5 साल के नामदेव की भक्ति से पिघले भगवान विठोबा, जीवन भर के लिए बने मित्र

संत नामदेव जी भक्ति आंदोलन के प्रभावशाली संत, भक्त और कवि थे। भगवान विठोबा के प्रति उनकी गहरी भक्ति ने समाज को जोड़ा और उन्हें विठोबा का प्रिय सखा बना दिया।
धर्म डेस्क | National Khabar
संत नामदेव जी: निष्कलंक भक्ति और प्रेम की मिसाल
भक्ति मार्ग के महान संतों में संत नामदेव जी का नाम विशेष आदर के साथ लिया जाता है। उनका जन्म सन 1270 में महाराष्ट्र के सातारा जिले के नरसी बामनी गाँव में, कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन हुआ। उस समय भक्ति आंदोलन अपनी जड़ें जमा रहा था, और नामदेव जी ने अपना जीवन इसी आंदोलन को समर्पित कर दिया। उनसे करीब 130 साल बाद जन्मे संत कबीर को उनका आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है।
नामदेव जी के माता-पिता — दामाशेटी और गोणाई देवी, भगवान विठोबा के परम भक्त थे। बचपन में ही उन्होंने अपने माता-पिता से भक्ति की विरासत पाई। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक दिन जब उनके पिता घर पर नहीं थे, उनकी माँ ने उन्हें दूध दिया और कहा — “इसे भगवान विठोबा को भोग लगाओ।”
पांच वर्षीय बालक नामदेव दूध लेकर मंदिर पहुँचे और मासूमियत से भगवान से बोले — “लो, दूध पी लो।”
लोगों ने समझाया कि मूर्ति दूध नहीं पीती, मगर भोले नामदेव रोते हुए बोले — “अगर अब भी दूध नहीं पिया, तो मैं यहीं जान दे दूँगा।”
उसकी निश्चल भक्ति देखकर भगवान विठोबा साक्षात प्रकट हुए और दूध स्वीकार किया। यही घटना उनके जीवन का मार्ग तय कर गई। इसके बाद वे पूरी तरह भगवान विठोबा में लीन हो गए।
आध्यात्मिक जीवन में उन्हें संत ज्ञानेश्वर का मार्गदर्शन मिला, जिन्होंने उन्हें ब्रह्मविद्या से परिचित कराया। महाराष्ट्र में जहां ज्ञानेश्वर ने ज्ञान का दीप जलाया, वहीं नामदेव ने भक्ति और हरिनाम को पंजाब तक पहुँचाया। महाराष्ट्र से पंजाब तक उन्होंने भजन और कीर्तन के जरिए लोगों को ईश्वर से जोड़ा। भक्ति आंदोलन में उनका स्थान संत कबीर और सूरदास के बराबर माना जाता है।
उन्होंने निर्भीक होकर जात-पात, मूर्ति पूजा और कर्मकांड का विरोध किया और भक्ति में समानता और प्रेम का संदेश दिया। इस कारण कई विद्वान उन्हें कबीर का आध्यात्मिक अग्रज कहते हैं।
नामदेव जी ने मराठी और पंजाबी दोनों में रचनाएँ कीं। उनकी भाषा सरल और भावपूर्ण है। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर श्री गुरु अरजन देव जी ने उनकी रचनाओं को श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया। इसमें उनके 61 पद, 3 श्लोक और 18 रागों में रचनाएँ संकलित हैं, जो आज भी प्रेरणा देती हैं।
उनके जीवन की एक और घटना उनकी करुणा को दर्शाती है। एक बार भोजन के दौरान एक कुत्ता उनकी रोटी उठाकर भाग गया। नामदेव जी घी का कटोरा लेकर उसके पीछे दौड़े और बोले — “हे प्रभु, सूखी रोटी क्यों खा रहे हो, घी भी ले लो।”
वे हर जीव में ईश्वर का दर्शन करते थे।
उनकी रचनाएँ आज भी मुखबानी और अन्य ग्रंथों में संग्रहित हैं। उनका जीवन भक्ति, सेवा और समर्पण की जीवंत मिसाल है — जहाँ निष्कलंक प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।