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Yoga Diwas 2025: किस देवता को माना गया है योग का जन्मदाता?

Yoga Diwas 2025: 21 जून को पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 2015 में हुई थी। योग का मतलब होता है ‘जुड़ाव’ – शरीर, मन और आत्मा का मेल। यह सिर्फ एक व्यायाम नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवनशैली है जो मानसिक और शारीरिक रूप से हमें संतुलित और स्वस्थ बनाती है। सदियों से योग को बीमारियों से लड़ने का एक कारगर तरीका माना गया है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि योग की शुरुआत कहां से हुई? और कौन थे इस महान परंपरा के पहले योगी?

धर्म डेस्क | National Khabar

Yoga Diwas 2025: योग भारत की वह अमूल्य विरासत है, जिसकी गूंज आज पूरी दुनिया में सुनाई देती है। हर साल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, और अब यह केवल भारत तक सीमित नहीं रह गया—यह एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है। योग सिर्फ एक कसरत नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने वाली एक जीवनशैली है, जिसकी शुरुआत हजारों साल पहले भारत में हुई थी।

हालांकि आज योग को किसी एक धर्म से नहीं जोड़ा जाता, लेकिन इसके ऐतिहासिक और धार्मिक सूत्र हिंदू धर्म में गहराई से समाए हुए हैं। इसके प्रमाण वेदों, उपनिषदों और पुराणों में मिलते हैं। योग की नींव रखने वाले देवता कौन थे? कौन हैं वो आदि योगी, जिन्होंने इस ज्ञान को सबसे पहले धारण किया? आज हम आपको उसी रहस्य से परिचित कराने जा रहे हैं।

योग क्या है?

योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि आत्मा और शरीर को जोड़ने की एक प्राचीन भारतीय विधा है। यह एक ऐसी साधना है, जो न सिर्फ शरीर को स्वस्थ बनाती है, बल्कि मन को भी शांत करती है। योग हमें सिखाता है कि कैसे अपने तन और मन के बीच सामंजस्य स्थापित करें और आंतरिक संतुलन बनाए रखें। यह शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति की राह भी दिखाता है।

योग का इतिहास

योग का इतिहास बेहद प्राचीन और समृद्ध है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत आज से करीब 5000 साल पहले हुई थी, यानी यह सिंधु-सरस्वती सभ्यता से भी पुराना है। योग की जड़ें वैदिक काल से जुड़ी हुई हैं, जहां इसे आत्मा और परमात्मा के मिलन का माध्यम माना गया। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी योग जैसी मुद्राओं की मूर्तियां और चित्र मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि योग भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है।

योग से जुड़े प्रमुख धर्मग्रंथ:

योग का वर्णन हमारे सबसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में योग का उल्लेख किया गया है और इसके सिद्धांतों की झलक वेदों, पुराणों, उपनिषदों, महाभारत और श्रीमद्भगवद गीता में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। भगवद गीता में विशेष रूप से ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राजयोग की व्याख्या की गई है।

योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक विज्ञान है, जो आत्मा की पहचान और अनुभव की दिशा में ले जाता है। यह जीवन को संतुलित, शांत और चेतन बनाता है। वास्तव में, योग का इतिहास और उसका गूढ़ ज्ञान हमारे धार्मिक ग्रंथों में समाया हुआ है।

कौन है पहला योगी?

योग के प्रथम गुरु और आदि योगी माने जाते हैं स्वयं भगवान शिव। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शिव न केवल योग के जनक हैं, बल्कि सबसे पहले उन्होंने ही योग का ज्ञान संसार को दिया। ऐसा कहा जाता है कि हिमालय की कांति सरोवर झील के किनारे शिव ने ध्यान में लीन होकर योग की गहन अवस्था प्राप्त की थी, और वहीं पर उन्होंने सप्त ऋषियों को योग की विधाएं सिखाईं। यही सप्त ऋषि आगे चलकर विभिन्न योग परंपराओं के संवाहक बने।

शिव केवल योग के आरंभकर्ता नहीं, बल्कि योग की जीवंत मिसाल भी हैं। जो विष को कंठ में धारण कर सकते हैं, गंगा को जटाओं में समेट सकते हैं, वह शरीर और मन का ऐसा संतुलन साध सकते हैं जो योग की पराकाष्ठा है। शिव की नटराज मुद्रा, ध्यान की मुद्राएं और उनका जीवन दर्शन यही दर्शाता है कि वे योग और आत्मसाधना के प्रतीक हैं।

इसलिए कहा जाता है – शिव ही योग हैं और योग ही शिव है। योग, आत्मा और परमात्मा को जोड़ने का सेतु है, और उस सेतु के प्रथम निर्माता हैं स्वयं भगवान शिव – आदियोगी, योग गुरु और शाश्वत साधक।

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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