Health Tips: भूख सिर्फ पेट की नहीं, दिमाग की भी कहानी है – जानिए क्या कहता है नया शोध

Health Tips: क्या आपने कभी गौर किया है कि कुछ लोगों को सिर्फ खाना देखकर ही बार-बार भूख लगने लगती है? या फिर कई लोग तनाव में आकर ज़रूरत से ज्यादा खाने लगते हैं? अगर नहीं, तो अब इन रहस्यों से पर्दा उठता नजर आ रहा है।
Written by : Himanshi Prakash , National khabar
दरअसल, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में एक खास कोशिका समूह की पहचान की है, जो भोजन से जुड़ी यादों को संजो कर रखता है। यह सिर्फ खाने के स्वाद या प्रकार तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह भी याद रखता है कि आपने कब और कहां खाना खाया था।
“भोजन एंग्राम” – मस्तिष्क की अनोखी यादें
दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के वेंट्रल हिप्पोकैम्पस क्षेत्र में ऐसे विशेष न्यूरॉन्स की पहचान की है, जो भोजन से जुड़ी जटिल यादों को सहेजते हैं। इन यादों में न सिर्फ यह होता है कि आपने क्या खाया, बल्कि यह भी शामिल होता है कि आपने कब, कहां और किन भावनाओं के साथ भोजन किया। शोधकर्ताओं ने इन खास कोशिकाओं को “भोजन एंग्राम्स” नाम दिया है।
ये एंग्राम्स दरअसल एक जैविक डेटाबेस की तरह काम करते हैं, जो भोजन से जुड़े अनुभवों की कई परतों वाली जानकारी को एक साथ सहेजते हैं — जैसे आपने क्या खाया, कब और कहां खाया।
ये कोशिकाएं क्यों हैं जरूरी?
शोध में यह अहम तथ्य सामने आया है कि अगर मस्तिष्क की ये खास कोशिकाएं किसी वजह से निष्क्रिय या क्षतिग्रस्त हो जाएं, तो व्यक्ति को यह याद ही नहीं रहता कि उसने कब भोजन किया था। इसका परिणाम यह होता है कि वह बार-बार या आवश्यकता से अधिक खाने लगता है। यही वजह है कि याददाश्त से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे लोग अक्सर अपने खाने की आदतों पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
चूहों पर हुआ प्रयोग, सामने आए चौंकाने वाले नतीजे
शोधकर्ताओं ने इस खोज को चूहों पर प्रयोग कर प्रमाणित किया। जब चूहों के मस्तिष्क से भोजन से जुड़ी इन विशेष कोशिकाओं को निष्क्रिय किया गया, तो वे उन स्थानों को याद नहीं रख पाए जहां उन्होंने पहले खाना खाया था। हैरानी की बात यह रही कि उनकी सामान्य याददाश्त—जैसे रास्ता पहचानना या अन्य रोज़मर्रा के काम—बिलकुल सामान्य बनी रही।
इससे यह स्पष्ट हो गया कि भोजन से जुड़ी यादें मस्तिष्क के एक अलग और विशिष्ट तंत्र द्वारा नियंत्रित होती हैं।
लेटरल हाइपोथैलेमस: दिमाग का भूख नियंत्रक
शोध में यह भी पाया गया कि “भोजन एंग्राम्स” मस्तिष्क के लेटरल हाइपोथैलेमस नामक क्षेत्र से जुड़कर काम करते हैं। यह हिस्सा भूख, नींद और ऊर्जा स्तर को नियंत्रित करता है। जब वैज्ञानिकों ने इन दोनों हिस्सों के बीच संवाद को बाधित किया, तो चूहों ने जरूरत से ज्यादा खाना शुरू कर दिया। वजह यह थी कि वे यह याद नहीं रख पा रहे थे कि वे पहले ही भोजन कर चुके हैं।
क्या मोटापे का समाधान यहीं छिपा है?
यह खोज न सिर्फ मस्तिष्क विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि यह मोटापे और वजन नियंत्रण के लिए भी एक नया रास्ता दिखा सकती है। आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली में, जहां अनियंत्रित भोजन और बढ़ता वजन आम समस्या बन चुके हैं, यह शोध बताता है कि सिर्फ कैलोरी गिनना काफी नहीं है — बल्कि यह जानना भी जरूरी है कि हमारा मस्तिष्क खाने को कैसे याद रखता है।
भविष्य में ऐसी तकनीकें और इलाज विकसित हो सकते हैं, जो मस्तिष्क की इन विशेष कोशिकाओं को सक्रिय या संतुलित कर सकें, जिससे लोग अपने खाने की आदतों को बेहतर तरीके से समझ और नियंत्रित कर सकें।
भूख सिर्फ पेट की नहीं, दिमाग की भी कहानी है
यह नई खोज हमें यह समझने में मदद करती है कि भूख का संबंध केवल शारीरिक ज़रूरत से नहीं है, बल्कि मानसिक प्रक्रियाओं से भी है। मस्तिष्क की कुछ खास कोशिकाएं यह तय करती हैं कि हम कितनी बार, कब और क्यों खाते हैं। यह अध्ययन विज्ञान की दुनिया में एक नया दरवाज़ा खोलता है—एक ऐसा दरवाज़ा जो भविष्य में मोटापा, अनियंत्रित भोजन और भावनात्मक भूख जैसी समस्याओं का समाधान बन सकता है।