सत्ता गंवाने की कगार पर पहुंचे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान, पूरी जानकारी के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट
रिपोर्ट- भारती बघेल
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार हो गया है। अब उस पर अगले 3 से 7 दिनों के भीतर मतदान होगा। इमरान सरकार के लिए अविश्वास प्रस्ताव को मात दे पाना मुश्किल लग रहा है, क्योंकि उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ यानी कि पीटीआई में विद्रोह हो गया है।
नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें हैं और बहुमत के लिए 172 आवश्यक है। इमरान की पार्टी के 155 सदस्य हैं उनके गठबंधन के पाले में 178 सदस्य हैं। जबकि विपक्ष की कुल संख्या 163 है। अगर 12 विद्रोही सांसद एकजुट रहते हैं तो संख्या बल सरकार के खिलाफ होगा। ऐसे आसार भी दिख रहे हैं कि सहयोगी दलों के कुछ अन्य सदस्य भी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करेंगे। यदि ऐसा होता है तो इमरान 1975 के बाद अविश्वास प्रस्ताव से सत्ता गंवाने वाले पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री होंगे।
पाकिस्तान एक वास्तविक लोकतंत्र नहीं है पाकिस्तान सेना भले ही इंकार करती रहे लेकिन उसने देश की राजनीति में हमेशा पर्दे के पीछे से दखल दिया है। जो प्रधानमंत्री सेना की नजरों में खटक जाए उसका सत्ता में बने रहना संभव नहीं। नवाज शरीफ के मामले में भी यही देखने को मिला था। 2018 के चुनाव में सेना नहीं चाहती थी कि शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग- एंन चुनाव जीते। ऐसे में उसने तय किया कि इमरान खान को सरकार बनाने में किसी तरह सफलता मिल जाए।
अब सेना का इमरान से मोहभंग हो गया है। सरकार का कुशासन और विदेश नीति से जुड़े संवेदनशील मसलों पर इमरान की असलियत में बयान बाजी सेना को रास नहीं आई। और वह उन्हें चलता करना चाहती है। हालांकि 8 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद इमरान एवं उनके मंत्रियों ने सेना को लेकर तमाम सकारात्मक बयान दिए हैं। और ऐसी खबरें भी आ रही है कि सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा और इमरान के बीच कुछ सौदेबाजी हो रही है। लेकिन एक बार जब भरोसे की दीवार दरक जाए, तो विश्वास बहाल हो पाना कठिन हो जाता है।
यह टकराव इस संदर्भ में और उल्लेखनीय हो जाता है कि बाजवा का विस्तारित कार्यकाल इसी वर्ष के अंत में समाप्त होना है और उस समय प्रधानमंत्री को उनका उत्तराधिकारी चुनना होगा। माना जा रहा है अगले सेना प्रमुख के लिए आईएसआई के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद इमरान की पहली पसंद है। इसकी वजह यह है कि हमीद ने राजनीतिक प्रबंधन में इमरान की खूब मदद की। जब पिछले साल बाजवा ने हमीद को पेशावर काप्स कमांडर बनाया तो इमरान क्रुद्ध हो गए थे।
कुछ हफ्तों तक इस स्थान को लेकर लटकाए रखने के बाद ही इमरान ने उक्त प्रस्ताव पर सहमति जताई। ऐसे में यही अनुमान है कि बाजवा और अन्य जनरल नहीं चाहते कि हमीद अगले सेना प्रमुख बने। अगर इमरान आश्वस्त करें कि वह हमीद को अगला सेना प्रमुख नहीं बनाएंगे तो भी इसकी उम्मीद कम है, कि जनरल उनकी बात पर भरोसा करेंगे। अपनी सरकार बचाने के लिए इमरान हर हथकंडा अपना रहे हैं। वह विद्रोही सांसदों की खुशामद से लेकर उन्हें धमका भी चुके हैं।
एक हैरतअंगेज घटना क्रम में पीटीआई कार्यकर्ता ने इस्लामाबाद के सिंध हाउस पर धावा बोल दिया, जहां उनके विरोधी सांसद ठहरे हुए थे। पीटीआई नेता सार्वजनिक रूप से अपील कर रहे हैं कि इन नेताओं के लिए पार्टी के दरवाजे खुले हुए हैं। और उनकी शिकायतों का समाधान किया जाएगा। जब विद्रोही गुट के तेवर नरम होने के कोई उम्मीद नहीं दिखी तो इमरान ने प्रेसीडेंशियल रेफरेंस का सहारा लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
यहां पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 65a पर पेच फंसा हुआ है। इसमें प्रावधान है कि नेशनल असेंबली का कोई सदस्य यदि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान पार्टी की इच्छा के विरुद्ध मतदान करता है, तो वह सदन का सदस्य नहीं रह जाता। अदालत ने यह भी पूछा है कि क्या अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ऐसे सदस्यों का मत गिना जाएगा या नहीं?
अदालत ने मामले की सुनवाई तो आरंभ कर दी है, लेकिन लगता नहीं है कि उसका फैसला अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले आ जाएगा। इस पहलू से भी विद्रोहियों को नरम पड़ने के कोई संकेत नहीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इमरान पूरे पाकिस्तान और विशेषकर पंजाब जैसे महत्वपूर्ण प्रांत में इतने अलोकप्रिय हो गए हैं कि उन लोगों का अगले चुनाव में पीटीआई के टिकट पर वापस जीत कर आना मुश्किल है। तमाम तिकड़मों के साथ इमरान यह भी दिखाने लगे हैं कि व्यापक जनसमर्थन अभी भी उनके साथ है।
इस्लामाबाद में रविवार को आयोजित रैली में उन्होंने जनकल्याण के अपने कामों को इस्लाम की चाशनी में डुबोकर पेश किया। विपक्षी नेताओं पर तीखे वार करने के साथ उन्होंने दावा किया कि विदेशी ताकतों और पैसों के दम पर उनकी सरकार गिराने की साजिश हो रही है। इससे पहले उन्होंने संकेत दिया था कि रूस- यूक्रेन युद्ध में उनके तटस्थ रहने से पश्चिमी देश कुपित है। स्पष्ट है कि इमरान जनता की सहानुभूति पाना चाहते हैं, और अगले चुनाव की तैयारी में लगे हैं।
विपक्षी दल भी लामबंद हो रहे हैं। इसने सियासी पारा चढ़ा दिया है। अब यह ऐसे वक्त में हो रहा है जब पाकिस्तान बाहरी और आंतरिक मोर्चे पर कई चुनौतियों से दो-चार है। अब पाकिस्तान चुनाव की ओर जाता दिख रहा है। राजनीतिक दुविधा एवं अनिश्चितता से केवल सेना को ही फायदा होना है। सेना भले स्वयं को एक पेशेवर सैन्य बल के रूप में प्रस्तुत करे, लेकिन वह बड़ी हद तक राजनीतिक है, जो इस प्रकरण में भी प्रत्यक्ष हो रहा है।इमरान को उनके हाल पर छोड़ कर सेना ने विपक्ष को यही संदेश दिया है कि वह अविश्वास प्रस्ताव के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।
इसी संकेत ने विपक्षी नेताओं का हौसला बढ़ाया है, अन्यथा वे इमरान के खिलाफ इस हद तक नहीं जाते। पाकिस्तानी जनता भी यह मानती है कि सेना ही इकलौता ऐसा संस्थान है, जिसमें स्थायित्व है और वही मुश्किल दशा में देश को सही दिशा देने में सक्षम है। भारत को लेकर सेना का निरंतर भयादोहन इस भरोसे की एक बड़ी वजह है। ऐसे में पाकिस्तान में राजनीतिक मोर्चे पर चाहे जो परिवर्तन हो जाए लेकिन भारत की दृष्टि में जो पाकिस्तान की असली नीति-नियंता एवं हुक्मरान तो फौजी जनरल ही रहेंगे।