क्यों चित्रों और मूर्तियों में देवराज इंद्र के शरीर पर होती हैं हजार आंखें? जानें पूरी कहानी

पौराणिक कथाओं में अक्सर कहा जाता है कि देवराज इंद्र के शरीर पर हजारों आंखें हैं। कई चित्रों और मूर्तियों में भी उन्हें हजार आंखों वाले स्वरूप में दर्शाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे क्या वजह है? किस श्राप के कारण उनके शरीर पर हजार आंखें बन गईं? इस लेख में हम आपको इसी रहस्यमयी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से बताएंगे।
धर्म डेस्क | National Khabar
पुराणों और प्राचीन कथाओं में देवराज इंद्र को स्वर्गलोक का राजा बताया गया है। कहा जाता है कि वे हजारों अप्सराओं के साथ विलासपूर्ण जीवन जीते थे। वैसे तो इंद्र कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि देवताओं के राजा के रूप में दिया जाने वाला पद है। पुराणों में अक्सर उन्हें भोग-विलास में लिप्त और वासनाओं के वशीभूत दिखाया गया है। ऐसी ही एक कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्मपुराण में मिलती है, जिसमें उनके शरीर पर सहस्र (हजार) आंखें बनने की कहानी छुपी है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले ये आंखें नहीं, बल्कि कुछ और थीं? आइए जानते हैं इस रोचक पौराणिक कथा को —
किस कारण इंद्र के शरीर पर आईं हजार आंखें?
पद्मपुराण के अनुसार इंद्र के शरीर पर दिखाई देने वाली हजार आंखें, दरअसल गौतम ऋषि के श्राप का परिणाम हैं। कहा जाता है कि शुरुआत में ये आंखें नहीं, बल्कि हजार योनियां थीं, जिन्हें बाद में आंखों में बदल दिया गया।
कथा की शुरुआत
ब्रह्मवैवर्त और पद्मपुराण के मुताबिक, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या अनुपम सुंदरता की प्रतीक थीं। उन्हें चिरयौवना (हमेशा युवा रहने) का वरदान प्राप्त था। एक बार जब इंद्र धरती पर भ्रमण कर रहे थे, तो उन्होंने गौतम ऋषि की कुटिया के बाहर अहिल्या को देखा और मोहित हो गए। जब उन्हें पता चला कि वह गौतम ऋषि की पत्नी हैं, तब भी उनकी वासना शांत नहीं हुई।
इंद्र ने एक योजना बनाई। उन्होंने चंद्रमा से मदद ली और वातावरण ऐसा रचा जैसे भोर हो चुकी हो। चंद्रमा ने मुर्गे का रूप धारण कर बांग दे दी। मुर्गे की आवाज सुनकर गौतम ऋषि को लगा कि सुबह हो गई है और वे नदी पर स्नान करने निकल पड़े।
जैसे ही ऋषि बाहर गए, इंद्र ने उनका रूप धारण किया और अहिल्या के पास पहुंचकर छलपूर्वक उसके साथ प्रणय करने लगे।
गौतम ऋषि का श्राप
नदी पर ऋषि को लगा कि रात अभी शेष है और उन्हें किसी भ्रम का आभास हुआ। वे लौटकर कुटिया आए तो अहिल्या और इंद्र को आपत्तिजनक स्थिति में देखकर क्रोधित हो उठे। उन्होंने अहिल्या को श्राप दिया कि वह पत्थर की हो जाए। फिर उन्होंने इंद्र को श्राप दिया —
“जिस योनि के लिए तुम भ्रष्ट हुए हो, वही तुम्हारे शरीर पर प्रकट हो जाए।”
ऋषि के श्राप से इंद्र के शरीर पर हजार योनियां उभर आईं, जिससे वे अत्यंत लज्जित और अपमानित हो गए।
सूर्यदेव की तपस्या
अपनी इस दुर्दशा से बचने के लिए इंद्र ने सूर्यदेव की कठोर तपस्या की और प्रार्थना की कि उन्हें इस श्राप से मुक्ति मिले। सूर्यदेव ने कहा कि वे श्राप को तो टाल नहीं सकते, लेकिन उसकी भयानकता को कम कर सकते हैं। सूर्यदेव ने इंद्र के शरीर पर उभरी योनियों को आंखों में बदल दिया। तभी से इंद्र को सहस्रनेत्र (हजार आंखों वाला) कहा जाने लगा।
अहिल्या का उद्धार
गौतम ऋषि बाद में यह समझ गए कि अहिल्या से भूल अनजाने में हुई थी और यह सब इंद्र का छल था। लेकिन वे अपना श्राप वापस नहीं ले सके। उन्होंने अहिल्या को वरदान दिया कि स्वयं भगवान विष्णु उनके उद्धार के लिए आएंगे। कालांतर में श्रीराम ने अपने चरणों से अहिल्या को पत्थर से मुक्त किया और उनका उद्धार किया।
इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। नेशनल ख़बर इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।