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कथा में भगवान शिव ने अपने भक्त के मृत पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया था। तभी से यह स्थान संतान सुख का वरदान देने वाला धाम माना जाता है।

कहां स्थित है यह ज्योतिर्लिंग?

यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद (देवगिरी) के पास बरेल गांव में स्थित है। इसे अजंता-एलोरा की गुफाओं के समीप भी देखा जा सकता है। घृष्णेश्वर को घुश्मेश्वर महादेव भी कहते हैं, क्योंकि इसका नाम भगवान शिव की अनन्य भक्त घुश्मा के नाम पर पड़ा।

इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

कहा जाता है कि प्राचीन काल में सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ देवगिरी पर्वत पर रहता था। उनकी कोई संतान नहीं थी और ज्योतिषियों ने बताया कि सुदेहा कभी गर्भवती नहीं हो सकती। तब सुदेहा ने अपने पति की शादी अपनी छोटी बहन घुश्मा से करवा दी।

घुश्मा भगवान शिव की परम भक्त थी। वह हर दिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा और तालाब में विसर्जन करती। कुछ समय बाद उसे एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। यह देखकर सुदेहा को ईर्ष्या होने लगी। एक रात उसने घुश्मा के पुत्र को मारकर उसी तालाब में फेंक दिया, जहां घुश्मा शिवलिंग विसर्जित करती थी।

सुबह जब यह बात सबको पता चली तो चारों ओर शोक छा गया। लेकिन घुश्मा ने किसी पर क्रोध नहीं किया और रोज़ की तरह शांत मन से शिवलिंग बनाकर तालाब में विसर्जन करने चली गई। जैसे ही उसने शिवलिंगों का विसर्जन किया, भगवान शिव स्वयं प्रकट हो गए। उन्होंने उसका पुत्र जीवित कर दिया और सुदेहा को दंड देने के लिए त्रिशूल उठाया।

तभी घुश्मा ने भगवान से प्रार्थना की कि उसकी बहन को माफ़ कर दिया जाए। घुश्मा की भक्ति और क्षमा देखकर महादेव प्रसन्न हो गए। उन्होंने वरदान दिया कि वे इस स्थान पर निवास करेंगे और इसका नाम भक्त घुश्मा के नाम पर घुश्मेश्वर होगा।

आज भी मौजूद है वह सरोवर

जहां घुश्मा पार्थिव शिवलिंगों का विसर्जन करती थी, वह पवित्र सरोवर आज भी मंदिर परिसर में विद्यमान है। मान्यता है कि इस सरोवर के दर्शन और पूजन मात्र से निसंतान दंपतियों की गोद भर जाती है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

क्यों खास है घृष्णेश्वर?

यह मंदिर न केवल ज्योतिर्लिंग होने के कारण महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भक्ति, क्षमा और शिव कृपा का जीवंत उदाहरण भी है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु अपनी कामनाओं के साथ आते हैं और शिव का आशीर्वाद पाकर लौटते हैं।

इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

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