Somnath Temple: किसने कराया था निर्माण और क्या है यहां स्थापित शिवलिंग का रहस्य?

Somnath Temple: सोमनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। इसे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम माना जाता है। इतिहास गवाह है कि यह मंदिर कई बार तोड़ा गया, लेकिन हर बार श्रद्धा और भक्ति की शक्ति से इसका पुनर्निर्माण हुआ और आज भी यह आस्था का अडिग प्रतीक बना हुआ है।
धर्म डेस्क | National Khabar
सोमनाथ मंदिर: शिव की प्रथम ज्योतिर्लिंग और रहस्यों से भरा गौरवशाली इतिहास
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर न केवल भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला माना जाता है, बल्कि यह आस्था, परंपरा और पुनर्निर्माण की अडिग मिसाल भी है। यह मंदिर बार-बार विध्वंस के बावजूद बार-बार खड़ा हुआ, और हर बार और भी अधिक भव्यता के साथ।
पौराणिक कथा: चंद्रदेव और शिव का अद्भुत संबंध
मान्यता है कि इस मंदिर का पहला निर्माण चंद्रदेव (सोमराज) ने किया था। राजा दक्ष के श्राप के कारण चंद्रदेव क्षय रोग से पीड़ित हो गए थे। तब उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की और शिव ने उन्हें न केवल रोग से मुक्त किया, बल्कि उनके आग्रह पर स्वयं यहां शिवलिंग के रूप में विराजमान हुए। तभी से इस स्थान को सोमनाथ यानी “चंद्र का स्वामी” कहा जाने लगा।
बार-बार टूटा… हर बार और भी भव्यता से बना
सोमनाथ मंदिर का इतिहास आक्रमणों और पुनर्निर्माणों की श्रृंखला से भरा हुआ है:
649 ई.: वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
815 ई.: अल जुनैद द्वारा तोड़े जाने के बाद प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इसे फिर से बनवाया।
1025 ई.: महमूद गजनवी ने मंदिर को बुरी तरह लूटा और तोड़ा। इसके बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसे पुनर्स्थापित किया।
1169 ई.: चालुक्य राजा कुमारपाल ने मंदिर को और भव्य रूप में निर्मित कराया।
आज़ादी के बाद हुआ पुनर्निर्माण
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। उनके नेतृत्व में के.एम. मुंशी ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और 1 दिसंबर 1955 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया।
क्या शिवलिंग हवा में तैरता था?
एक रहस्यमय पहलू भी इस मंदिर से जुड़ा है। 13वीं सदी के लेखक जखारिया अल काजिनी ने अपनी पुस्तक ‘वंडर्स ऑफ क्रिएशन’ में यह लिखा कि महमूद गजनवी जब मंदिर में दाखिल हुआ, तो उसने शिवलिंग को छत और जमीन के बीच हवा में तैरते हुए देखा। माना जाता है कि यह चुंबकीय प्रभाव के कारण हो सकता था, लेकिन आज तक इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल पाया है।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।