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BMC: मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के सहारे खोई ताकत वापस पाने की जद्दोजहद में मनसे

BMC चुनावों से पहले मनसे एक बार फिर मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के मुद्दों को लेकर सक्रिय हो गई है। पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन दोबारा हासिल करने की कोशिश में जुटी है और शिवसेना (UBT) के साथ संभावित गठबंधन के जरिए सत्ता में वापसी करने की तैयारी कर रही है।

Written by Himanshi Prakash, National Khabar

राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) हाल के दिनों में अपनी आक्रामक गतिविधियों को लेकर लगातार सुर्खियों में है। कभी टोल नाकों पर तोड़फोड़, कभी ऑटो चालकों के साथ झड़प, तो कभी दुकानदारों पर मराठी भाषा लागू करने के लिए उग्र प्रदर्शन — मनसे कार्यकर्ताओं की ऐसी कार्रवाइयाँ चर्चा का विषय बनी हुई हैं। यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है, जब बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के चुनाव करीब हैं। सवाल यह है कि मनसे इस दौर में अचानक इतनी सक्रिय क्यों हो गई है? क्या इसके पीछे कोई सोची-समझी राजनीतिक रणनीति है? आइए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।

सूबे में लगातार कमजोर हो रही है मनसे की पकड़
राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना की थी। शुरुआत से ही पार्टी का मुख्य एजेंडा ‘मराठी मानुस’ के हितों की रक्षा करना और हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाना रहा है। 2009 के विधानसभा चुनाव में मनसे ने 13 सीटें जीतकर अपनी ताकत का अहसास कराया था, लेकिन 2014 और 2019 के चुनावों में उसका प्रदर्शन लगातार गिरता गया। 2024 के विधानसभा चुनाव में तो हालत यह हो गई कि मनसे एक भी सीट नहीं जीत सकी और 119 सीटों पर तो उसकी जमानत तक जब्त हो गई। ऐसे में BMC चुनाव मनसे के लिए अपनी खोई हुई साख बचाने का आख़िरी बड़ा मौका माने जा रहे हैं। मुंबई हमेशा से मनसे का गढ़ रहा है, और BMC जैसे अहम निकाय में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना पार्टी के लिए बेहद जरूरी हो गया है।

महाराष्ट्र की राजनीति में BMC चुनावों की अहमियत
BMC देश की सबसे अमीर नगर निगम है, जिसका बजट हजारों करोड़ रुपये का होता है। इसे मुंबई की सत्ता का केंद्र भी कहा जाता है। जो पार्टी BMC पर कब्जा करती है, उसे न केवल भारी आर्थिक संसाधन मिलते हैं, बल्कि उसकी राजनीतिक ताकत और प्रभाव भी बढ़ जाता है। शिवसेना ने लंबे समय तक इस निगम पर अपना दबदबा बनाए रखा, लेकिन 2022 में पार्टी में हुए विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच खींचतान तेज हो गई। वहीं, बीजेपी भी मुंबई में अपनी जड़ें और गहरी करने की कोशिश में जुटी है। ऐसे में मनसे के लिए यह चुनाव बेहद अहम हैं, क्योंकि यही उसके लिए अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बचाए रखने का एक बड़ा मौका साबित हो सकता है।

आखिर अचानक क्यों आक्रामक हुई मनसे?
मनसे की हालिया आक्रामकता को समझने के लिए इसके पीछे की रणनीति पर नजर डालना जरूरी है। पार्टी की हाल की गतिविधियों के पीछे कई कारण नजर आते हैं, जो उसकी चुनावी तैयारी और राजनीतिक दांवपेच का हिस्सा लगते हैं।

मराठी वोट बैंक को साधने की कोशिश
मनसे की राजनीति की बुनियाद हमेशा से मराठी मानुस और मराठी अस्मिता पर टिकी रही है। हाल ही में दुकानदारों पर मराठी में बोलने का दबाव डालना या बैंकों में मराठी भाषा के इस्तेमाल की मांग करना इसी रणनीति का हिस्सा है। 2025 में ठाणे के भयंदर में एक दुकानदार को कथित तौर पर इसलिए पीट दिया गया क्योंकि वह मराठी में बात नहीं कर रहा था। ऐसे घटनाक्रम मनसे के समर्थकों के बीच यह संदेश देते हैं कि पार्टी उनकी भाषा और पहचान की रक्षा के लिए लड़ रही है।

शिवसेना और बीजेपी को चुनौती देना
मनसे के मुख्य प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी हैं, जो महायुति गठबंधन का हिस्सा हैं। 2024 के विधानसभा चुनाव में मनसे ने मुंबई की 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और कई सीटों पर उसने शिवसेना और बीजेपी के खिलाफ सीधा मुकाबला किया। हालांकि पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली, लेकिन उसने कुछ जगहों पर वोट काटकर शिवसेना (UBT) को फायदा पहुंचाया। अब BMC चुनाव में भी मनसे इसी रणनीति को दोहराकर महायुति के वोट बैंक को कमजोर करना चाहती है।

उद्धव ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन
हाल ही में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे 20 साल बाद मराठी अस्मिता के मुद्दे पर एक मंच पर नजर आए। इस मुलाकात ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। उद्धव ने भी संकेत दिए कि वह BMC चुनाव में मनसे के साथ गठबंधन के लिए तैयार हो सकते हैं। अगर यह गठबंधन होता है, तो दोनों मिलकर मराठी वोटों को एकजुट कर सकते हैं, जो बीजेपी और शिंदे गुट के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। मनसे की मौजूदा आक्रामकता इस संभावित गठबंधन की जमीन तैयार करने की कोशिश भी हो सकती है।

संक्षेप में, मनसे की आक्रामकता उसकी प्रासंगिकता बचाने, मराठी वोटरों को साधने और गठबंधन का माहौल बनाने की रणनीति है।

खोई हुई जमीन फिर हासिल करना चाहती है मनसे
बीएमसी चुनाव से पहले मनसे की बढ़ती सक्रियता और आक्रामक रुख उसकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। पार्टी मराठी अस्मिता और हिंदुत्व के मुद्दों को उछालकर अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करना चाहती है। उद्धव ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन और लगातार सुर्खियों में बने रहने की कोशिशें भी मनसे को दोबारा प्रासंगिक बनाने की दिशा में उठाए गए कदम हैं।
हालांकि, जनता के बीच उसकी हिंसक छवि और बढ़ती नाराजगी मनसे के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। बीएमसी चुनाव में उसका प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपनी रणनीति को कितनी चतुराई और संतुलन के साथ लागू कर पाती है और क्या मराठी वोटरों का भरोसा दोबारा जीतने में सफल होती है।
क्या मनसे अपनी खोई ताकत लौटाएगी या यह उसका आखिरी दांव होगा — इसका फैसला वक्त करेगा।

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