Shefali Jariwala का असमय निधन: गरुड़ पुराण से जानें आत्मा को मोक्ष कब और कैसे मिलता है?

Shefali Jariwala: क्या 42 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से हुई शेफाली जरीवाला की मौत अकाल मृत्यु मानी जाएगी? गरुड़ पुराण के अनुसार जानें आत्मा का क्या होता है और कितने दिनों में मिलती है मुक्ति
धर्म डेस्क | National Khabar
‘कांटा लगा’ गाने से मशहूर हुईं एक्ट्रेस शेफाली जरीवाला की 42 साल की उम्र में हार्ट अटैक से मौत की खबर ने सभी को चौंका दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या इतनी कम उम्र में इस तरह निधन को अकाल मृत्यु कहा जाता है? अगर यह अकाल मृत्यु है तो गरुड़ पुराण के अनुसार आत्मा की यात्रा कैसी होती है? आत्मा को कितने दिनों में शांति या मुक्ति मिलती है?
गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु और आत्मा की यात्रा का विवरण
गरुड़ पुराण में जीवन, मृत्यु, आत्मा की यात्रा, कर्मों का फल और पुनर्जन्म का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें बताया गया है कि अकाल मृत्यु—जैसे दुर्घटना, आत्महत्या या बीमारी से अचानक मौत—की स्थिति में आत्मा की गति सामान्य मृत्यु से अलग होती है और उसे शांति पाने में अधिक समय और प्रयास लग सकता है।
कर्मों के अनुसार आत्मा की गति
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब किसी की स्वाभाविक मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा लगभग 13 दिनों तक घर के आसपास ‘प्रेत रूप’ में रहती है। इस समय परिवार वाले जो श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म करते हैं, वे आत्मा की मदद करते हैं ताकि वह अगले जन्म की यात्रा शुरू कर सके। आमतौर पर 13 से 45 दिनों के अंदर आत्मा को नया शरीर मिल जाता है, और यमदूत उसे यमलोक ले जाकर उसके अच्छे-बुरे कर्मों के हिसाब से फैसला सुनाते हैं।
अकाल मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति
लेकिन अगर किसी की अकाल मृत्यु (यानी तय समय से पहले मौत) हो जाती है, तो उसकी आत्मा को तुरंत स्वर्ग या नरक नहीं मिलता। ऐसी आत्माएं अक्सर धरती पर ही भटकती रहती हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, ये आत्माएं प्रेत, पिशाच या भूत योनि में चली जाती हैं और बहुत कष्ट झेलती हैं।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्यक्ति की उम्र 75 साल तय थी लेकिन उसकी मौत 52 साल की उम्र में हो गई, तो उसकी आत्मा को बाकी के 23 साल तक धरती पर भटकना पड़ सकता है। जब तक उसकी पूरी आयु पूरी नहीं होती, तब तक वह शांति नहीं पा सकती।
इसलिए धार्मिक ग्रंथों में ऐसी आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मों को बहुत जरूरी माना गया है।
कष्ट और भटकाव का कारण
इस भटकाव का कारण यह माना जाता है कि अकाल मृत्यु से उनकी जीवन यात्रा अधूरी रह जाती है। वे भूख, प्यास और पीड़ा से व्याकुल रहती हैं और उनकी मुक्ति कठिन हो जाती है।
मुक्ति के उपाय
गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसी आत्माओं की शांति और मुक्ति के लिए ‘नारायण बलि पूजा’ सबसे प्रभावी मानी जाती है। यह विशेष अनुष्ठान वेदपाठी ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है और तीर्थस्थल, मंदिर या पवित्र घाट पर कराना अधिक शुभ माना जाता है। पितृ पक्ष या अमावस्या जैसे अवसरों पर यह पूजा कराने से आत्मा को जल्द शांति मिल सकती है और वह प्रेत योनि से मुक्त होकर अपनी यात्रा आगे बढ़ा सकती है।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी पुष्टि नहीं करता है।