क्या है भगवान जगन्नाथ की ‘अनासरा लीला’? क्यों होते हैं 15 दिन के लिए बीमार

हर साल एक समय ऐसा आता है जब भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए दर्शन नहीं देते, मान्यता है कि वे इस दौरान बीमार पड़ जाते हैं। इस विशेष समय को ‘अनासरा लीला’ कहा जाता है। लेकिन सवाल उठता है – आखिर भगवान बीमार क्यों होते हैं? वो भी हर साल?
क्या है इस लीला के पीछे छिपा आध्यात्मिक रहस्य?
भक्तों के मन में उठने वाले इन्हीं सवालों का जवाब हम इस लेख में विस्तार से देने जा रहे हैं, जहां आपको मिलेगा ‘अनासरा लीला’ से जुड़ा पूरा धार्मिक और पौराणिक विवेचन।
धर्म डेस्क | National Khabar
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक भव्य प्रतीक है। यह आयोजन हिंदू धर्म में आस्था और भक्ति की जीवंत मिसाल है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को विशेष रूप से मंदिर के बाहर लाया जाता है और उनका स्नान यात्रा महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन हजारों भक्त भगवान के दिव्य स्वरूप के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
इस विशेष अनुष्ठान को ‘पहाड़ी यात्रा’ कहा जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ को 108 स्वर्ण कलशों में विभिन्न तीर्थों से लाए गए पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद माना जाता है कि भगवान को ज्वर यानी बुखार हो जाता है और वे अस्वस्थ हो जाते हैं। यही कारण है कि इसके बाद उन्हें विशेष विश्राम में रखा जाता है और यह समय ‘अनासरा काल’ कहलाता है।
भगवान जगन्नाथ का 15 दिनों का एकांतवास
भगवान जगन्नाथ स्नान के बाद 15 दिनों के विश्राम में चले जाते हैं, जिसे ‘अनासरा लीला’ या ‘ज्वर लीला’ कहा जाता है। इस दौरान मंदिर के पट आम भक्तों के लिए बंद रहते हैं और केवल उनके विशेष सेवक ‘दयितगण’ ही भगवान की सेवा कर सकते हैं।
15 दिनों की ‘अनासरा लीला’
अनासरा लीला के समय भगवान जगन्नाथ की रसोई, जो हमेशा चलती रहती है, 15 दिनों के लिए बंद कर दी जाती है। इस दौरान भगवान को कोई खाना या भोग नहीं चढ़ाया जाता। उनकी सेहत ठीक रखने के लिए उन्हें केवल जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा पिलाया जाता है। साथ ही, हर दिन एक वैद्य (डॉक्टर) आकर भगवान का हालचाल देखता है, ताकि वे जल्दी ठीक हो सकें।
अब सवाल उठता है कि आखिर भगवान हर साल 15 दिनों के लिए बीमार क्यों पड़ते हैं? भक्तों के मन में ये जिज्ञासा स्वाभाविक है। इस रहस्य के पीछे दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं, जिन्हें आगे विस्तार से बताया जाएगा।
भक्त माधव दास और भगवान जगन्नाथ के प्रेम की कथा
इस विषय में एक लोकप्रिय कथा है जो भगवान जगन्नाथ और उनके अनन्य भक्त माधव दास से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि माधव दास अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पूरी तरह भगवान की सेवा में लीन हो गया था। जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। लोगों ने उसे समझाया कि अब वह भगवान की सेवा करने के योग्य नहीं रहा, लेकिन माधव दास का उत्तर साफ था — “जब तक प्राण हैं, सेवा नहीं छोड़ूंगा।”
एक दिन सेवा करते-करते वह मूर्छित हो गया। तभी भगवान जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और अपने प्रिय भक्त की सेवा करने लगे। जब माधव दास को होश आया, तो उसने देखा कि खुद भगवान उसकी सेवा कर रहे हैं। वह भाव-विभोर होकर भगवान के चरणों में गिर पड़ा और बोला, “प्रभु, आप मेरी सेवा कर रहे हैं! ये मैं कैसे सह सकता हूं? और अगर आप भगवान हैं, तो मेरी बीमारी को रोक क्यों नहीं दिया?”
भगवान मुस्कुराए और बोले, “मैं अपने भक्त के प्रेम से बंधा हूं, इसलिए तेरी सेवा के लिए आया हूं। लेकिन मैं किसी के भाग्य को नहीं बदल सकता। तुम्हारे भाग्य में 15 दिन की बीमारी लिखी है, लेकिन तुम्हारे प्रेम से प्रसन्न होकर मैं वह बीमारी अपने ऊपर ले लेता हूं।”
तभी से यह मान्यता बन गई कि भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के कष्टों को अपने ऊपर ले लेते हैं और हर वर्ष 15 दिनों के लिए स्वयं बीमार पड़ जाते हैं। यही लीला ‘अनासरा लीला’ कहलाती है।
पुरी राजा के स्वप्न से जुड़ी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, उड़ीसा के एक राजा को भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया। भगवान ने कहा, “महाराज, मंदिर के सामने स्थित वट वृक्ष के पास एक कुआं खुदवाइए। मैं उस कुएं के शीतल जल से स्नान करना चाहता हूं और फिर 15 दिनों के लिए एकांत में रहूंगा।”
राजा ने तुरंत भगवान की आज्ञा का पालन किया। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को उस पवित्र कुएं के जल से स्नान कराया गया। लेकिन स्नान के तुरंत बाद भगवान बीमार पड़ गए। बाद में भगवान ने स्वप्न में राजा को यह भी बताया, “इन 15 दिनों की मेरी ज्वर लीला के दौरान मैं किसी भी भक्त को दर्शन नहीं दूंगा।”
तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि स्नान यात्रा के बाद भगवान 15 दिनों के लिए एकांत में चले जाते हैं और इस काल को अनासरा लीला कहा जाता है।
सदियों से चली आ रही है ये प्रथा
इन्हीं पौराणिक कथाओं के आधार पर आज भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हर वर्ष भगवान को विशेष स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद भगवान बीमार पड़ते हैं और 15 दिनों तक उनकी रहस्यमयी अनासरा लीला का आरंभ होता है।
इन 15 दिनों में भगवान को आम दर्शन के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। उनकी रसोई भी पूरी तरह से बंद रहती है। केवल विशेष सेवक ‘दयितगण’ ही उनकी सेवा और उपचार करते हैं। इस दौरान भगवान को जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा पिलाया जाता है और एक वैद्य प्रतिदिन उनका हाल-चाल लेता है।
15 दिनों के विश्राम के बाद भगवान जगन्नाथ पूरी तरह स्वस्थ होकर भव्य रथ यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं और भगवान के दिव्य दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।