Strawberry Moon: कब, कहां और क्यों? जानिए पूर्णिमा के चाँद का रहस्य

Strawberry Moon: 11 जून की रात आसमान में एक बेहद खास और खूबसूरत खगोलीय नजारा देखने को मिलेगा। साल की इस आखिरी जून पूर्णिमा पर दिखाई देगा रहस्यमयी स्ट्रॉबेरी मून, जो इस रात को और भी यादगार बना देगा। यह चंद्र दृश्य न सिर्फ देखने में अद्भुत होगा, बल्कि खगोल प्रेमियों के लिए एक दुर्लभ मौका भी होगा।
धर्म डेस्क | National Khabar
आज ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और विशेष माना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण चमक और प्रभाव के साथ आकाश में दिखाई देता है।
लेकिन इस बार की पूर्णिमा कुछ और भी खास है—क्योंकि आज रात आसमान में रहस्यमयी स्ट्रॉबेरी मून नजर आएगा। यह दुर्लभ खगोलीय नजारा अब अगली बार 2043 में ही देखने को मिलेगा।
जैसे ही आज सूरज डूबेगा, रात के पहले पहर में यह चांद एक अलग ही रूप में नजर आएगा—इसकी चमक में हल्की गुलाबी या सुनहरी आभा होगी, जो इसे आम पूर्णिमा के चांद से बिल्कुल अलग बनाती है।
भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में यह खूबसूरत नजारा देखा जा सकेगा। आकाश प्रेमियों और खगोलीय घटनाओं के शौकीनों के लिए यह एक यादगार रात बनने वाली है।
भारत में स्ट्रॉबेरी मून कब और कहां देखें?
आज की पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सबसे प्रबल अवस्था में होगा, जिसकी शीतल चांदनी न केवल आंखों को सुकून देगी, बल्कि मन को भी शांत करेगी। भारत में स्ट्रॉबेरी मून देखने का सबसे उपयुक्त समय सूर्यास्त के तुरंत बाद का है, जब यह चंद्रमा दक्षिण-पूर्वी क्षितिज के करीब दिखाई देगा।
गोधूलि के समय यह चांद हल्की गुलाबी या सुनहरी रोशनी में चमकता दिखेगा, जिससे यह नज़ारा और भी खास लगने लगेगा।
इस अद्भुत नज़ारे का आनंद लेने के लिए किसी खुले मैदान या ऊंचे स्थान पर जाएं, जहां प्रकाश प्रदूषण कम हो। अगर आपके पास टेलीस्कोप या दूरबीन है, तो यह अनुभव और भी शानदार हो सकता है।
ध्यान रहे, Strawberry Moon एक बेहद दुर्लभ खगोलीय घटना है, जो हर 18.6 साल में एक बार दिखाई देती है।
आज के बाद यह नजारा अगली बार साल 2043 में देखने को मिलेगा — इसलिए इसे देखने का यह सुनहरा मौका हाथ से न जाने दें!
अन्य पूर्ण चंद्रमा कौन-कौन से हैं?
- वुल्फ मून (जनवरी) –
सर्दियों में जब जंगल बर्फ से ढक जाते हैं, तब भेड़ियों के झुंड की आवाजें गूंजती हैं, इसलिए इस चांद को “वुल्फ मून” कहा जाता है। - स्नो मून (फरवरी) –
फरवरी में सबसे ज्यादा बर्फबारी होती है, इसलिए इसे “स्नो मून” कहा गया। - वर्म मून (मार्च) –
सर्दियों के बाद धरती नरम होने लगती है और मिट्टी में केंचुए दिखने लगते हैं, इसलिए इसे “वर्म मून” कहा जाता है। - पिंक मून (अप्रैल) –
इस समय गुलाबी जंगली फूल (फ्लॉक्स) खिलते हैं, इसी कारण इसका नाम “पिंक मून” रखा गया, हालांकि चांद गुलाबी नहीं होता। - स्ट्रॉबेरी मून (जून) –
यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस समय स्ट्रॉबेरी जैसे फल पकने लगते हैं। इसका रंग स्ट्रॉबेरी जैसा नहीं होता। - हार्वेस्ट मून (सितंबर/अक्टूबर) –
फसल कटाई का समय होता है, और किसान देर रात तक चांदनी में फसल काटते हैं। इसलिए इसे “हार्वेस्ट मून” कहा जाता है। - कोल्ड मून (दिसंबर) –
ठंड का मौसम शुरू हो जाता है, इसीलिए दिसंबर के चांद को “कोल्ड मून” कहा जाता है।
स्ट्रॉबेरी मून क्यों कहा जाता है? जानिए इसका रहस्य
जून महीने की आखिरी पूर्णिमा को “स्ट्रॉबेरी मून” कहा जाता है, और इस साल यह और भी खास है क्योंकि यह एक माइक्रो मून है — यानी चंद्रमा इस वक्त पृथ्वी से सबसे दूर होगा, जिससे इसका आकार सामान्य से थोड़ा छोटा और कम चमकीला दिखेगा।
इस चंद्रमा का नाम सुनकर लगता है कि इसका रंग स्ट्रॉबेरी जैसा होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। असल में, यह नाम अमेरिकी आदिवासी परंपराओं से लिया गया है। उनके मुताबिक, जून की इस पूर्णिमा के बाद स्ट्रॉबेरी की फसल तैयार होती थी, इसलिए इसका नाम पड़ा स्ट्रॉबेरी मून।
इस बार का स्ट्रॉबेरी मून मेजर लूनर स्टैंडस्टिल (चंद्रमा की खास स्थिति) के कारण भी खास है। भारत में इसे आज सूर्यास्त के बाद दक्षिण-पूर्व दिशा में देखा जा सकता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों में यह नजारा रात 7 बजे के बाद दिखेगा।