रंगभेद से साउथ अफ्रीका को आजाद कराने वाले पहले अश्वेत राष्ट्रपति के बारे में क्या आप जानते हैं?
NATIONAL KHABAR REPORT
महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलने वाले नेल्सन मंडेला उर्फ मदीबा ने रंग भेद के खिलाफ लड़ते हुए अपने 27 साल जेल में काटे थे।
12 जून, 1964 ही वो तारीख थी जब उन्हें आजीवन करावास की सजा सुनाई गई थी। लेकिन उन्होंने अपने जीवनकाल में पूरे मानव इतिहास को ही बदलकर रख दिया था।
दक्षिण अफ्रीका के महात्मा गांधी कहकर पुकारे जाने वाले नेल्सन मंडेला ने जेल में रहकर रंगभेद की नीतियों के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी।
उन्होंने न केवल श्वेत-अश्वेत के बीच के अंतर को समाप्त किया बल्कि 10 मई 1994 में दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनकर इतिहास रच दिया। बता दें कि इस पद ग्रहण करते ही उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में एक नए युग का आगाज किया।
मंडेला 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका में ट्रांसकी के मर्वेजो गांव में पैदा हुए थे। बचपन में उन्हें प्यार से सभी मदीबा कहकर बुलाया करते थे। उन्होंने सालों से चल रहे रंगभेद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए दक्षिण अफ्रीका की धरती पर लड़ाई लड़ी।
वो उन नामों में शुमार थे, जो कभी हार नहीं मानते थे। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सन् 2009 में मंडेला के जन्मदिन 18 जुलाई को ‘मंडेला दिवस’ के रूप में मनाने का एलान किया।
1943 में मंडेला पहले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में कार्यकर्ता के तौर पर उभरे। साथ ही साथ वकालत की पढ़ाई भी की। उन्होंने अपने साथी ओलीवर टोम्बो के साथ जोहान्सबर्ग में वकालत शुरु की। इस दौरान दोनों ने मिलकर रंगभेद के खिलाफ आवाज भी उठाई।
अपनी जिंदगी के 27 साल जेल में व्यतीत करने के बाद 11 फरवरी, 1990 को मंडेला के रिहा कर दिया गया। 1990 में दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार से समझौता होने के बाद उन्होंने एक नए दक्षिण अफ्रीका को बनाया।
सन् 1994 में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को हटाकर चुनाव हुए। 62 प्रतिशत मत के साथ अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया और उनकी सरकार बनी। 10 मई, 1994 का वो ऐतिहासिक क्षण भी आया जब मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।