धर्म

अक्षरधाम मंदिर में विराट विश्वशांति महायज्ञ संपन्न

रिपोर्ट: प्रज्ञा झा, संवाददाता, नेशनल ख़बर

  • विजया दशमी (दशहरा) पर अक्षरधाम में भव्य याग महोत्सव
  • १११ यज्ञकुंड, १४०० धर्मप्रेमी भक्त यजमान पद पर बैठे  
  •  महायज्ञ के उजाले से दमकी अक्षरधाम की जगमगाहट
  •  यज्ञकुंडों में अग्नि देव का अलंकरण

 २४/१०/२३, नई दिल्ली 

राजधानी दिल्ली में स्थित विश्वप्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर के प्रांगण में आज प्रात: विराट विश्वशांति यज्ञ संपन्न हुआ । इस विश्वशांति यज्ञ में १११ यज्ञकुंडों पर करीब  १४०० धर्मप्रेमी भक्त यजमान पद पर विराजमान थे । इसके अलावा इस उत्सव में बड़ी संख्या में भक्त समुदाय भी उपस्थित था ।

गौरतलब है कि दिल्ली स्थित स्वामिनारायण अक्षरधाम एक विश्वविख्यात मंदिर है, जिसका निर्माण परम पूज्य प्रमुखस्वामीजी महाराज ने २००५ में करवाया था । इसकी प्रसिद्धि की रूपरेखा अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा अनेक मंचों पर उल्लेखित की गई है। गिन्निस वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसे समूचे विश्व में सबसे व्यापक हिंदू मंदिर माना गया है । अपने आध्यात्मिक वैभव के अतिरिक्त, यह स्थल अपनी वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण तथा रंगारंग जलतरंग के प्रदर्शन के लिए सुप्रसिद्ध है।

इसी अक्षरधाम मंदिर के अनेक आध्यात्मिक कार्यकर्मो की श्रृंखला में आज दिनांक २४ अक्टूबर २०२३ को परिसर में भव्य “विश्वशांति महायज्ञ” का आयोजन किया गया ।

मंदिर के वरिष्ठ संत भक्तवत्सल स्वामी ने बताया कि “उपनिषदों के अनुसार, यज्ञ एक विशिष्ट भक्तिमय प्रक्रिया है जो समर्पण का प्रतीक है। इस प्रक्रिया में अग्नि प्रकट करके उसमें विविध आहुतियां  इस भावना से दी जाती है कि हमें जो कुछ भी मिला है उसे परमात्मा को निवेदित करते हैं। यज्ञ की अग्नि में जिस वस्तु की मंत्रों सहित आहुति दी जाती है वह अन्य देवताओं तक पहुंचती है।  तत्त्वत: , देवताओं के शक्ति प्रदाता परब्रह्म परमात्मा ही हैं, इसलिए देवताओं को आहुति देने से अंततः तो देवताओं के माध्यम से परमात्मा का ही महिमा गान और उनकी ही पूजा होती है। शास्त्रों के अनुसार यज्ञ और महायज्ञ एक ही अनुष्ठान है, किंतु एक अल्प अंतर है। ‘यज्ञ’ व्यष्टि- प्रधान है और ‘महायज्ञ’ समष्टि प्रधान होता है। अर्थात, ‘यज्ञ’ में फल प्रबल है जबकि ‘महायज्ञ’ जगत-कल्याण और आत्म-कल्याण के लिए होता है।”

विजयदशमी पर आयोजित इस महायज्ञ में किसी महापर्व जैसी रौनक थी । सभी प्रतिभागी प्रातः 5:00 बजे ही यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। उनकी रंगीन एवं सुसज्जित पोशाकों से उषाकाल का सौंदर्य और भी खिल उठा । प्रथम पंक्ति में उपस्थित संतो के भगवे वस्त्रों ने  अरुणोदय को प्रकाशमान किया। इस अवसर पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को अक्षरब्रह्म की प्रभावशाली महिमा का आभास हुआ।

१२०० धर्मप्रेमीयों के लिए १११ यज्ञकुंडों को स्वस्तिक आकार में पिरोया गया। यज्ञ की सामग्री सभी कुंडों के समक्ष प्रदान की गई थी। भगवान ब्रह्माजी, विष्णुजी, शिवजी और गणपतिजी का सादर आह्वान किया गया । उच्च स्वर में हो रहे मंत्रोच्चारण के बीच आहुतियां दी गईं। संप्रदाय के मुख्य ग्रंथ “सत्संग दीक्षा” के 315 श्लोकों से संपूर्ण प्रांगण पावन हुआ।  महायज्ञ की पूरी विधि वैदिक व पौराणिक मन्त्रों-श्लोकों से प्रवाहित हुई । प्रज्वलित अग्नि ने ‘हव्यवाहन’ होने का दायित्व निभाया। सभी यजमान महायज्ञ की सफलता पर प्रफुल्लित थे ।

भारत की “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को उजागर करता यह महायज्ञ, सम्पूर्ण विश्व में अखंड शांति हेतु प्रार्थना से सम्पन्न हुआ। 

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