दिल्ली-NCR

पुरुष आयोग के द्वारा मनाया गया पिता दिवस, परुुषों के अधिकार की संवैधानिक मांग तेज़

रिपोर्ट: नेशनल खबर डेस्क

वर्तमान परिदृश्य में जहाँ लिंगानुपात पर समान रूप से चर्चा हो रही है तो वहीं आंकड़े हमें आश्चर्य चकित करते हैं कि क्या परुुषों के लिए
समान रूप से अधिकारों की बात की जा रही है?
पिता दिवस आते ही हर किसी को यह आश्चर्य होता है कि फादर्स डे जैसा भी हमारे लिए कोई दिवस है,, जिसे हर पिता कर्म निष्ठा के लिए
मनाया जाना चाहिए। पिता की नौकरी दुनिया की सबसे कठिन नौकरी है इस नौकरी में अनुशाशन और स्नेह का मिश्रण होता है यह एक
ऐसी नौकरी है जिसमें सतंलुन के साथ सद्भाव की आवश्यकता रहती है, पिता एक परिवार में यह सतंलुन और सद्भाव बनाए रखता है।
पिता परिवार को मजबूती के साथ समाज में स्थिर रखता है, यह वही शख्स होता है जो अपने अथक प्रयासों से परिवार का भरण पोषण
करता है इतना सब कुछ करते हुए भी आज पिता की भूमिका को सामाजिक दर्जे का इंतजार है।
अधिकांश बच्चों के लिए पिता उनके पहले रोल मॉडल होते हैं और बच्चे अपने पिता को पहले नायक के रूप में मानते हैं, बच्चे पिता के
तरीके और साधनों को अपनाने के लिए तत्पर रहते हैं।
ऐसे बच्चों के लिए पिता उनके गौरव हैं और पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए हर साल जनू के तीसरे रविवार को पित्र दिवस
मनाया जाता है। पिता अपने जिम्मेदारियों की वजह से कई भूमिकाओं का निर्वाहन करते हैं, पिता अपने बारे में सोचें बिना परिवार के
भलाई के लिए समर्पित रहते हैं।
बच्चों की बेहतर परवरिश हर पिता का सपना होता है और आज का यह दिवस उत्सव के रूप में उन पितरों के लिए समर्पित होना चाहिए
जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से अपने परिवार और बच्चों की बेहतर परवरिश करके राष्ट्र निर्माण का कार्य किया है।
फादर्स डे सक्षम रुप से उन पिताओं के पीड़ा को व्यक्त करने का भी दिवस है जो विभिन्न कारणों से अपने बच्चों से अलग हो गए हैं। कभी
नौकरी की जटिलता तो कभी शैक्षिक आवश्यकता बड़ी वजह होती है बच्चों से पिता के अलग होने की हालांकि सबसे बड़ी चिंता यह है कि
कई बार पिता क़ानूनी रूप से अपने जीवन साथी के वजह से अपने बच्चों से अलग हो जाते हैं जिसके वजह से कई बार खामियाजा पूरे
परिवार को बिखरने के साथ भगुतना पड़ता है।
भारतीय काननू प्रणाली में बच्चों की कस्टडी से सम्बंधित मामलों में पिता से ज्यादा मां को प्राथमिकता मिलती है। पति पत्नी के बीच
आपसी कलह के कारण तलाक की समस्याओं का बोझ बच्चे को पिता से अलग होकर उठाना पड़ता है। एक बड़ी समस्या यह भी है कि मां
के कस्टडी में बच्चा पिता से और दूर हो जाता है और ऐसा कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है जिससे पिता के इन अधिकारों को सरुक्षित
रखा जा सके। परुुष आयोग फादर्स डे के मौके पर ऐसे पिता के अधिकारों की मांग सरकार से करता है कि बच्चों से अलग रह रहे पिताओं
को मां के बराबर अधिकार देखकर पिता के हितों की रक्षा की जाए। फादर्स डे के पर्वू संध्या पर एनजीओ पुरुष आयोग के द्वारा पिता के
अधिकारों के लिए एक साहसिक आवाज उत्सव के रूप में उठाई जा रही है। परुुष आयोग द्वारा आयोजित यह कार्यक्रर्य म बरखा त्रहेन,
अध्यक्ष परुुष आयोग के नेतत्व में कनॉट प्लेस, सट्रेंल पार्क नई दिल्ली में आयोजित किया गया था जहां भारी संख्या में पिता और बच्चे
फादर्स डे का उत्सव मनाने के लिए शामिल हुए।
परुुष आयोग की अध्यक्षा बरखा त्रहेन ने बताया कि फादर्स डे का आयोजन बच्चों से पिता के अलगाव को रोकने और पिता का स्नेह
निरंतर बच्चों को मिलता रहे इस मूलभूत उद्देश्य के लिए किया था। बरखा त्रहेन ने यह भी मांग है कि पिता से बच्चों का अलगाव रोका
जाए और मां के साथ साझा पालन पोषण प्रदान करने की संवैधानिक मान्यता दी जाए जिससे तलाक के बाद भी पिता अपने बच्चों के
विकास और कैरियर का मार्ग दर्शन कर सकें।

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