धर्म

कांवड़ यात्रा 2025: क्यों उठाते हैं शिव भक्त कांवड़? जानिए इसकी पूरी कहानी और महत्व

सावन का पावन महीना आते ही शिवालयों में भक्तों की भीड़ और आस्था का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। इसी के साथ शुरू होती है कांवड़ यात्रा — भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करने की वह परंपरा, जो श्रद्धा और समर्पण का जीवंत उदाहरण है।

धर्म डेस्क | नेशनल खबर

समुद्र मंथन से जुड़ी है कांवड़ यात्रा की कथा
कांवड़ यात्रा का ज़िक्र सबसे पहले समुद्र मंथन की कथा में मिलता है। जब देवताओं और असुरों ने समुद्र का मंथन किया, तो उसमें से निकला हलाहल विष इतना प्रचंड था कि पूरी सृष्टि को नष्ट कर सकता था। तभी भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए वह विष पी लिया और अपने कंठ में रोक लिया। इसी कारण उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।

शिव के इस त्याग को शीतल करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने उन्हें गंगाजल चढ़ाया, ताकि विष की अग्नि शांत हो सके। यही परंपरा आज कांवड़ यात्रा के रूप में जीवित है।

आस्था और तपस्या का अद्भुत संगम
सावन में लाखों शिवभक्त केसरिया वस्त्र पहनकर, कांधों पर बांस की कांवड़ उठाकर पवित्र नदियों से जल भरते हैं और मीलों पैदल चलकर शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाते हैं। यह न केवल शारीरिक तपस्या है, बल्कि आत्मा की साधना और भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक भी है।

इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा
हालांकि इसकी जड़ें पौराणिक काल में हैं, लेकिन संगठित रूप में कांवड़ यात्रा मध्यकाल से लोकप्रिय हुई। तुलसीदास और सूरदास जैसे भक्त कवियों ने भी अपने भजनों में इस यात्रा का वर्णन किया है। पहले यह यात्रा गांवों और कस्बों के लोग शांति से पूरी करते थे, लेकिन अब यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में गिनी जाती है।

आज हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख, सुल्तानगंज से लेकर देवघर, काशी विश्वनाथ और नीलकंठ महादेव तक लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर पहुंचते हैं। कई भक्त डाक कांवड़ करते हैं, जिसमें गंगाजल अर्पित होने तक कलश भूमि पर नहीं रखा जाता।

सेवा और सामूहिकता का उत्सव
यात्रा के दौरान जगह-जगह सेवा शिविर लगते हैं, जहां भोजन, दवाइयां और आराम की व्यवस्था रहती है। “बोल बम” के जयकारों से वातावरण शिवमय हो जाता है और पूरी यात्रा चलती-फिरती भक्ति का पर्व बन जाती है।

क्यों इतनी महत्वपूर्ण है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा महज परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और शिव के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह दिखाती है कि श्रद्धा और भक्ति की शक्ति समय के साथ कभी कमजोर नहीं पड़ती, बल्कि और प्रबल होती जाती है।

चाहे इसे पौराणिक कथा का पुनः अभिनय कहें या भक्ति का जीवंत उत्सव — कांवड़ यात्रा वह आस्था है जो न रुकती है, न थकती है।

इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button