धर्म

सावन में भोलेनाथ के भक्त क्यों नहीं कटवाते बाल-दाढ़ी? वजह जानकर रह जाएंगे हैरान!

सावन की परंपराओं और नियमों के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर छिपा होता है। दाढ़ी और बाल न कटवाना भी ऐसी ही परंपरा है, जो आस्था, आत्मसंयम और शरीर की रक्षा – इन तीनों से जुड़ी हुई है।

धर्म डेस्क | National Khabar

सावन का महीना शिव भक्तों के लिए आस्था और तपस्या का विशेष समय लेकर आता है। इस दौरान हर ओर शिवालयों में रुद्राभिषेक होते हैं, कांवड़ यात्राएं निकलती हैं और भोलेनाथ के जयकारों से माहौल गूंज उठता है। साल 2025 में यह पावन महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है। सावन में कई परंपराएं निभाई जाती हैं, जिनमें से एक है — बाल और दाढ़ी न कटवाना। आपने भी देखा होगा कि इस महीने कई लोग बाल और दाढ़ी नहीं बनवाते। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे वजह क्या है?

धार्मिक दृष्टिकोण क्या कहता है?
सावन को शिव भक्ति और साधना का समय माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान व्यक्ति को दिखावे और सजावट से दूर रहकर सादगी अपनानी चाहिए। यह महीना पूजा-पाठ, व्रत और ध्यान के लिए होता है, न कि शरीर को सजाने-संवारने के लिए।

बाल कटवाने या दाढ़ी बनवाने में न केवल समय लगता है, बल्कि मन भी इधर-उधर भटकता है। इसलिए भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे इन कार्यों से बचें और पूरी तरह भक्ति और संयम में लीन रहें। विशेष रूप से पुरुषों के लिए यह नियम पालन करने योग्य माना जाता है।

एक मान्यता यह भी है कि शरीर पर ब्लेड या छुरी चलाना तपस्या में विघ्न डालता है। व्रत करने वालों के लिए तो यह और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा करने से उनका व्रत अधूरा रह सकता है।

वैज्ञानिक वजह क्या कहती है?
अगर इस परंपरा को विज्ञान की नजर से देखें तो इसके पीछे भी ठोस कारण नजर आते हैं। सावन का महीना यानी मानसून का समय। इस दौरान नमी बढ़ जाती है और त्वचा पर चोट लगने का खतरा ज्यादा हो जाता है।

बाल कटवाते या दाढ़ी बनवाते समय अगर त्वचा कट जाए, तो नमी के कारण घाव जल्दी नहीं भरते और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। खासतौर पर जिनकी त्वचा संवेदनशील होती है, उनके लिए यह समस्या और गंभीर हो सकती है।

इसके अलावा, बाल और दाढ़ी चेहरे की त्वचा को बाहरी धूल, नमी और कीटाणुओं से बचाने का काम करते हैं। सावन में फंगल इंफेक्शन और त्वचा संबंधी परेशानियां बढ़ जाती हैं। ऐसे में बाल और दाढ़ी एक तरह की प्राकृतिक ढाल का काम करते हैं और त्वचा को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।

इस खबर में दी गई जानकारियाँ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। नेशनल ख़बर इनकी पुष्टि नहीं करता।

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