गांधारी का आक्रोश: महाभारत के दो पात्रों को दिया श्राप, शकुनि को भी सुनाई खरी-खोटी

महाभारत की कथा में गांधारी को एक बुद्धिमान और विवेकशील महिला के रूप में जाना जाता है। लेकिन क्रोध में आकर उन्होंने दो लोगों को श्राप दे दिया, जिसका प्रभाव साफ नजर आया।
धर्म डेस्क | National Khabar
महाभारत के युद्ध के दौरान और उसके बाद अगर कोई सबसे ज्यादा दुखी थी, तो वह थीं गांधारी। उन्होंने युद्ध रोकने की हर मुमकिन कोशिश की, मगर वह नाकाम रहीं। इस युद्ध में उन्होंने अपने सारे 100 पुत्र खो दिए और शोक के समुद्र में डूब गईं। क्रोध और पीड़ा से भरी गांधारी ने दो लोगों को भयानक श्राप दिया, जिनका विनाश भी निश्चित हो गया। इनमें से एक उनका अपना भाई शकुनि था।
पांडवों को श्राप देने का उनका मन तो हुआ, मगर उन्होंने खुद को रोक लिया। लेकिन शकुनि और दूसरे व्यक्ति को उन्होंने नहीं बख्शा। उनका साजिशी भाई शकुनि, जो कुरु वंश के विनाश का मुख्य कारण बना, भी उनके श्राप से बच नहीं सका।
गांधारी के विवाह के बाद शकुनि भी हस्तिनापुर आकर बस गया। वह अपने परिवार की बर्बादी के लिए कुरु वंश को दोषी मानता था और बहन की शादी नेत्रहीन धृतराष्ट्र से होने के लिए भी उन्हें जिम्मेदार ठहराता था। बाद में घटनाएं कुछ ऐसी घटीं कि शकुनि के पिता और कई परिजन धृतराष्ट्र के गुस्से का शिकार हो गए। यही वजह थी कि गांधारी के दिल में भी उसके प्रति गुस्सा भर गया और उसने उसे भी श्राप दे डाला।
शकुनि ने शुरू से ही कुरु वंश के विनाश की ठान ली थी। उसने बचपन से ही कौरवों के मन में पांडवों के प्रति ईर्ष्या और दुश्मनी के बीज बो दिए, ताकि दोनों भाइयों के बीच कभी मेल-मिलाप न हो सके। पांडवों को जो भी दुख और यातनाएं झेलनी पड़ीं, उनके पीछे कहीं न कहीं शकुनि की चालें ही थीं। वह हमेशा धृतराष्ट्र को भड़काता और पांडवों के खिलाफ फैसले लेने के लिए उकसाता रहा। महाभारत का विनाशकारी युद्ध भी उसकी इन्हीं साजिशों का चरम था।
गांधारी ने कई बार अपने भाई को चेताया
गांधारी जानती थीं कि उसका भाई शकुनि ही दुर्योधन के मन में पांडवों के प्रति नफरत भर रहा है। बचपन से ही उसने दुर्योधन को इस तरह भड़काया कि वह पांडवों को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मान बैठा। इसी वजह से गांधारी समय-समय पर अपने भाई को समझाती रहती थीं, उसे रोकने की कोशिश करतीं और उस पर गुस्सा भी होती थीं। लेकिन शकुनि पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ और उसने अपनी चालें जारी रखीं।
गांधारी का क्रोध और श्राप: शकुनि, कृष्ण और महाभारत की त्रासदी
महाभारत युद्ध के दौरान सबसे ज़्यादा दुख और पीड़ा अगर किसी ने झेली, तो वह थीं गांधारी। अपने सभी सौ पुत्रों को खोकर उनका दिल टूट गया। उन्होंने युद्ध रोकने की हर मुमकिन कोशिश की थी, मगर किसी ने उनकी बात नहीं मानी। अंत में जब सब कुछ विनाश हो गया, तो वह अपने भाई शकुनि और कृष्ण पर गहरे गुस्से में आ गईं और उन्हें भयानक श्राप दे दिया।
बार-बार चेतावनी देने के बाद भी न माने शकुनि
गांधारी को शुरू से पता था कि उसका भाई शकुनि ही दुर्योधन के दिल में पांडवों के खिलाफ ज़हर भर रहा है। बचपन से ही वह उसे भड़काता रहा और नफ़रत सिखाता रहा। गांधारी ने कई बार शकुनि को समझाया, गुस्सा भी किया, मगर उसने कभी उनकी बात नहीं मानी। जब महाभारत का युद्ध हुआ और सब खत्म हो गया — कौरवों का राजपाट उजड़ गया, दुर्योधन की दुखद मौत हुई — तब गांधारी का गुस्सा फूट पड़ा।
शकुनि को दिया श्राप
महाभारत के अंतिम दिनों में गांधारी ने शकुनि को श्राप दिया —
“जिस तरह तुमने हस्तिनापुर में झगड़े और नफ़रत के बीज बोए, उसका फल तुम्हें भुगतना होगा। न केवल इस युद्ध में तुम मारे जाओगे, बल्कि तुम्हारा गांधार भी हमेशा अशांत रहेगा। वहां कभी सुख-शांति और समृद्धि नहीं आ पाएगी।”
और सच में यही हुआ। शकुनि युद्ध में मारा गया और गांधार (आज का अफगानिस्तान) हमेशा संघर्ष और अशांति से जूझता रहा।
कृष्ण पर भी उतरा गुस्सा
गांधारी ने अपने गुस्से को पांडवों पर नहीं उतारा, बल्कि भीम को डांटकर छोड़ दिया। उन्होंने कहा —
“भीम, तुमने युद्ध के नियम तोड़कर मेरे बेटे दुर्योधन को कमर के नीचे मारा और दुशासन का खून पिया। योद्धा ऐसा नहीं करते।”
मगर उन्होंने भीम को कोई श्राप नहीं दिया। उनका असली क्रोध कृष्ण पर उतरा।
गांधारी ने कृष्ण से कहा —
“तुम चाहते तो यह युद्ध रुक सकता था। मगर तुमने इसे होने दिया। मेरे सौ बेटों की मौत और हमारे वंश के विनाश के लिए तुम जिम्मेदार हो। इसलिए मैं तुम्हें और तुम्हारे वृष्णि वंश को श्राप देती हूं कि आज से 36 साल के भीतर तुम्हारा पूरा परिवार एक-दूसरे के हाथों मारा जाएगा। तुम्हारे घरों में भी वही मातम होगा, जो आज हमारे घर में है।”
और जैसा उन्होंने कहा, वैसा ही हुआ। 36 साल बाद यादवों का नाश हो गया।
पांडवों को क्यों छोड़ा?
गांधारी ने पांडवों के प्रति भी गुस्सा दिखाया, लेकिन उन्हें श्राप नहीं दिया। इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं —
- धर्मनिष्ठा: पांडवों ने धर्म के रास्ते पर चलकर लड़ाई लड़ी।
- सत्य का साथ: गांधारी जानती थीं कि कौरवों ने अधर्म किया था, और पांडवों ने धर्म का।
- युधिष्ठिर की विनम्रता: युद्ध के बाद युधिष्ठिर उनके पास आए, माफी मांगी और पैरों में झुक गए। उनकी विनम्रता ने गांधारी का दिल पिघला दिया।
श्राप क्यों असर करता था?
पुराने समय में ऋषि-मुनि और साधक गहरी तपस्या और साधना करते थे। इस तप और शक्ति से उनकी वाणी में इतनी ताकत होती थी कि उनका दिया श्राप सच हो जाता था। यही वजह थी कि गांधारी के श्राप ने भी अपना असर दिखाया।
गांधारी का क्रोध, उनका दुख और उनके श्राप महाभारत की सबसे भावुक और शिक्षाप्रद घटनाओं में से एक हैं। उन्होंने अपने भाई और कृष्ण दोनों को जिम्मेदार मानकर जो कहा, वह इतिहास में अमिट हो गया।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।