जगन्नाथ यात्रा 2025: जानिए तीन रथों के नाम और कौन होते हैं सवार

पुरी की विश्वविख्यात जगन्नाथ रथ यात्रा में तीन विशेष रथों का प्रमुख स्थान होता है। इन रथों पर भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई श्री बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा नगर भ्रमण पर निकलते हैं। प्रत्येक रथ की अपनी अलग पहचान, विशिष्ट रंग और धार्मिक महत्व होता है, जो इस भव्य यात्रा को और भी विशेष बनाता है।
धर्म डेस्क | National Khabar
Jagannath Rath Yatra: हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा एक बहुत ही खास त्योहार है। इस दिन भगवान Jagannath मंदिर से बाहर आते हैं और आम लोगों के बीच जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान सभी के सुख-दुख में साथ देते हैं। यह यात्रा हमें भगवान के प्यार भरे और दयालु रूप को दिखाती है, जहां वे हर इंसान को बराबर समझकर दर्शन देते हैं – चाहे वह अमीर हो या गरीब।
हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए तीन बड़े रथ बनाए जाते हैं। इन रथों को खास किस्म की नीम की लकड़ी (जिसे दारु कहते हैं) से तैयार किया जाता है। इन्हें बनाने में कई महीने लगते हैं। ये रथ सिर्फ चलने वाले वाहन नहीं होते, बल्कि लोगों की आस्था, भक्ति और परंपरा के प्रतीक माने जाते हैं।
यह पूरी यात्रा एक विशाल धार्मिक और सांस्कृतिक महोत्सव में तब्दील हो जाती है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। क्या आप जानते हैं इन तीनों रथों के नाम और इनमें कौन-कौन विराजमान होते हैं? आइए, जानते हैं इस अद्भुत परंपरा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष (जिसे गरुड़ध्वज भी कहा जाता है) रथ यात्रा का सबसे विशाल और भव्य रथ होता है। इसका रंग संयोजन लाल और पीला होता है, जो इसे दूर से ही अलग पहचान देता है। इस रथ में कुल 16 पहिए होते हैं, और इसकी ऊंचाई लगभग 42.6 से 45 फीट तक होती है। रथ के शिखर पर गरुड़ देव का प्रतीक स्थापित होता है, जो भगवान जगन्नाथ के वाहन के रूप में उनकी उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। यह रथ न केवल आकार में बड़ा है, बल्कि श्रद्धा और भक्ति के लिहाज़ से भी सबसे प्रमुख माना जाता है।
भगवान बलभद्र का रथ तालध्वज कहलाता है, जो रथ यात्रा में सबसे आगे चलता है। यह रथ भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलराम जी को समर्पित होता है। इसकी खास पहचान है इसका लाल और हरे रंग का संयोजन, जो इसे बाकी रथों से अलग करता है। रथ में कुल 14 पहिए होते हैं, और इसकी ऊंचाई लगभग 43.3 फीट होती है, जो इसे भगवान जगन्नाथ के रथ से थोड़ा ऊंचा बनाती है।
इस रथ के शिखर पर ताड़ (ताल) वृक्ष का प्रतीक बना होता है, जो इसकी विशेष पहचान है। तालध्वज रथ बलराम जी की शक्ति, स्थिरता और साहस का प्रतीक माना जाता है, और लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र होता है।
देवी सुभद्रा का रथ देवदलन के नाम से जाना जाता है, जिसे कुछ स्थानों पर पद्मध्वज या दर्पदलन भी कहा जाता है। यह रथ भगवान जगन्नाथ और बलराम की बहन देवी सुभद्रा का होता है और यात्रा के दौरान दोनों भाइयों के रथों के बीच में स्थित रहता है।
इस रथ का रंग संयोजन आमतौर पर लाल और काला होता है, हालांकि कुछ स्थानों पर लाल और नीला भी बताया गया है, जो देवी के शक्तिशाली और रक्षक स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। रथ के शिखर पर कमल का फूल बना होता है, जो पवित्रता और दिव्य ऊर्जा का संकेत देता है। देवदलन रथ देवी सुभद्रा की कोमलता और शक्ति, दोनों ही रूपों को समर्पित होता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि इसका रिश्ता पुरानी कहानियों, आस्था और समाज से भी जुड़ा है। एक पौराणिक कहानी के अनुसार, एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाइयों से कहा कि वह पुरी शहर को देखना चाहती हैं। उनकी यह इच्छा पूरी करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बड़े भाई बलभद्र रथ पर सवार होकर उन्हें साथ लेकर नगर भ्रमण पर निकले। तभी से हर साल यह रथ यात्रा मनाई जाती है।
यही घटना कालांतर में एक परंपरा बन गई, और तभी से हर वर्ष इस भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि भाई-बहन के स्नेह, भगवान की करुणा और जन-सामान्य के प्रति उनका सान्निध्य दर्शाने वाला एक अनूठा पर्व बन चुका है।