“मिथकों से निकलें, रक्तदान करें: जानिए सच और झूठ के बीच फर्क”

हम सभी अपने जीवन में किसी न किसी रूप में दान करते हैं, लेकिन इनमें सबसे बड़ा और जीवनरक्षक दान रक्तदान को माना गया है। एक यूनिट रक्त से तीन लोगों की जान बचाई जा सकती है, यही वजह है कि इसे “महादान” कहा जाता है। हालांकि, आज भी समाज में रक्तदान को लेकर जागरूकता की कमी है और कई लोग इससे जुड़े मिथकों की वजह से रक्तदान से कतराते हैं।
Written by: Himanshi Prakash, National Khabar
इसी जागरूकता को बढ़ाने के लिए हर साल 14 जून को “विश्व रक्तदाता दिवस” (World Blood Donor Day) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करना और इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना है।
रक्तदान करने से शरीर कमजोर नहीं होता, बल्कि यह शरीर को नई ऊर्जा देता है। रक्तदान से किसी भी बीमारी का खतरा नहीं होता, बल्कि यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है।
रक्तदान से किसी भी बीमारी का खतरा नहीं होता, बल्कि यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है।
हर स्वस्थ व्यक्ति, जिसकी उम्र 18 से 65 साल के बीच है और वजन 50 किलो से अधिक है, वह रक्तदान कर सकता है।
इस ब्लड डोनर डे पर संकल्प लें कि हम भी रक्तदान कर किसी की जिंदगी बचाने में योगदान देंगे, क्योंकि आपके एक निर्णय से किसी को नया जीवन मिल सकता है।
रक्तदान कैसे बनता है जीवनदाता? जानिए सच और भ्रांतियों के बीच फर्क
डॉक्टरों के अनुसार, दान किया गया खून किसी भी तरह से व्यर्थ नहीं जाता। ब्लड को तीन मुख्य घटकों—रेड ब्लड सेल्स, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स—में विभाजित किया जाता है। ये सभी कंपोनेंट्स अलग-अलग बीमारियों में उपयोग किए जाते हैं जैसे स्ट्रोक, कैंसर, ऑपरेशन के बाद की स्थिति, थैलेसीमिया और अन्य रक्त संबंधी बीमारियां।
इसलिए रक्तदान सिर्फ एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी भी है। फिर भी, कुछ भ्रांतियां हैं जो लोगों को रक्तदान से रोकती हैं। आइए जानते हैं डॉक्टर लोपिता भट्टाचार्य द्वारा बताए गए कुछ आम मिथक और उनकी सच्चाई।
डॉक्टरों के अनुसार, दान किया गया खून किसी भी तरह से व्यर्थ नहीं जाता। ब्लड को तीन मुख्य घटकों—रेड ब्लड सेल्स, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स—में विभाजित किया जाता है। ये सभी कंपोनेंट्स अलग-अलग बीमारियों में उपयोग किए जाते हैं जैसे स्ट्रोक, कैंसर, ऑपरेशन के बाद की स्थिति, थैलेसीमिया और अन्य रक्त संबंधी बीमारियां।
इसलिए रक्तदान सिर्फ एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी भी है। फिर भी, कुछ भ्रांतियां हैं जो लोगों को रक्तदान से रोकती हैं। आइए जानते हैं डॉक्टर लोपिता भट्टाचार्य द्वारा बताए गए कुछ आम मिथक और उनकी सच्चाई।
→ सच और झूठ: ब्लड डोनेशन से जुड़े आम मिथक
- मिथक : रक्तदान के बाद शरीर में खून की कमी हो जाती है।
सच: ब्लड के फ्लूइड कंपोनेंट्स 24 घंटे में रीकवर हो जाते हैं, जबकि रेड ब्लड सेल्स कुछ हफ्तों में। स्वस्थ पुरुष हर 3 महीने में और महिलाएं हर 4 महीने में रक्तदान कर सकती हैं। - मिथक : रक्तदान करना दर्दनाक और समय लेने वाला होता है।
सच: पूरी प्रक्रिया में केवल 30-45 मिनट लगते हैं और ब्लड कलेक्शन सिर्फ 8-10 मिनट में पूरा हो जाता है। ज़्यादातर लोग इसे दर्द रहित और संतोषजनक अनुभव मानते हैं। - मिथक : केवल दुर्लभ ब्लड ग्रुप वालों को ही रक्तदान करना चाहिए।
सच: हर ब्लड ग्रुप की बराबर ज़रूरत होती है—प्रसव, सर्जरी, दुर्घटनाएं—हर जगह मांग बनी रहती है। आपका खून किसी की जान बचा सकता है, चाहे वो आम ग्रुप हो या दुर्लभ। - मिथक : बुज़ुर्ग या दुबले-पतले लोग ब्लड डोनेट नहीं कर सकते।
सच: अगर आपकी उम्र 18 से 65 वर्ष, स्वास्थ्य अच्छा है और आप न्यूनतम वजन/हीमोग्लोबिन के मानदंडों पर खरे उतरते हैं, तो आप रक्तदान के योग्य हैं।
→ ब्लड डोनेशन के फायदे
- हार्ट हेल्थ बेहतर होती है: अतिरिक्त आयरन कम होने से हृदय रोगों का खतरा घटता है।
- कैलोरी बर्न होती है: हर रक्तदान से लगभग 600–650 कैलोरी बर्न होती है।
- नई रेड ब्लड सेल्स का निर्माण होता है, जिससे आपका ब्लड सिस्टम एक्टिव और हेल्दी बना रहता है।
रक्तदान न सिर्फ दूसरों की जान बचाता है, बल्कि आपके खुद के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। आइए इस ब्लड डोनर डे पर संकल्प लें कि हम भी रक्तदान कर मानवता का फर्ज निभाएंगे।