एक साथ लिख दी चार पर्चा…जो आया उसी का निकला पर्चा
नेशनल खबर,डेस्क रिपोर्ट
हमारे यहां एक कहावत है – चलनी दूसे सूप के जेहमे खुदे बहत्तर छेद। मतलब खुद में जब खामियां हो तो दूसरे में कमियां खोजना ठीक नहीं। ये कहावत आज देश में चल रही टुच्ची राजनीति पर एकदम फिट बैठ रही है।
इतिहास गवाह है जब भी देश में सनातनी नींव रखने की बात हुई तब-तब इन्होंने छाती पीटकर रोने में कसर नहीं छोड़ी। इनके मगरमच्छी आंसू और कैची जैसी जुबान सिर्फ हिंदुत्व के मुद्दों पर ही चलती है। क्योंकि ये भी बखूबी जानते हैं कहीं और ये जुबान खुली तो अंजाम बुरा होगा।
हम यहां ये नहीं कह रहे कि आप अंधविश्वास पर विश्वास करें लेकिन क्या वाकई में यहां मुद्दा अंधविश्वास का है तो जवाब है नहीं। एक 26 साल का नौजवान जो बहुत ही एक आम से गांव में पैदा हुआ सब कुछ ठीक चल रहा था। उसने बस एक गलती कर दी। उसने अपने धर्म के बारे में बताना शुरु कर दिया। और फिर दूसरी गलती उन लोगों ने कर दी जो कभी हिंदू थे और वो फिर से हिंदू बन गए। उसके बाद तो धीरेंद्र शास्त्री पर एक के बाद एक वार करने वालों की कतार लग गई।
कुछ मीडिया चैनलों ने तो हद ही पार कर दी है। उन्हें अब देश के गंभीर मुद्दों से कोई गंभीर मतलब नहीं रहा। उनका पूरा ध्यान एक 26 साल के नौजवान पर लगा हुआ है। और इस काम को वो इतनी गंभीरता से कर रहे हैं कि कभी माइंड रीडर तो कभी किसी को पकड़कर ले आते हैं और फिर पंडित धीरेंद्र शास्त्री को उनकी भाषा में कहें तो एक्सपोस करने में लग जाते हैं।
लेकिन सवाल यहां पर ये है कि धर्मांतरण के मामले से हम सभी परिचित हैं कि कैसे ईसाई मिशनरियां, या इस्लाम मिशनरियां चोरी छुपे अपना ये खेल लंबे समय से खेलतीं आ रही हैं। तब किसी ने सवाल नहीं उठाया चाहें मेनस्ट्रीम मीडिया हो या ये मिशनरियों की जी-हुजुरी करने वाले अंधश्रृद्धा उन्मुलन समिति के श्याम मानव जैसे लोग। श्याम मानव के दिल में दर्द तब उठा जब उन्होंने किसी सनातनी को देश में सनातनी ध्वज फहराते हुए देख लिया। फिर तो भईया इतने चैलेंज किये धीरेंद्र शास्त्री को जितने तो हमारे यहां UPSC भी नहीं करता।
ऐसा नहीं है कि धीरेंद्र शास्त्री वो पहले शख्स हैं जिन पर उंगली उठाई गई है। बल्कि इससे पहले भी कई सनातनी इन बहरुपियों के शिकार हो चुके हैं। लेकिन इस बार की कहानी अलग है। इस बार सनातनी जागे हुए प्रतीत हो रहे हैं और खुल कर बाबा का समर्थन कर रहे हैं। वो जान रहे हैं कि ये साजिश बाबा के विरोध में नहीं बल्कि सनातन धर्म के विरोध में रची जा रही है।
कहते हैं सादगी मंहगी पड़ती है बनावट पर और ऐसा हो भी रहा है। आप लगातार देख ही रहे हैं कि एक ठेठ गांव का ठेठ लड़का…जिसकी सादगी से आज करोड़ों हिंदू प्रभावित हैं। उसने पिछले चार पांच साल में अपनी वाकपटुता, धर्म ज्ञान, कथा करने का रोचक अंदाज, और भगवान हनुमान के आशीर्वाद से लोगों के मन में भगवान, हिंदू धर्म, सनातन और राष्ट्रवाद की एक ऐसी अलख जगानी शुरू की जिसमें न कोई अगड़ा था न कोई पिछड़ा, न कोई ऊंचा था न कोई नीचा, उसकी कथाओं में सिर्फ और सिर्फ धर्म था, सनातन था, हिंदू था, राष्ट्रवाद था…
आदिवासियों के लिए जंगल में जाकर उनके बीच बैठकर रामकथा करना हो या सैकड़ों लड़कियों की हर साल शादी कराने का महायज्ञ, बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाके में कैंसर हॉस्पिटल शुरू करने की वकालत हो उसने न सिर्फ इसका सपना दिखाया बल्कि उसे करके भी दिखाया और सबसे बड़ी बात ये सब कुछ निःशुल्क, स्वेच्छा से जो देना है दे दो नही तो कोई बात नही…
उसने बिना किसी ऊंच नीच की परवाह किए, सभी को एक पंडाल के नीचे इकट्ठा कर दिया, साथ ही साथ वो गरीब लोग जो किसी लालचवश या मजबूरी में किसी और धर्म में जाने को मजबूर हो गए थे उन्हें भी पुनः वापिस लाने का काम किया।
अब वक्त है सच को पहचानने का औऱ आवाज उठाने का। ताकि सनातन धर्म विलुप्त होने से बच सके। औऱ पर्दे के पीछे छिपे लोगों को पहचाने और उनके बनाए जाल से बाहर निकले। और गर्व से कहे कि वो हिंदू है।