
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाता सूची को लेकर उठा विवाद अब बिहार में भी गहराता दिख रहा है। राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को सरकार की “साजिश” बताया है। हालांकि, चुनाव आयोग ऐसे आरोपों को पहले ही खारिज कर चुका है।
Written by Himanshi Prakash , National Khabar
क्या है मामला?
बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर मध्य से नवंबर के पहले सप्ताह के बीच संभावित हैं। इसी को देखते हुए चुनाव आयोग मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करा रहा है। 2003 के बाद यह पहली बार हो रहा है जब इतने बड़े पैमाने पर मतदाता सूची की जांच की जा रही है।
क्या पुरानी वोटर लिस्ट रद्द की जा रही है?
नहीं, 2003 की मतदाता सूची को आधार मानते हुए उसके बाद जुड़े या हटाए गए नामों का सत्यापन किया जा रहा है। यानी जिनके नाम 2003 के बाद जुड़े हैं, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
पहले से नाम है तो फिर से आवेदन क्यों?
यदि किसी का नाम 2003 की सूची में है, तो केवल गणना फॉर्म भरना होगा। कोई दस्तावेज संलग्न नहीं करना पड़ेगा। लेकिन 2003 के बाद जुड़े नामों के लिए दस्तावेज देना अनिवार्य है।
क्या नया वोटर आईडी मिलेगा?
हां, नए फॉर्मेट में डेटा लेने और लंबे समय तक रिकॉर्ड रखने के उद्देश्य से नया वोटर कार्ड जारी किया जाएगा।
इतनी जल्दी यह प्रक्रिया क्यों?
बिहार और पश्चिम बंगाल में अवैध बांग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिकों की मौजूदगी के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। फर्जी दस्तावेजों के जरिये मतदाता बनने की आशंका को देखते हुए यह पुनरीक्षण हो रहा है। हालांकि सवाल यह भी है कि लोकसभा चुनाव से पहले यह प्रक्रिया क्यों नहीं की गई?
इतनी जल्दी यह संभव है?
2003 में इस प्रक्रिया में दो साल लगे थे, लेकिन तब तकनीक नहीं थी। अब मोबाइल, टैब, ऑनलाइन फॉर्म और प्रशिक्षित स्टाफ के ज़रिए तेजी से काम हो सकता है। यह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।
बाढ़ सबसे बड़ी चुनौती
बिहार का 73% हिस्सा बाढ़ से प्रभावित होता है, खासकर सीमावर्ती जिलों में। बाढ़ राहत और मतदाता सत्यापन साथ-साथ कराना प्रशासन के लिए कठिन होगा।
क्या गरीबों के नाम काटे जा रहे हैं?
ऐसे आरोप बेबुनियाद हैं। 2003 से पहले वाले वोटरों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जा रहा है। 2003 के बाद वाले 11 वैकल्पिक दस्तावेजों से नागरिकता साबित कर सकते हैं। अगर किसी के पास कुछ नहीं है, तो दावा-आपत्ति के ज़रिए स्थानीय सत्यापन होगा।
क्या सरकारी योजनाएं बंद होंगी?
नहीं। अब अधिकतर योजनाएं वोटर कार्ड से नहीं, आधार और बैंक खातों से जुड़ी हैं। इसलिए मतदाता सूची से नाम हटने पर इन पर असर नहीं पड़ेगा।
आधार कार्ड को मान्यता क्यों नहीं?
आधार पहचान का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। फर्जी आधार के मामले सामने आने के कारण सिर्फ आधार के आधार पर वोटर मान्यता नहीं दी जा सकती।
क्या लोकसभा 2024 की लिस्ट पर भी सवाल?
सिर्फ 2024 ही नहीं, 2003 के बाद की सभी सूचियों में गलतियों की शिकायतें मिली हैं—जैसे मृतकों के नाम, नाम गायब होना, विदेशी नागरिकों के नाम। इसलिए गहन पुनरीक्षण जरूरी है।
नागरिकता साबित करना कैसे संभव?
तेजस्वी के अनुसार, 85% युवा मतदाताओं को अपने माता या पिता की नागरिकता साबित करनी होगी। 11 प्रकार के दस्तावेज मान्य हैं, नहीं होने पर दावा-आपत्ति में स्थानीय अधिकारी की जांच के बाद नाम जोड़ा जा सकता है।
जिनके पास कोई दस्तावेज नहीं?
NFHS सर्वे के अनुसार बहुतों के पास जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिक सर्टिफिकेट या जाति प्रमाणपत्र नहीं हैं। ऐसे में अन्य दस्तावेज या स्थानीय सत्यापन के आधार पर भी नागरिकता सिद्ध की जा सकती है।
जातीय सर्वे में दस्तावेज नहीं मांगे गए, फिर यह कैसे संभव?
जातीय सर्वे की प्रकृति अलग थी। यहां नागरिकता प्रमाण जरूरी है। समय चुनौती है, लेकिन दावा-आपत्तियों के ज़रिए कुछ काम चुनाव बाद भी पूरे किए जा सकते हैं।
बाहर काम करने वाले मजदूरों का क्या?
बिहार के 2.9 करोड़ मजदूर राज्य से बाहर हैं। उनके रिकॉर्ड ऑनलाइन हैं। BLO की रिपोर्ट और दावा-आपत्ति की प्रक्रिया में इनकी स्थिति स्पष्ट की जाएगी।
बिहार में मतदाता सूची को लेकर गहमागहमी तेज़ हो गई है। जहां एक ओर तेजस्वी यादव इसे सियासी साजिश मानते हैं, वहीं चुनाव आयोग इसे पारदर्शिता की दिशा में एक कदम बता रहा है। चुनौती जरूर बड़ी है, लेकिन डिजिटल तकनीक और प्रशासनिक तैयारी इस प्रक्रिया को समय पर पूरा करने में मददगार साबित हो सकती है।