धर्म

आज पूरी होगी जगन्नाथ यात्रा: क्या होता है ‘बाहुड़ा’ और क्यों है खास?

एक बार फिर पूरी नगरी भक्ति और परंपरा की आभा से जगमगा उठी है। आज भगवान जगन्नाथ अपने निवास लौटेंगे। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु हरि बोल के जयकारों और भगवा-सफेद रंग की उमंग भरी लहरों के साथ पुरी की ग्रांड रोड पर उमड़ पड़ेंगे। बाहुड़ा केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा और प्रभु से जुड़ने का दिव्य उत्सव भी है।

धर्म डेस्क | National Khabar

भगवान जगन्नाथ अपने मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर में आराम करने के बाद अब अपने मंदिर लौटने जा रहे हैं। इस दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटे हुए हैं।गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ ने 9 दिन तक दिव्य विश्राम किया। अब वे अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने मूल निवास श्रीमंदिर लौटने जा रहे हैं। इस शुभ यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है, जो हर साल होने वाली रथ यात्रा की वापसी यात्रा होती है।

क्या है बाहुड़ा यात्रा?

भगवान जगन्नाथ की वापसी यात्रा: बाहुड़ा का पर्व और उसकी भव्यता
पुरी एक बार फिर भक्ति और आस्था की अलौकिक छटा से सराबोर हो उठी है। भगवान जगन्नाथ, जिन्होंने पिछले 9 दिनों तक अपनी मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर में विश्राम किया, अब अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर लौटने के लिए निकल पड़े हैं। इस दिव्य अवसर पर लाखों श्रद्धालु हरि बोल के जयकारों के बीच भगवान के दर्शन के लिए उमड़ पड़े हैं। रथ यात्रा की इस वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है।

क्या है बाहुड़ा यात्रा?

‘बाहुड़ा’ शब्द ओड़िया भाषा का है, जिसका अर्थ होता है ‘वापसी’। यह यात्रा दरअसल रथ यात्रा का ही दूसरा चरण है, जिसमें भगवान गुंडिचा मंदिर से लौटकर अपने मूल निवास श्रीमंदिर पहुंचते हैं। बाहर जाने वाली रथ यात्रा की ही तरह यह भी उतनी ही भव्य होती है, बस दिशा विपरीत होती है।

तीनों रथ — भगवान बलभद्र का तालध्वज, देवी सुभद्रा का दर्पदलन और भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष — पहले ही ‘दक्षिण मोड़’ ले चुके हैं और अब गुंडिचा मंदिर के नकाचना द्वार के पास खड़े हैं।

मौसी मां के मंदिर पर रुकेंगे भगवान

परंपरा के अनुसार, रथ यात्रा के दौरान भगवानों का रथ अर्धासनी मंदिर (मौसी मां का मंदिर) पर थोड़ी देर रुकता है। वहां भगवान को विशेष मिठाई पोड़ा पीठा का भोग लगाया जाता है, जिसे चावल, गुड़, नारियल और दाल से बनाया जाता है।

सुबह की शुरुआत और अनुष्ठान

आज दिन की शुरुआत तड़के 4 बजे मंगला आरती से हुई। इसके बाद तड़प लगी, रोजा होम, अबकाश, सूर्य पूजा, द्वारपाल पूजा, गोपाल बलभ और सकाला धूप जैसे अनुष्ठान संपन्न हुए। सेनापतलगी अनुष्ठान के जरिए भगवानों को यात्रा के लिए सजाया और तैयार किया गया।

पहंडी और छेरा पहंरा की रस्में

दोपहर 12 से 2:30 बजे तक पहंडी (भगवानों को रथ तक लाने) की रस्म होगी। इसके बाद गजपति महाराज दिव्यसिंह देव छेरा पहंरा करेंगे, जिसमें वे सोने की झाड़ू से रथ बुहारते हैं, जो समर्पण और समानता का प्रतीक है।

शाम 4 बजे के बाद जब रथों में लकड़ी के घोड़े जुड़ जाएंगे, तब भक्तगण रथ खींचना शुरू करेंगे। पहले भगवान बलभद्र का तालध्वज, फिर देवी सुभद्रा का दर्पदलन और अंत में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष चलेगा।

आगे का कार्यक्रम

  • 6 जुलाई: सुनाबेशा — भगवान रथों पर स्वर्ण आभूषण पहनकर दर्शन देंगे।
  • 8 जुलाई: नीलाद्री बिजे अनुष्ठान — भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा श्रीमंदिर लौटेंगे और रथ यात्रा का समापन होगा।

बाहुड़ा: सिर्फ यात्रा नहीं, आत्मा से जुड़ने का उत्सव

बाहुड़ा यात्रा महज भगवान की वापसी यात्रा नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का पर्व है। लाखों श्रद्धालु इस दिन अपने भाव और श्रद्धा से भगवान को विदा करते हैं और उनके लौटने का उत्सव मनाते हैं।

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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