
बिहार की सियासत में चिराग पासवान फिर अहम भूमिका में हैं। एनडीए में रहते हुए भी उनका रुख ऐसा है कि कई लोग असहज हैं। कानून-व्यवस्था पर उनके हमलों से लगता नहीं कि वे पूरी तरह एनडीए के साथ हैं। इस बीच जीतन राम मांझी भी गठबंधन में सक्रिय किरदार बने हुए हैं।
Written by Himanshi Prakash, National Khabar
मांझी ने चिराग पासवान के बिहार में कानून-व्यवस्था को लेकर बार-बार नीतीश कुमार पर हमले की तुलना महाभारत के अभिमन्यु से की है। उनका कहना है कि युवा नेता कई बार शासन की जटिलताओं को पूरी तरह नहीं समझ पाते। मांझी ने कहा कि कभी-कभी भरोसेमंद लोग भी हालात की बारीकियों को नजरअंदाज कर बयान दे देते हैं। उन्होंने चिराग को एनडीए का एक अच्छा नेता बताया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि युवाओं में अनुभव की कमी होती है। “अभिमन्यु पूरी ताकत से आगे बढ़ा, लेकिन चक्रव्यूह की पूरी परतें समझ नहीं पाया,” मांझी ने चिराग के संदर्भ में यही इशारा किया।
मांझी की यह बात सोचने पर मजबूर करती है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या चिराग को चक्रव्यूह में उतरने के लिए कहीं और से शह मिल रही है?
इसी वजह से आज बिहार में 2020 का नारा “मोदी जी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं” एक बार फिर याद किया जा रहा है। चिराग के बयानों और उनकी रणनीति को देखकर लोग पूछ रहे हैं कि क्या वह पुराने रास्ते पर लौट रहे हैं? साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि कहीं यह सब बीजेपी की किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा तो नहीं?
2020 के विधानसभा चुनाव में क्या हुआ था?
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अपनी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को एनडीए से अलग कर लिया और नीतीश कुमार के खिलाफ नारा दिया — “मोदी जी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।” यह कदम साफ़ तौर पर नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए उठाया गया था। चिराग ने इसी रणनीति के तहत जेडीयू के खिलाफ 137 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन बीजेपी के खिलाफ एक भी प्रत्याशी खड़ा नहीं किया।
चिराग की रणनीति असरदार साबित हुई। जेडीयू की सीटें 115 से घटकर महज 43 रह गईं और पार्टी एनडीए में छोटे भाई की भूमिका में आ गई। दूसरी तरफ बीजेपी ने 74 सीटें जीतकर गठबंधन में अपनी स्थिति और मजबूत कर ली। इसके बावजूद, नीतीश कुमार के व्यक्तित्व का ही असर था कि बीजेपी ने उन्हें दरकिनार नहीं किया और उन्हें ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर सरकार बनाई।
हालांकि, इस रणनीति का नुकसान खुद चिराग की पार्टी को भी उठाना पड़ा। एलजेपी को पूरे चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली। साफ था कि अगर चिराग एनडीए के साथ रहकर चुनाव लड़ते तो उनकी सीटें कम से कम दहाई के आंकड़े में होतीं। लेकिन नीतीश को कमजोर करने की इस रणनीति का इनाम चिराग को बाद में केंद्रीय मंत्री के रूप में मिला।
2025 का परिदृश्य: पुराना नारा, नई रणनीति?
चिराग पासवान खुद को मोदी का “हनुमान” बताकर और बीजेपी के प्रति निष्ठा दिखाकर यही संदेश दे रहे हैं कि उनकी रणनीति बीजेपी के इशारे पर है। 2025 चुनाव से पहले उन्होंने सभी 243 सीटों पर लड़ने की बात कहकर हलचल मचा दी।
फिलहाल वे एनडीए के साथ हैं, केंद्र में मंत्री हैं और 2024 में बिहार की सभी 5 लोकसभा सीटें जीतकर मजबूत सहयोगी बने। हालांकि, बिहार में नीतीश की नीतियों और कानून-व्यवस्था पर वे लगातार सवाल उठाते रहे हैं।
नीतीश सरकार पर तीखे हमले
चिराग ने नालंदा में हुए दोहरे हत्याकांड का हवाला देते हुए कहा कि बिहार में अपराध अपने चरम पर है और मुख्यमंत्री के गृह जिले में ऐसी घटनाएं होना अपराधियों के हौसले दिखाता है।
पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या के बाद भी चिराग ने कहा — “जिस सरकार का मैं समर्थन करता हूं और जो कभी सुशासन के लिए जानी जाती थी, उसमें अब कानून-व्यवस्था की हालत चिंताजनक है।”
मुजफ्फरपुर में एक नौ साल की दलित बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले पर चिराग ने नीतीश कुमार को पत्र लिखकर कहा कि यह घटना न केवल अमानवीय है, बल्कि बिहार की सामाजिक व्यवस्था और सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी की विफलता भी है।
अप्रत्यक्ष वार और धृतराष्ट्र का तंज
चिराग ने 2025 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने की घोषणा करते हुए कहा कि कई लोग उनके बिहार लौटने से घबरा रहे हैं और उनके रास्ते में अड़चनें डालने की कोशिश कर रहे हैं। इसे नीतीश कुमार और जेडीयू पर परोक्ष हमला माना गया।
इसी बीच नीतीश कुमार के जीजा अरुण भारती का भी बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा — “राष्ट्र के लिए आप धृतराष्ट्र नहीं बन सकते। गठबंधन में रहकर समाज की आवाज़ अपने सहयोगियों तक पहुंचाना भी ज़िम्मेदारी है।” हालांकि उन्होंने सीधे नीतीश का नाम नहीं लिया, लेकिन माना गया कि यह बयान भी उन्हीं पर निशाना था।
इस पूरी स्थिति ने बिहार की सियासत में एक बार फिर चिराग को केंद्र में ला खड़ा किया है।
बीजेपी का दोहरा फायदा और चिराग की भूमिका
पत्रकार समीर चौगानकर के मुताबिक, बीजेपी ने चिराग पर चुप्पी साध रखी है और उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। 2020 में चिराग ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा और 42 सीटों पर एनडीए को हराया, जिससे जेडीयू कमजोर हुई।
माना जाता है कि चिराग की रणनीति बीजेपी के इशारे पर थी, क्योंकि बीजेपी बिहार में जेडीयू को कमजोर कर खुद मजबूत होना चाहती है। नीतीश अब बुजुर्ग हैं, उनकी पकड़ ढीली पड़ रही है और अति-पिछड़ा वोट बैंक भी अस्थिर हो सकता है। बीजेपी उन्हें बाहर किए बिना धीरे-धीरे कमजोर करना चाहती है ताकि बिहार में नंबर-1 बन सके।
बीजेपी की रणनीति हो सकती है कि चिराग को उभारकर दलित-महादलित वोटों को अपने पाले में लाए। बिहार में दलित वोटर 19% हैं, जिनमें 5-6% पासवान समुदाय चिराग की ताकत है। राजगीर के बहुजन संकल्प समागम में अन्य दलित जातियों का समर्थन मिलने से चिराग उत्साहित हैं। अगर नीतीश फिर 243 सीटों पर लड़ते हैं, तो चिराग की सक्रियता एनडीए को दोहरा फायदा दे सकती है — जेडीयू कमजोर और बीजेपी मजबूत।