धर्म

गुरु पूर्णिमा 2025: कबीरदास के अनमोल दोहों से समझें गुरु की महानता और महत्व

गुरु पूर्णिमा 2025: हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। मान्यता है कि गुरु ही वह मार्गदर्शक शक्ति हैं, जो शिष्य को ईश्वर तक पहुंचा सकते हैं। संत कबीर ने अपने दोहों में बड़ी खूबसूरती से गुरु की महिमा और उनके महत्व को शब्दों में पिरोया है। आइए जानते हैं, कबीर के दोहों में गुरु की महानता का संदेश।

धर्म डेस्क | National Khabar

आषाढ़ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है, जिसे हम सभी गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। यह दिन केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि सिख और बौद्ध धर्म में भी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। सनातन संस्कृति में गुरु को भगवान से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। हमारे ग्रंथों, पुराणों और शास्त्रों में गुरु की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है।

आज, 10 जुलाई के दिन हमें अपने गुरु के प्रति आभार व्यक्त करते हुए पूरे श्रद्धा भाव से उनकी पूजा करनी चाहिए। भारत में सदियों से गुरु-शिष्य परंपरा को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता रहा है। गुरु ही वह महान व्यक्ति हैं, जो हमें अंधकार से निकालकर सही मार्ग पर ले जाते हैं। संत कबीरदास ने भी अपने अनमोल दोहों में गुरु की महिमा को बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। आइए जानते हैं कि उनके दोहों में गुरु के प्रति क्या संदेश छुपा है।

कबीर के अनमोल दोहे और उनका अर्थ:

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।।

कबीरदास जी कहते हैं कि जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ सामने खड़े हों, तो पहले किसके चरणों में झुकूं? वे कहते हैं कि मैं तो अपने गुरु पर बलिहार जाता हूँ, जिन्होंने ही मुझे गोविंद तक पहुँचने का मार्ग दिखाया।

गुरु गोबिंद तौ एक है, दूजा यहु आकार। आपा मेट जीवत मरै, तौ पावै करतार।।

यहाँ कबीरदास समझाते हैं कि गुरु और गोविंद वास्तव में एक ही हैं, केवल उनका रूप और उपाधि अलग है। जो शिष्य अपने अहंकार को त्यागकर, सांसारिक मोह से ऊपर उठकर जीवित रहते हुए अपने ‘अहं’ का नाश कर लेता है, वही भगवान का साक्षात्कार कर सकता है।

सतगुरु की महिमा अनंत, किया उपगार। लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार।।

कबीरदास कहते हैं कि गुरु की महिमा असीम है। उन्होंने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए और मुझे अनंत ब्रह्मांड का दर्शन कराया। गुरु का उपकार अनगिनत है, जिसे कोई गिन नहीं सकता।

गुरु तो ऐसा चाहिए, शिष सों कछु न लेय। शिष तो ऐसा चाहिए, गुरु को सब कुछ देय।।

कबीरदास के अनुसार, गुरु को ऐसा होना चाहिए जो निःस्वार्थ और लोभ रहित हो, जो अपने शिष्य से कुछ भी पाने की अपेक्षा न रखे। वहीं, शिष्य को ऐसा होना चाहिए कि वह अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित हो और अपनी सारी आस्था और श्रद्धा उनके चरणों में अर्पित कर दे। तभी उसे गुरु से सच्चा ज्ञान मिल सकता है।

इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।

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