Jagannath Ratha Yatra 2025: न भुजाएं, न चरण फिर भी पूज्य! भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा का आध्यात्मिक रहस्य

Jagannath Ratha Yatra 2025: पुरी का जगन्नाथ मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है। यहां की बहुत सी बातें आज भी विज्ञान और तर्क से समझ नहीं आ पातीं। इन्हीं रहस्यों में से एक है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति। उनका अनोखा रूप और उसमें छिपे खास पहलू आज भी भक्तों और जानकारों के लिए एक बड़ी पहेली बने हुए हैं।
धर्म डेस्क | National Khabar
उज्जैन: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का खास महत्व है और भारत भर में ऐसे कई मंदिर हैं जहां भव्य प्रतिमाएं विराजमान हैं। इन्हीं में से एक हैं भगवान जगन्नाथ, जिन्हें ‘जगत के नाथ’ कहा जाता है। उनकी प्रमुख लीला भूमि ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है, जिसे ‘पुरुषोत्तम पुरी’ भी कहा जाता है।
पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि रहस्यों से भरा एक अद्भुत स्थल भी है। यहां भगवान जगन्नाथ की जो प्रतिमा स्थापित है, वह भी अनेक रहस्यों से घिरी हुई है। इनकी प्रतिमा न केवल अधूरी प्रतीत होती है, बल्कि उनके बड़े नेत्र, नथवाली नाक और बिना भुजाओं वाला शरीर लोगों के मन में सवाल भी पैदा करता है—आखिर भगवान जगन्नाथ का रूप ऐसा क्यों है?
इस अद्वितीय स्वरूप के पीछे गहरी आध्यात्मिक मान्यताएं और रहस्यमयी कथाएं छिपी हैं। आइए जानते हैं कि आखिर भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा अधूरी क्यों है और इसके पीछे क्या रहस्य है।
भगवान जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा किसने बनाई?
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का जिम्मा राजा इंद्रद्युम्न ने देव शिल्पकार विश्वकर्मा को सौंपा था। विश्वकर्मा ने काम शुरू करने से पहले एक शर्त रखी कि जब तक वे मूर्ति निर्माण करें, कोई भी उनके कमरे में झांकेगा नहीं। अगर किसी ने भीतर झांका, तो वे काम अधूरा छोड़कर चले जाएंगे।
राजा ने यह शर्त मान ली, लेकिन समय बीतने के साथ भगवान के दर्शन की उत्सुकता इतनी बढ़ गई कि राजा स्वयं सब्र नहीं रख पाए और कमरे का दरवाजा खोल दिया। नतीजतन, विश्वकर्मा तुरंत मूर्ति अधूरी छोड़कर वहां से चले गए। यही कारण है कि आज भी भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा अधूरी दिखाई देती है – बिना हाथ-पैर के, लेकिन पूर्ण भक्ति और रहस्य से भरपूर।
राजा ने तोड़ी शर्त, अधूरी रह गई भगवान की मूर्ति
जैसे ही विश्वकर्मा जी ने मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू किया, कई दिन बीत गए। राजा इंद्रद्युम्न हर दिन मूर्ति निर्माण की आवाज़ बाहर से सुनते रहते थे, लेकिन एक दिन अचानक भीतर से कोई आवाज़ नहीं आई। राजा को लगा कि मूर्तियां बन चुकी हैं, इसलिए अब शांति है। प्रभु के दर्शन की लालसा में वे शर्त तोड़ते हुए कमरे का दरवाज़ा खोल बैठे।
दरवाज़ा खुलते ही उन्होंने देखा कि मूर्तियों का निर्माण अधूरा था। इस नियमभंग से नाराज़ होकर विश्वकर्मा जी तुरंत अंतर्ध्यान हो गए। तभी से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गईं – बिना हाथ-पैर के। यही अधूरा स्वरूप आज तक पुरी मंदिर में स्थापित है, जिसे पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।