रामायण: राम जी, बानर और भालू पहुंचे ससुराल… फिर जो हुआ वो सुनकर लोटपोट हो जाएंगे

रामायण में एक रोचक प्रसंग आता है कि वनवास के बाद भगवान राम एक बार सपरिवार ससुराल जनकपुर पहुंचे थे। उनके साथ माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और तीनों की पत्नियां भी थीं।
इस यात्रा को और खास बना दिया उनके प्रिय सहयोगी वानर और भालुओं ने, जो भी साथ जनकपुर पहुंच गए।
जब ये बानर और भालू जनकपुर की गलियों में पहुंचे तो उन्होंने ऐसा मस्त उधम और शरारतें शुरू कर दीं कि पूरा नगर ठहाकों से गूंज उठा।
यह दृश्य इतना हास्यपूर्ण था कि महाराज जनक भी हंसी रोक न सके और हंसते-हंसते लोटपोट हो गए।
धर्म डेस्क | National Khabar
वनवास समाप्त होने और अयोध्या लौटने के बाद भगवान राम एक बार अपनी ससुराल जनकपुर भी पधारे थे। इस यात्रा का बड़ा ही सुंदर और भावनात्मक वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में किया है।
वाल्मीकि बताते हैं कि भगवान को जनकपुर आने का आमंत्रण महाराज जनक ने नहीं, बल्कि माता सीता की बचपन की सहेलियों ने भेजा था।
इन सहेलियों ने भगवान राम के नाम एक भावनाओं से भरा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने ससुराल आने की प्रार्थना और आग्रह किया।
पत्र पढ़ते ही भगवान राम भावुक हो उठे और बिना देर किए उन्होंने जनकपुर आने का निश्चय कर लिया।
दरअसल, माता सीता की बचपन की सहेलियों का एक भावनात्मक पत्र लेकर एक हरकारा जनकपुर से अयोध्या पहुंचा था। उस समय भगवान राम माता सीता के साथ राज दरबार में उपस्थित थे।
भगवान ने उस हरकारे से पत्र पढ़ने को कहा, लेकिन उसने यह कहकर मना कर दिया कि यह एक व्यक्तिगत पत्र है और सीधे भगवान को ही सौंपा जाना चाहिए।
जब भगवान राम ने पत्र पढ़ा, तो उसमें लिखा था कि माता सीता की सहेलियों को भगवान के दर्शन का अवसर केवल एक बार, वह भी स्वयंबर की आपाधापी में ही मिला था। उस समय वे ठीक से भगवान की रूप माधुरी को निहार भी नहीं सकीं।
अब जबकि भगवान वनवास से लौटकर अयोध्या में हैं, वहां के लोग तो रोज उनके दर्शन का सौभाग्य पा रहे हैं,
लेकिन जनकपुर की सहेलियों को यह सौभाग्य कब मिलेगा?
इस मार्मिक आग्रह को पढ़कर भगवान राम भावुक हो उठे और जनकपुर जाने का निर्णय ले लिया।
बारात सजा कर पहुंचे थे जनकपुर
पत्र की अंतिम पंक्ति पढ़ते ही भगवान राम ने माता सीता की ओर देखा, और फिर दोनों के बीच नज़रों ही नज़रों में एक भावनात्मक संवाद हुआ। उस पल सब कुछ मौन था, लेकिन भावनाएं बहुत कुछ कह रही थीं।
इसके बाद भगवान ने हरकारे से कहा कि वे इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार करते हैं और जल्द ही उसी शान-ओ-शौकत के साथ जनकपुर आएंगे,
जैसे स्वयंबर के समय बारात अयोध्या से निकली थी।
फिर भगवान राम ने पूरी तैयारी करवाई—तीनों भाई, चारों बहुएं और अयोध्या की राजसी बारात सजकर जनकपुर के लिए रवाना हुई।
इस बार भगवान राम के साथ बानर और भालू भी जनकपुर पहुंचे। हालांकि भगवान ने उन्हें पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि जनकपुर में कोई उधम नहीं करेगा।
इस पर जामवंत ने स्वयं जिम्मेदारी ली कि वह सभी बानर और भालुओं को नियंत्रण में रखेंगे, ताकि यात्रा की मर्यादा बनी रहे।
उधम मचाते बानर, हंसते-हंसते लोटपोट हुए जनक
जब भगवान राम अपनी भव्य बारात के साथ जनकपुर पहुंचे, तो उनके साथ आए बानर और भालू पूरी शांति के साथ जामवंत के पीछे कतारबद्ध खड़े थे — ठीक वैसे ही जैसे उन्हें समझाया गया था।
जनकपुर में सभी मेहमानों के स्वागत में नाश्ते में आम परोसे गए। जैसे ही जामवंत ने आम उठाया और चूसना शुरू किया, सभी बानर-भालुओं ने उनकी नकल करनी शुरू कर दी।
लेकिन संयोग से जामवंत का आम थोड़ा सख्त था, तो वे उसे दबाकर निचोड़ने लगे। बानर-भालू भी उन्हें देखकर वैसा ही करने लगे। तभी अचानक जामवंत के आम की गुठली हवा में उछलकर दूर जा गिरी।
बस फिर क्या था! बानरों ने इसे खेल बना लिया और गुठली उछालने की प्रतियोगिता शुरू हो गई।
हर कोई अपनी-अपनी गुठली को सबसे ऊंचा और सबसे दूर फेंकने में जुट गया। पूरा जनकपुर हंसी के ठहाकों से गूंज उठा और महाराज जनक तो यह दृश्य देखकर हंसी से लोटपोट हो गए।
यह पल जनकपुर के इतिहास में भक्ति, सरलता और बाल-सुलभ उल्लास का अनमोल उदाहरण बन गया।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।