कहीं फिर दिल्ली की राजनीति का हाल 1956 जैसा तो नहीं होगा ?
रिपोर्ट :- प्रज्ञा झा
इन दिनों दिल्ली का माहौल बिलकुल 1954 की तरह ही बिगड़ रहा है | दिल्ली में सियासत वैसे ही बगड़ती नज़र आ रही है, जैसी आज़ादी के कुछ समय बाद हुई थी| खैर उस किस्से को भी जानेंगे फिलहाल जो हालिया खबर है, वो जानते है। दिल्ली सरकार और LG के बीच जो अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग और विजिलेंस को लेकर शीतयुद्ध थमने का अंदाज़ा लगाया जा रहा था। वो अब और विकराल रूप में तब्दील हो रहा है। दिल्ली में आप के नेताओं द्वारा LG के घर के बहार धरना दिए जाने के बाद फाइलों पर sign तो हो गए, लेकिन ख़ुशी ज्यादा देर नहीं टिकी। अध्यादेश आने के बाद तो जैसे आप सरकार बोखला गयी है।
अरविन्द केजरीवाल का कहना है की ये अध्यादेश लाकर सरकार SC के आदेश का उल्लघन कर रही है लेकिन उन्हें ये समझने की जरुरत है की केंद्र सरकार बहुत सोच समझ के चल रही है | अध्यादेश के तहत नेशनल कैपिटाल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया जिसमे दिल्ली CM , दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव , और केंद्र सरकार के मुख्य सचिव शम्मिल रहेंगे। इसलिए ये अध्यादेश SC के आदेश का उल्लंखन तो नहीं करता | आदेश का उल्लंघन तब होता जब CM को नहीं शामिल किया जाता। अब ये मुद्दा जारी ही था की उत्तर प्रदेश से अखिलेश यादव और बिहार से नितीश कुमार दोनों ही आप के समर्थन में खड़े हो गए ट्वीट किया की ये अध्यादेश न्यायपालिका का अपमान है| ये भाजपा की नकारात्मक राजनीती का परिणाम है |
दिल्ली में छिड़ी LG और दिल्ली सरकार के बीच की लड़ाई कोई पहली बार नहीं है ,1952 में जब पहला विधान सभा चुनाव हुआ तब दिल्ली के मुख्य मंत्री “चौधरी ब्रह्मप्रकाश यादव” बने| पहले विधान सभा चुनाव के दौरान देश के 10 पार्ट C के राज्यों में में LG नहीं होते थे| उनकी जगह चीफ कमिश्नर हुआ करते थे| 1954 में एडी पंडित दिल्ली के चीफ कमिश्नर बने और एडी पंडित दिल्ली सरकार के हर काम में दखल देना चाहते थे| कई ऐसी परिस्थियाँ बनी की दोनों लगातार विवादों में रहे | लेकिन 1955 में ब्रह्मप्रकाश यादव ने इस्तीफा दे दिया | इसके बाद गुरमुख निहाल सिंह अगले CM बने और 1956 में उन्हने इस्तीफा दे दिया लेकिन दिलचस्प बात ये है की इसके बाद अगला CM नहीं बना विधानसभा को स्थगित कर दिया गया।
फिर 1991 मैं जब नरसिम्हा राव की सरकार बनी तो मांग उठने के कारण 1993 में फिर से विधानसभा का गठन हुआ।
यहाँ समझने वाली बात ये है की पहले जब विधानसभा स्थगित की गयी तब केंद्र और राज्य में एक ही सरकार थी फिर भी विधानसभा स्थगित हुई और वहीं अभी केंद्र सरकार और राज्य सरकार अलग है तो ज्यादा आसार यही है की वही पुराने दौर को न अपनाया जाए।