एडिटोरियल

पूरे भारत में गणतंत्र दिवस की दिखी धूम, आत्मनिर्भरता का संदेश देने वाला है ये पर्व

रिपोर्ट- भारती बघेल

एक गणतंत्र के रुप में भारत ने बहुत कुछ अर्जित किया है। और समय के साथ संसार में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ी है, लेकिन इस यथार्थ को भी स्वीकार करना होगा कि चुनौतियां भी बढ़ी हैं। ये चुनौतियां आंतरिक भी हैं और बाहरी भी। जितनी जल्दी हम आंतरिक चुनौतियों को पार कर जाएंगे। बाहरी चुनौतियों को परास्त करने में उतनी ही आसानी होगी।

भारत जब स्वतंत्र हुआ तब हमारे पास अपना कोई संप्रभु संविधान नहीं था। गणतंत्र दिवस इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आज ही के दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। भारतीय संविधान दुनिया के सबसे बड़ा हस्तलिखित संविधान है। मैं इसे मानव अधिकारों और कर्तव्यों का वैश्विक दस्तावेज मानती हूं। मानव अधिकारों की सुरक्षा की विश्वसनीय व्यवस्था कहीं पर है तो वह भारतीय संविधान में ही है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कभी कहा था कि कर्तव्यों में हिमालय से अधिकारों की गंगा बहती है। गणतंत्र के इस पर्व पर आज भारतीय संविधान को इसी दृष्टि से देखे और समझे जाने की जरुरत है। संविधान आजादी की मर्यादा है। पूरा देश इस समय आजादी का अमृत महोत्सव बना रहा है। गणतंत्र दिवस पर इस महोत्सव के संदर्भ में गहराई से विचार करने की जरुरत है।

इसलिए कि पहली बार ऐसा देश में हुआ है, जब हमारे स्वाधीनता सेनानियों की स्मृतियों को जीविन रखने, आजादी के आंदोलन से जुड़ी घटनाओं के आलोक में देश की संस्कृति और लोगों के शानदार इतिहास को अक्षुण्ण रखने का यह पर्व देश भर में विविध स्तरों पर मनाया जा रहा है। विचार करें, सूर्य से हम सभी आलोकित होते हैं और सूर्य का यह प्रकाश ही चंद्रमा में चांदनी बनकर धरती पर प्रतिबिंबत होता है।

चंद्रमा अमृतांशु है। अमृत किरणों वाला। इसकी किरणें कभी मिटती नहीं हैं। अमृत तत्व से ओतप्रोत होने के कारण यह अक्षीण है। भारतीय संस्कृति को भी मैं इसी तरह अक्षीण मानती हूं। भारतीय संस्कृति को भी मैं इसी तरह अक्षीण मानती हूं। इकबाल ने इसे इन शब्दों में व्यक्त किया है, यूनान, मिस्त्र,रोमा सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हमारी हस्ती नहीं मिटती। सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा है।

आजादी का अमृत महोत्सव दरअसल हमें हमारे राष्ट्रीय प्रेम, सौहार्द और अध्यात्म की गौरवशाली परंपराओं के आलोक में स्वतंत्रता के वास्तविक रहस्य की अनुभूति कराने वाला पर्व है। यह उन लोगों के प्रति समर्पित है, जिनके कारण देश विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हुआ। यह उन लोगों के प्रति समर्पित है, जिन्होंने देश को सशक्त और समृध्द बनाने की अतुल्य सफल गाथाएं लिखीं। ये गाथाएं यहीं बताती हैं कि देश के सर्वांगीण विकास में किस तरह जन भागीदारी सुनिश्चित की गई।

हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि स्थानीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाने वाले जो छोटे- छोटे प्रयास और बदलाव आत्मनिर्भर भारत की भावना को पुष्ट करने के लिए हुए हैं।, वे राष्ट्रीय उपलब्धि का रुप ग्रहण कर सकें। अमृत महोत्सव का वास्तविक उद्देश्य भारत के प्रत्येक राज्य और प्रत्येक क्षेत्र में महान सफलताओं के लिए किए गए। प्रयासों के इतिहास को संरक्षित करना है, ताकि भावी पीढियों को प्ररेणा मिल सके।

हम इसे नई पीढ़ी का प्ररेणा पर्व भी कह सकते हैं। स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद संविधान के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र में नियोजित विकास के आधार पर देश में विकास की सुदृढ नींव रखी गई। भारतीय संस्कृति से जुड़ा जो दर्शन है, हमारी जो उद्दात जीवनि परंपराएं हैं, संविधान एक तरह से उन्हें व्याख्यायित करता है। मैं यह मानती हूं कि राष्ट्र कोई भू- भाग भर नहीं होता। यह अपने आप में विचार है।

देश को विचार संज्ञा में देखने का अर्थ ही है- ज्ञान और दर्शन की वह महान परंपरा जिसमें वैदिक ऋचाओं से लेकर आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन तक का सार आ जाता है। संपूर्ण विश्व को वसुधैव कुटुंबकम् के सूत्र के साथ अपना परिवार मानने का संदेश हमारे राष्ट्र ने दिया है। आज देश महिलाओं, सामाजिक और आर्थिक रुप से पिछड़े वर्गों, दिव्यांगों, आदिवासियों और वंचित तबकों को सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

फिर भी मैं ये मानती हूं कि वास्तविक लक्ष्य तभी पूरा होगा जब कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को समानता और न्याय मिले। इसके लिए सभी को अपने – अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे, क्योंकि तभी हमारा गणतंत्र सच्चे अर्थों में सशक्त बनेगा। और वे सपने पूरे होंगे, जो हमारे स्वाधीनता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने देखे थे। आज ये भी बहुत जरुरी है कि हमारी नई पीढ़ी आत्मनिर्भर हो और उन मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत हो जिनके लिए भारत पूरे विश्व में जाना जाता है।

हम सभी का यह कर्तव्य है कि आत्मनिर्भरता के और बड़े लक्ष्यों को प्राप्त कर हम पूरी तन्मयता के साथ जुट गए हैं। आजादी के अमृत महोत्सव के आलोक में गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र को ज्ञान और विकास के पथ पर ले जाने के लिए हम सभी को संकल्पबध्द होकर प्रयास करना चाहिए। इस क्रम में देश की उन्नति की नवीन राहों को सृजन करना होगा। यह भाव बढ़ना चाहिए कि सबका सुख सामुहिक सुख हो और दुख सामूहिक दुख।

इसी तरह के राष्ट्र के गौरव में ही हम सबका गौरव हो। इस समष्टि भाव के साथ गणतंत्र दिवस पर देश के सर्वांगीण विकास की राह हम सभी प्रशस्त करें।

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