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भगवान जगन्नाथ की मौसी: भगवान जगन्नाथ की मौसी कौन हैं? जानिए 7 दिन तक उनके घर रहने का कारण

भगवान जगन्नाथ की मौसी: आज जगन्नाथ रथ यात्रा का दूसरा दिन है। भगवान जगन्नाथ अपने मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर पहुंचेंगे, जहां वे अगले सात दिनों तक विश्राम करेंगे। इसके बाद उनकी वापसी यात्रा, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है, शुरू होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ की मौसी वास्तव में कौन हैं?

धर्म डेस्क | National Khabar

जगन्नाथ रथ यात्रा का आज दूसरा दिन है। यह पवित्र यात्रा 27 जून, शुक्रवार से शुरू हुई थी और आज भी पूरे उत्साह के साथ जारी है। पुरी शहर “जय जगन्नाथ” के नारों से गूंज रहा है। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों को पुरी के मुख्य मंदिर से करीब 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है, जहां वे सात दिन अपने भाई-बहन के साथ विश्राम करते हैं। इसके बाद नौवें दिन वे वापस पुरी के मुख्य मंदिर लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है।

कौन हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी?

भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर गुंडिचा मंदिर है, जहां वे हर साल अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ जाते हैं। मंदिर से जुड़ी प्राचीन कथाओं के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी का नाम रानी गुंडिचा था। राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसे रानी गुंडिचा के नाम पर ‘गुंडिचा मंदिर’ कहा जाता है। इसी वजह से रानी गुंडिचा को भगवान जगन्नाथ की मौसी माना जाता है।

गुंडिचा मंदिर की कथा

किंवदंतियों के अनुसार, एक बार पुरी के जगन्नाथ मंदिर में एक बढ़ई ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां बनाई थीं। ये मूर्तियां देखकर राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी, रानी गुंडिचा, बहुत प्रसन्न हुईं और उनसे मोहित हो गईं। उन्होंने राजा से आग्रह किया कि इन मूर्तियों के लिए एक मंदिर बनाया जाए, जहां रथ यात्रा और अन्य धार्मिक अवसरों पर इन्हें ले जाकर पूजा की जा सके।

मान्यता है कि जब भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए थे, तब उन्होंने रानी गुंडिचा को अपनी मौसी के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने रानी से कहा, “आप मेरी माता के समान हैं, इसलिए आज से आप मेरी मौसी गुंडिचा देवी कहलाएँगी।” भगवान ने वचन दिया कि वे वर्ष में एक बार उन्हें मिलने ज़रूर आएंगे। तभी से वह स्थान “गुंडिचा मंदिर” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस मंदिर को शक्तिपीठ जैसी ही श्रद्धा और मान्यता प्राप्त है।

7 दिन गुंडिचा मंदिर में विराजते हैं भगवान जगन्नाथ

भगवान जगन्नाथ के गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर वहां भव्य उत्सव मनाया जाता है। उनके स्वागत में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। भगवान यहां सात दिनों तक विश्राम करते हैं और भोग का आनंद लेते हैं। नौवें दिन वे फिर से श्री मंदिर लौटते हैं, जहां उनका विग्रह गर्भगृह में पुनः स्थापित किया जाता है।

गुंडिचा मंदिर में सिर्फ 7 दिन क्यों होती है पूजा?

यह जानकर आपको हैरानी होगी कि गुंडिचा मंदिर में सालभर में सिर्फ 7 दिनों तक ही पूजा होती है, और वो भी तब जब भगवान जगन्नाथ वहां विश्राम के लिए आते हैं। इन सात दिनों को छोड़कर पूरे वर्ष यहां किसी देवी या देवता की पूजा नहीं की जाती। हालांकि, मंदिर पूरे साल खुला रहता है। जब भी आप पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर जाएं, तो पहले भगवान जगन्नाथ के दर्शन करें और फिर गुंडिचा मंदिर जाना न भूलें।

5 जुलाई से शुरू होगी बहुदा यात्रा

जगन्नाथ रथ यात्रा और बहुदा यात्रा में शामिल होना भक्तों के लिए एक बड़ा सौभाग्य माना जाता है। इस वर्ष बहुदा यात्रा की शुरुआत 5 जुलाई, शनिवार को गुंडिचा मंदिर से होगी। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने मुख्य मंदिर लौटेंगे। वापसी के बाद सुना बेशा, अधरा पना और नीलाद्रि विजय जैसी पारंपरिक रस्में और अनुष्ठान संपन्न होंगे। इन सभी धार्मिक विधियों के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ गर्भगृह में विराजमान होंगे।

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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